बरेली : हिंदी और अंग्रेजी के प्रतिष्ठित लेखक, अनुवादक, स्तम्भकार और आयकर अधिवक्ता आ. कृष्ण कुमार अग्रवाल (के. कुमार) जी का 28 मई को लगभग 93 वर्ष की आयु में गोलोकवास हो गया। उन्हें उनके बेटे आ. केशव कुमार अग्रवाल जी (कुलाधिपति, बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी) ने सिटी श्मशान में 28 मई की शाम को मुखाग्नि दी।
300 से अधिक लेखों के रचनाकार के कुमार जी नियमित लिखने-पढ़ने वाले विद्वान थे। उन्होंने एक श्रेष्ठ अनुवादक के रूप में तमाम विदेशी लेखकों की कहानियों/लघु कथाओं का अंग्रेजी से हिंदी में शानदार अनुवाद किया है। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू, डॉ राधाकृष्णन, विनोबा भावे आदि बड़े व्यक्तित्वों पर अद्भुत रेखाचित्र लिखे हैं; इन रेखाचित्रों को न केवल हिंदी भाषा और साहित्य के कई समाचार पत्रों और पत्रिकाओं ने समय-समय पर प्रकाशित किया है, बल्कि इन्हें उनकी चर्चित पुस्तक— "मानवता की झाँकी" (2014) में भी विधिवत संकलित किया जा चुका है। उन्होंने आयकर से संबंधित कई लेख भी लिखे हैं, जिन्हें 'आईटीआर', 'टैक्समैन', 'करंट टैक्स रिपोर्टर', 'टैक्सेशन', 'द इकोनॉमिक टाइम्स' आदि में प्रकाशित किया जा चुका है।
उनके द्वारा सृजित पुस्तकों— "भगवद्गीता : विपश्यना की छाया में" (2004, 2005, 2006, 2012), "निर्वाण की राह पर" (2005), "भगवद्गीता : विपश्यना साधना का दर्शन है" (2008), को देश-विदेश के भारतीय दर्शन के विद्वानों द्वारा व्यापक रूप से सराहा गया है। अंग्रेजी भाषा में उनकी दो और पुस्तकों— "भगवद्गीता : द इको ऑफ़ विपश्यना" (2004) एवं "जर्नी टू द इनर पीस" (2011, 2016) काफी चर्चा में रही हैं, जिनमें से कुछ लेख 'द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया' जैसे बड़े समाचार पत्रों में भी प्रकाशित हुए हैं।
सहज स्वभाव के विनम्र व्यक्तित्व श्रद्धेय कृष्ण कुमार अग्रवाल जी की मुझ पर बड़ी कृपा रही। जब मैं बरेली आया तो उन्होंने गाड़ी भेजकर मुझे अपने घर बुलाया और बहुत स्नेह एवं आशीर्वाद दिया। उसके बाद उनसे अक्सर फोन पर बातचीत हो जाया करती थी। पिछले दिनों उनका एक लेख अपनी अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य की पत्रिका- 'क्रिएशन एण्ड क्रिटिसिज्म' (http://creationandcriticism.com/the_psalm_of_life_by_krishna_kumar_agrawal_.html) में प्रकाशित करने का सुख प्राप्त हुआ था। उनके लेख बरेली, मुरादाबाद, लखनऊ, कुमाऊँ से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र— "अमृत विचार" की सन्डे मैग्जीन— "लोक दर्पण" के साहित्यिक परिशिष्ट— "शब्द संसार" में अक्सर पढ़ने को मिल ही जाते थे। वे हमारे विश्वविद्यालय (बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी) के प्रथम कुलाधिपति (चांसलर) भी रह चुके हैं। उनका इस प्रकार से अचानक चले जाना मेरे लिए किसी वज्रपात से कम नहीं!
- डॉ अवनीश सिंह चौहान
अमृत विचार, बरेली
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30 नवम्बर को उनके द्वारा मुझे प्रेषित एक पत्र:-
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