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मंगलवार, 18 जनवरी 2011

मुरादाबाद के चार गीतकार — अवनीश सिंह चौहान

मुरादाबाद के चार गीतकार

                                

शचीन्द्र भटनागर
 
जन्म: 28 सितम्बर 1935

कृतियाँ:  खंड-खंड चांदनी, अखंडित अस्मिता, धी आखर प्रेम के (गीत-संग्रह) आदि 

प्रकाशन : विभिन्न समाचार पत्रों, साहित्यिक पत्रिकाओं तथा समवेत संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित 

संपर्क: द्वारा श्री अमित भटनागर, कचहरी रोड, 
मुरादाबाद-244001 (उ०प्र०)

सम्पर्कभाष सं०: 09368356504

अपनी कृति उत्तरोत्तर के लोकार्पण के अवसर पर सफ़ेद शाल ओढ़े शाचीन्द्रजी 

दर्पण मन मेरे

यहां बहुत मैले प्रतिबिंब हैं
चलो चलें और कहीं
दर्पण मन मेरे

कैसे पहचानी
पगडंडी को छोड़ें
कैसे गंधों से
संबंध यहां जोड़ें
दूर तलक फैले
वीरानों में कैसे हम
क्रूर बबूलों से
अपना रिश्ता जोड़ें
झुलसाते अणुओं की गोद से
चलो चलें और कहीं
चंदन मन मेरे

यहां स्वार्थ ही है
संबंधों की सीमा
एक वृत्त तक है
स्वच्छंदों की सीमा
ह्रदय की नहीं
मात्र अधरों की बातें हैं
सारे के सारे
अनुबंधों की सीमा
ऐसी सीमाओं को तोड़कर
चलो चलें और कहीं
उन्मन मन मेरे


                                                                                     

राजेंद्रमोहन शर्मा 'श्रंग'

जन्म: 12 जून 1934

कृतियाँ:  अर्चना के गीत (गीत-संग्रह), मैंने कब ये गीत लिखे हैं (गीत-संग्रह), शकुंतला (प्रबंध काव्य ) आदि 

प्रकाशन :
 विभिन्न समाचार पत्रों, साहित्यिक पत्रिकाओं तथा समवेत संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित 

संपर्क: 77 हनुमान नगर, लाइन पार, 
मुरादाबाद-244001 (उ०प्र०)

सम्पर्कभाष सं०: 09797528271

वंदना के बोल 

अर्चना के गीत कुछ लेकर
मैं तुम्हारे द्वार आया हूँ

सोहती तंत्री करों में
और पुस्तक धारणी तुम
हंस है वाहन तुम्हारा
बुद्धि ज्ञान प्रदायिनी तुम
अर्चना को कुछ नहीं लाया
भाव का नैवेद्य लाया हूँ

मैं तुम्हारा क्षुद्र बालक
अर्चना मैं क्या करूंगा
तुम स्वयं वाणी जगत की
वंदना मैं क्या करूंगा
गीत की माला करों में ले
भाव में भर प्यार लाया हूँ

विश्व बढ़ता जा रहा है
नाश के पथ पर निरंतर
ज्योति दो ज्योतिर्मयी
सदभावना भी हो परस्पर
मांगने निर्माण का मैं पथ
वंदना के बोल लाया हूं

                                


४ जून १९७९ को इटावा (उ.प्र.) के एक छोटे से गाँव चंदपुरा में जन्मे अवनीश सिंह चौहान के आलेख, समीक्षाएँ, साक्षात्कार, कहानियाँ, कविताएँ एवं नवगीत देश-विदेश की अनेकों पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित। साप्ताहिक पत्र ‘प्रेस मेन’, भोपाल, म०प्र० के ‘युवा गीतकार अंक’ (३० मई, २००९) तथा ‘मुरादाबाद जनपद के प्रतिनिधि रचनाकार’ (२०१०) में आपके गीत संकलित। एक दर्जन हिंदी एवं अँग्रेजी पुस्तकों का लेखन, सह लेखन एवं संपादन। अंग्रेजी नाटककार विलियम शेक्सपियर द्वारा विरचित दुखान्त नाटक ‘किंग लियर’ का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित। आयरलेंड की कवयित्री मेरी शाइन द्वारा सम्पादित अंग्रेजी कविता संग्रह 'ए स्ट्रिंग ऑफ वर्ड्स' में आपकी रचनाएँ संकलित। आपका एक नवगीत संग्रह, एक कहानी संग्रह तथा एक गीत, कविता और कहानी से संदर्भित समीक्षकीय आलेखों का संग्रह प्रकाशनाधीन। प्रख्यात गीतकार, आलोचक, संपादक श्री दिनेश सिंहजी (रायबरेली, उ०प्र०) की चर्चित एवं स्थापित कविता-पत्रिका ‘नये-पुराने’ (अनियतकालिक) के कार्यकारी संपादक पद पर अवैतनिक कार्यरत। वेब पत्रिका ‘गीत-पहल’ के समन्वयक एवं सम्पादक । आपके साहित्यिक अवदान के परिप्रेक्ष्य में आपको 'ब्रजेश शुक्ल स्मृति साहित्य साधक सम्मान' (वर्ष २००९ ), 'हिंदी साहित्य मर्मज्ञ सम्मान' (वर्ष २०१०) तथा 'प्रथम पुरुष सम्मान' (२०१०) से अलंकृत किया जा चुका है। ब्लाग: पूर्वाभास ई-मेल: abnishsinghchauhan@gmail.com
चरण पखार गहूँ मैं  

मेरी कोशिश
सूखी नदिया में -
बन नीर बहूँ मैं

बह पाऊँ
उन राहों पर भी
जिनमें कंटक बिखरे
तोड़ सकूँ चट्टानों को भी
गड़ी हुई जो गहरे

रत्न, जवाहिर
मुझसे जन्में
इतना गहन बनू मैं

थके हुए को
हर प्यासे को
चलकर जीवन-जल दूँ
दबे और कुचले पौधों को
हरा-भरा
नव-दल दूँ

हर विपदा में -
चिंता में
सबके साथ दहूँ मैं

नाव चले तो
मुझ पर ऐसी
दोनों तीर मिलाए
जहाँ-जहाँ पर
रेत अड़ी है
मेरी धार बहाए

ऊसर-बंजर तक
जा-जाकर
चरण पखार गहूँ मैं

                                                                                          

विवेक 'निर्मल'

जन्म: 3 अप्रैल 1966

कृति:  सबके अटल 

प्रकाशन :
 विभिन्न समाचार पत्रों, साहित्यिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित 

संपर्क: BS-17/18, दीनदयाल नगर,
मुरादाबाद-244001 (उ०प्र०)

सम्पर्कभाष सं०: ०९८३७६३६६७९


बरसात

बिन बताए मेघ आए
हो गई बरसात

खेत चहके, फूल महके
संग पी मनमोर बहके
मुस्कुरा भूगर्भ में कुछ
बो गई बरसात

ये हवाएं, गुनगुनाएं
बिजलियां रस्ता दिखाएं
किन्तु रेगिस्तान में क्यों
खो गई बरसात

इंद्रधनुषी रंग बिखरे
पर्वतों के रूप निखरे
मैल तेरे मेरे मन का
धो गई बरसात


            

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