"इस सदी का गीत हूँ मैं / गुनगुनाकर देखिये"- प्रख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी जब यह कहते है तो निश्चय ही इसमें सच्चाई होगी; इसलिए नहीं क़ि वह इस बात को किसी से मनवाने के लिए कह रहे हैं, बल्कि जो लोग उनको सुन चुके हैं उनका मिलाजुला स्वर यही है। जब वह गाते हैं तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं और पाठक उनकी रचनाओं से गुजरने पर उनकी संवेदना को अपने अन्दर महसूस करते हैं। सामाजिक यथार्थ और जिजीविषा उनके नवगीतों का प्रमुख स्वर है। हमारे सम्पूर्ण गीत इतिहास में गीतों को गाकर जनता तक पहुंचाने वाले कम ही रचनाकार हैं, उन गिने-चुने रचनाकारों में एक नाम माहेश्वर तिवारी जी का भी जोड़ा जा सकता है। यह कोई सामान्य बात तो नहीं है। शायद तभी उनके गीत जितने पढ़ने में अच्छे लगते हैं, उतने ही सुनने और गुनने में। और जिस भावक को तिवारी जी की रचनाओं से गुजरने का सुअवसर न मिला हो, उसके लिये उनकी ये पंक्तियाँ कही जा सकती हैं- "कभी इधर से/ कभी उधर से/ गुजर गये बादल/ अनबरसे/ अनधोए से पेड़ खड़े हैं/ लगता जैसे चित्र जड़े हैं/ बूंदों के ख़त/ अबकी नहीं मिले/ मौसम को बादल-घर से"। २२ जुलाई १९३९ को बस्ती (अब सन्तकबीर नगर) के मलौली गांव में जन्मे माहेश्वर तिवारी ने विभिन्न नगरों (गोरखपुर, बनारस, होशंगाबाद, विदिशा आदि ) में अपने दीर्घकालिक प्रवास के दौरान न केवल गीत-नवगीत की पताका को फहराए रखा, बल्कि मुरादाबाद में स्थाई रूप से रच-बस जाने के बाद भी उनकी यह साधना जारी है। ''हरसिंगार कोई तो हो', 'सच की कोई शर्त नहीं', 'नदी का अकेलापन' और 'फूल आये हैं कनेरों में' आपके चर्चित नवगीत संग्रह हैं, जबकि आपके नवगीत 'पांच जोड़ बांसुरी', 'एक सप्तक और', 'नवगीत दशक दो', 'यात्रा में साथ-साथ', 'गीतायन' , 'स्वान्तः सुखाय' जैसे महत्वपूर्ण संकलनों में भी प्रकाशित हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से पुरस्कृत यह अदभुत गीतकवि यूँ तो दर्जनों सम्मान प्राप्त कर चुका है, लेकिन जब उन्हें बरेली (उ.प्र.) से 'विष्णु प्रभाकर स्मृति साहित्य सम्मान-२०११' से विभूषित किया गया, तो वह भाव-विभोर हो गये; क्योंकि वह अपने प्रारम्भिक काल से विष्णु प्रभाकार जी एवं शरद जोशी जी के प्रशंसक रहे और उनके नाम से यह सम्मान मिलना उनके लिये बहुत बड़ी बात थी। संपर्क-'हरसिंगार', ब/म -४८, नवीन नगर, मुरादाबाद (उ.प्र.), मोब- ०९४५६६८९९९८ ।
चित्र गूगल से साभार |
जैसे -तैसे गुज़रा है
पिछला साल
एक-एक दिन बीता है
अपना
बस हीरा चाटते हुए
हाथ से निबाले की
दूरियां
और बढीं, पाटते हुए
घर से, चौराहों तक
झूलतीं हवाओं में
मिली हमें
कुछ झुलसे रिश्तों की
खाल
व्यर्थ हुई
लिपियों-भाषाओं की
नए-नए शब्दों की खोज
शहर
लाश घर में तब्दील हुए
गिद्धों का मना महाभोज
बघनखा पहनकर
स्पर्शों में
घेरता रहा हमको
शब्दों का
आक्टोपस जाल
Maheshwar Tiwaree kee kavitaaon ko padhnaa
जवाब देंहटाएंbahut achchha lagtaa hai . Seedhe - saade
shabdon mein unkee yah kavita mun ko sparsh
kartee hai .
भाई अबनीश सिंह जी आदरणीय माहेश्वर तिवारी जी का इतना सुन्दर नवगीत पढवाने के लिए आपका आभार
जवाब देंहटाएंगया साल क्या-क्या सोचने के लिए छोड़ जाता है, इस कविता से पता चलता है . बधाई स्वीकारें- विजय कुमार शर्मा
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आदरणीय अविनाश सिंह जी
जवाब देंहटाएंसुप्रसिद्ध नवगीत कवि माहेश्वर तिवारी जी का परिचय और एक गीत पढवाने के लिए आपका आभार
बीते साल की व्यथा बहुत सुन्दरता से अभिव्यक्त की गयी है इस नव गीत में।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना है
जवाब देंहटाएंसर्वश्री प्राण जी, तुषार जी , विजयजी, केवल राम जी, डॉ दिव्या जी, सवाई जी आपकी प्रतिक्रियाओं के लिए हृदय से आभारी हूं. :- अवनीश सिंह चौहान
जवाब देंहटाएंParam shraddhey pitrwat dada Tiwariji ke navgeet hindi sahity ki amuly dhrohar to hain hi saath hi apni vishishtta ke karan apni alag pahchan sthapit karte hain.Bhai Abnishji ka aabhar dada ke itne achchhe navgeet ko padhwane ke liye.
जवाब देंहटाएं-Yogendra Verma "Vyom"
सुन्दर गीत के लिये तुशार जी को बधाई। आपका धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंअविनाश सिंह जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
सुप्रसिद्ध नवगीत कवि माहेश्वर तिवारी जी का परिचय और एक गीत पढवाने के लिए
आभार
आदरणीय भाई माहेश्वर जी का गीत आनंदित कर गया,आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.२५-३० वर्षों से उनका स्नेह-पात्र हूँ,इधर काफी दिनों से मुलाक़ात नहीं हुई है......
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