दिनेश पालीवाल
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३१ जनवरी १९४५ को जनपद इटावा (उ.प्र.) के ग्राम सरसई नावर में जन्मे दिनेश पालीवाल जी सेवा निवृत्ति के बाद इटावा में स्वतंत्र लेखन कार्य कर रहे हैं। आप गहन मानवीय संवेदना के सुप्रिसिद्ध कथाकार हैं । आपकी ५०० से अधिक कहानियां, १५० से अधिक बालकथाएं, उपन्यास, सामाजिक व्यंग, आलेख आदि लब्ध प्रितिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं । दुश्मन, दूसरा आदमी , पराए शहर में, भीतर का सच, ढलते सूरज का अँधेरा , अखंडित इन्द्रधनुष, गूंगे हाशिए, तोताचश्म, बिजूखा, कुछ बेमतलब लोग, बूढ़े वृक्ष का दर्द, यह भी सच है, दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की, रुका हुआ फैसला, एक अच्छी सी लड़की (सभी कहानी संग्रह) और जो हो रहा है, पत्थर प्रश्नों के बीच, सबसे खतरनाक आदमी, वे हम और वह, कमीना, हीरोइन की खोज, उसके साथ सफ़र, एक ख़त एक कहानी, बिखरा हुआ घोंसला (सभी उपन्यास) अभी तक आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं।आपको कई सम्मानों से अलंकृत किया जा चुका है । संपर्क: राधाकृष्ण भवन, चौगुर्जी, इटावा (उ.प्र.) . संपर्कभाष: ०९४११२३८५५५। यहां पर आपकी दो लघुकथाएं दी जा रहीं हैं :-
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
मोहल्ले में सब की यही राय थी कि वह एक भला आदमी था । ८०-८२ साल की भरी पूरी उम्र में मरा। कभी किसी औरत की तरफ नज़र उठाकर नहीं देखा । कभी किसी की बुराई नहीं की । कभी किसी से झगड़ा नहीं, कभी किसी का विरोध नहीं किया ।चुपचाप पढ़ा। सिर झुकाये नौकरी की । माँ -बाप ने जिससे तय कर दी, उससे शादी कर ली । बच्चे हुये, उन्हें पढ़ा-लिखाकर अपनी तरह मामूली नौकरी पर लगा लिया । मोहल्ले के मंदिर में रोज सुबह अगरबत्ती जलाता, भक्ति-भाव से घंटा बजता । सर झुकाए चुपचाप घर चला आता । सबकी राय में वह एक भला आदमी था।.
मैंने लोगों से पूछा - नाम क्या था उसका?
-किसका? मोहल्ले के लोगों ने मुझसे पूछा ।
-उसी भले आदमी का जो सिर झकाये चुपचाप मर गया?
-उसका नाम तो हमें नहीं मालूम, पर था वह भला आदमी ! मोहल्ले के लोगों ने कहा । उसका भी दुश्मन नहीं था ।
- और दोस्त? मैंने पूछा ।
मोहल्ले में सब बगलें झाँक रहे थे ।
२. डर
अजीब उलझन में पड़ गया हूँ भाई। एक आदमी ने मुझे अपना बकरा देते हुए कहा क़ि बकरे को रोज पांच किलो चने खिलाऊं परन्तु शर्त रखी है कि बकरे का वज़न पांच महीने बाद भी न बढ़ पाये तो वह बीस हजार रुपये ईनाम देगा और बकरे पर हुआ खर्चा अलग से!
तो इसमें उलझन क्या है? उसने पूछा।
उलझन है क़ि पांच महीने तक पांच किलो चने खिलाये तो बकरे का वज़न बढेगा ही। वह मोटा तगड़ा होगा ही. मैं शर्त हार जाऊंगा। हार गया तो हर्जाने में बीस हजार रुपये मुझे देने होंगे और बकरे पर हुआ खर्च भी नहीं मिलेगा।
मेरे पास एक तरकीब है, अगर आजमा पाओ तो ...
फ़ौरन बताओ, वह अधीर हो उठा।
किसी बंजारे की सहायता से एक भेड़िया पकड़ लाओ। उसे बकरे के सामने बाँध दो। फिर बकरे को कितना भी खिलाना-पिलाना, उसका वजन दस ग्राम भी नहीं बढेगा।
दोनों कथाएँ बहुत अच्छी लगी| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंदिनेश पालीवाल जी एक स्थापित नाम हैं...उनकी कथाएं पढ़ना हमेशा सुखद लगता है। दोनों कथाएं भी बहुत रोचक हैं|
जवाब देंहटाएंदोनों कहानियां अच्छी लगी.... दिनेश पालीवाल जी की रचनाएँ साझा करने का आभार
जवाब देंहटाएंThanks for your visit to my blog, am sure you are sharing a lot wisdom here yourself:)
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