नीलम डढ़वाल का जन्म और पालन पोषण चंण्डीगढ़ में हुआ। कम्प्यूटर साइन्स में पोस्टग्रेज्युएट नीलमजी वेब डिज़ाइन में स्वतंत्र कार्य कर रही हैं। गद्य लेखन के साथ हाइकु और मुक्त छंद में कविताएँ इंटरनेट पत्रिकाओं में प्रकाशित।
मुझे चलना होगा
इस झील की गहराई से परे
ढूढ़ना होगा
वो रहस्य जो
हिला गया हैं
इसका अस्तित्व
वो हवा जो बहती हैं
इस झील के किनारे
पेड़ो से और
हिलता हुआ सूर्य
इसकी लहरों में
लपेट लेता हैं
वो तपिश
चीखते-चिल्लाते बच्चे
भागते हुये उन बत्तखों से
और मनोरंजक पींगों पर सवार
हिला गया हैं
इसका अस्तित्व
वो हवा जो बहती हैं
इस झील के किनारे
पेड़ो से और
हिलता हुआ सूर्य
इसकी लहरों में
लपेट लेता हैं
वो तपिश
चीखते-चिल्लाते बच्चे
भागते हुये उन बत्तखों से
और मनोरंजक पींगों पर सवार
सुलह लेते हुये
अपनी उम्मीदों की
इस झील सें
बनवाते हुये अपना स्कैच
कुछ चित्रकारों से
अपनी उम्मीदों की
इस झील सें
बनवाते हुये अपना स्कैच
कुछ चित्रकारों से
समय की थाप
चेहरों पर चमकती हुई
लौ बुझते हुये सूर्य की
जिसका ग्रहण भी
अनुपम हैं
कई किस्सें नये जोड़े
निभाते कभी तय करते
उसकी अव्यावहारिकता धूमिल करते
बहुत से प्रश्न जैसे
इस झील की गहराई
ना डुबोती हैं न ही कोई पार है
ऐसे ही कितने जवाब और
सवाल हैं उन्हें ढूढ़ने के लिए
मुझे चलना होगा
इस झील की गहराई से परे।
लौ बुझते हुये सूर्य की
जिसका ग्रहण भी
अनुपम हैं
कई किस्सें नये जोड़े
निभाते कभी तय करते
उसकी अव्यावहारिकता धूमिल करते
बहुत से प्रश्न जैसे
इस झील की गहराई
ना डुबोती हैं न ही कोई पार है
ऐसे ही कितने जवाब और
सवाल हैं उन्हें ढूढ़ने के लिए
मुझे चलना होगा
इस झील की गहराई से परे।
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