1. हे स्वरदेवी, अपना स्वर दे!
हे स्वरदेवी, अपना स्वर दे!
भीतर-बाहर घना अँधेरा
दूर-दूर तक नहीं सबेरा
दिशाहीन है मेरा जीवन
ममतामयी, उजाला भर दे!
मानवता की पढूँ ऋचाएं
तभी रचूँ नूतन कविताएँ
एकनिष्ठ मन रहे सदा माँ,
आशीषों का कर सिर धर दे!
अपने को पहचानें-जानें
'सत्यम् शिवम् सुन्दरम्' मानें
जागृत हो मम प्रज्ञा पावन
हंसवाहिनी, ऐसा वर दे!
2. सबके चरण गहूँ मैं
मेरी कोशिश
सूखी नदिया में-
बन नीर बहूँ मैं
बह पाऊँ
उन राहों पर भी
जिनमें कंटक बिखरे
तोड़ सकूँ चट्टानों को भी
गड़ी हुई जो गहरे
रत्न, जवाहिर
मुझसे जन्में
इतना गहन बनू मैं
थके हुए को
हर प्यासे को
चलकर जीवन-जल दूँ
दबे और कुचले पौधों को
हरा-भरा
नव-दल दूँ
हर विपदा में-
चिन्ता में
सबके साथ दहूँ मैं
नाव चले तो
मुझ पर ऐसी
दोनों तीर मिलाए
जहाँ-जहाँ पर
रेत अड़ी है
मेरी धार बहाए
ऊसर-बंजर तक
जा-जाकर
चरण पखार गहूँ मैं
सूखी नदिया में-
बन नीर बहूँ मैं
बह पाऊँ
उन राहों पर भी
जिनमें कंटक बिखरे
तोड़ सकूँ चट्टानों को भी
गड़ी हुई जो गहरे
रत्न, जवाहिर
मुझसे जन्में
इतना गहन बनू मैं
थके हुए को
हर प्यासे को
चलकर जीवन-जल दूँ
दबे और कुचले पौधों को
हरा-भरा
नव-दल दूँ
हर विपदा में-
चिन्ता में
सबके साथ दहूँ मैं
नाव चले तो
मुझ पर ऐसी
दोनों तीर मिलाए
जहाँ-जहाँ पर
रेत अड़ी है
मेरी धार बहाए
ऊसर-बंजर तक
जा-जाकर
चरण पखार गहूँ मैं
3. मन का तोता
मन का तोता
करता रहता
नित्य नए संवाद
महल-मलीदा,
नित्य नए संवाद
महल-मलीदा,
पदवी चाहे
लाखों-लाख पगार
काम न धेले भर का करता
सपने आँख हजार
इच्छाओं की सूची
लाखों-लाख पगार
काम न धेले भर का करता
सपने आँख हजार
इच्छाओं की सूची
मेरे
सिर पर देता लाद
अपने आम
सिर पर देता लाद
अपने आम
बाग़ के मीठे
कुतर-कुतर कर फेंके
किन्तु पड़ोसी का
कुतर-कुतर कर फेंके
किन्तु पड़ोसी का
खट्टा भी
चंहके उसको लेके
समझाने पर
चंहके उसको लेके
समझाने पर
करता-रहता
अड़ा-खड़ा प्रतिवाद
विज्ञापन की भाषा बोले
'यह दिल माँगे मोर'
देख-देख बौराए
अड़ा-खड़ा प्रतिवाद
विज्ञापन की भाषा बोले
'यह दिल माँगे मोर'
देख-देख बौराए
तोता
देता खीस निपोर
बात न माने
देता खीस निपोर
बात न माने
करने लगता
घर में रोज़ फ़साद
घर में रोज़ फ़साद
4. एक आदिम नाच
आज मुझमें
बज रहा
जो तार है -
वो मैं नहीं -
आसावरी तू
एक स्मित
रेख तेरी
आ बसी
जब से दृगों में
हर दिशा
तू ही दिखे है
बाग़-वृक्षों में,
खगों में
दर्पणों के सामने
जो बिम्ब हूँ -
वो मैं नहीं -
कादम्बरी तू
सूर्यमुखभा!
कैथवक्षा!
नाभिगूढ़ा!
कटिकमानी
बींध जाते
हृदय मेरा
मौन इनकी
दग्ध वाणी
नाचता हूँ
एक आदिम
नाच जो -
वो मैं नहीं-
है बावरी तू
बज रहा
जो तार है -
वो मैं नहीं -
आसावरी तू
एक स्मित
रेख तेरी
आ बसी
जब से दृगों में
हर दिशा
तू ही दिखे है
बाग़-वृक्षों में,
खगों में
दर्पणों के सामने
जो बिम्ब हूँ -
वो मैं नहीं -
कादम्बरी तू
सूर्यमुखभा!
कैथवक्षा!
नाभिगूढ़ा!
कटिकमानी
बींध जाते
हृदय मेरा
मौन इनकी
दग्ध वाणी
नाचता हूँ
एक आदिम
नाच जो -
वो मैं नहीं-
है बावरी तू
Navgeet by Abnish Singh Chauhan
मन का तोता बोला करता रोज़ नए संवाद...क्या बात है,
जवाब देंहटाएंअन्य नवगीत भी अच्छे बन पड़े हैं,बहुत-बहुत बधाई...
अवनीश सिंह चौहान मेरे सहकर्मी हैं , मैंने उनको इस सृजनात्मक कार्य के लिए ह्रदय से बधाई देती हूँ. वह न केवल अच्छे प्राध्यापक हैं, हिन्दी एवं अंग्रेजी के अच्छे लेखक हैं, बल्कि एक अच्छे इंसान भी हैं.
जवाब देंहटाएंसरस्वती वंदना में न केवल आत्म उद्धार के लिए प्रार्थना की गयी है, बल्कि जगत कल्याण का भाव भी छिपा है. प्रयास कविता परोपकार की भावना को व्यंजित करती है, मन का तोता नवगीत मानव की असीमित इच्छाओं को उकेरता है तथा 'मारा आँख का पानी' आधुनिक चलन को व्यक्त करता है. चरों नागीत सुन्दर हैं. बधाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर नवगीत ..बहुत-बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंरंगपर्व होली पर आपको व आपके परिवार को असीम शुभकामनायें....
bhai wah kya kahne.sabko dikhana-parhana-parichit karana aur sahitya ka marmagya ban prerit karte hue samarh guru ki tarah navoditon ko unchaiyon ka sparsh kara dena-aise pratibha ke dhani-falak ke daideepyaman nakshatra ki kala pratibha ko salam.bahut aage jane ki apaar sambhavnayen hain avnish mein aur vo lagatar vistar pati ja rahi hain.badhai aur sunder-sarthak-prerak bhavishya ki shubhkamnaon ke saath.
जवाब देंहटाएं-RAGHUNATH MISRA