कृष्ण कुमार 'नाज़' |
मुरादाबाद की मिट्टी में पैदा हुए कारीगरों ने जहाँ पीतल की चमक को सम्पूर्ण विश्व में फैलाया है, वहीं साहित्य जगत में यहाँ के कई साहित्यकारों ने अपनी लेखनी से इसकी पहचान को सदा-सदा के लिए सुनहरा बना दिया है; इन्हीं साहित्यकारों में एक चर्चित नाम है कृष्णबिहारी ‘नूर’ के शिष्य कृष्ण कुमार 'नाज़' का। कृष्ण कुमार 'नाज़' का जन्म 10 जनवरी, 1961 में जनपद मुरादाबाद के ग्राम कूरी रवाना (उत्तरप्रदेश, भारत) में हुआ। इन्होंने एम.ए. (समाजशास्त्र, उर्दू व हिंदी) तथा बी.एड. की उपाधियाँ प्राप्त कीं और साहित्यिक पत्रकारिता करने लगे। किन्तु जब परिवार की जिम्मेदारियों और आवश्यकताओं ने इन्हें स्थाई नौकरी ढूढ़ने के लिये बाध्य कर दिया तो इन्होंने राज्य सरकार की नौकरी कर ली। लिखने-पढ़ने का शौक था ही, सो इन्होंने ग़ज़ल, गीत, नाटक, समीक्षा आदि विधाओं में सृजनात्मक लेखन किया और कम उम्र में ही अपने समय के मुरादाबादी साहित्यकारों में अपनी विशिष्ट पहचान बना ली। साथ ही इन्होंने अपने जीवन-व्यवहार में विनम्रता और सादगी का भाव भी बनाये रखा; अपने एक दोहे में वे कहते भी हैं— " 'नाज़' हुए तो पा लिया, सब लोगों का प्यार/ गुम हो जाते भीड़ में, वरना कृष्ण कुमार।" वर्तमान में आप रूहेलखंड विश्वविद्यालय, बरेली से हिन्दी में पीएच.डी. कर रहे हैं। इनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं— ‘इक्कीसवीं सदी के लिए’ (ग़ज़ल संग्रह), ‘गुनगुनी धूप’ (ग़ज़ल संग्रह), ‘मन की सतह पर’ (गीत संग्रह), ‘जीवन के परिदृश्य’ (नाटक संग्रह)। इन्होंने वाणी प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित पुस्तक 'दोहों की चौपाल' का सम्पादन किया है। आकाशवाणी रामपुर द्वारा इनके दो नाटक प्रसारित तथा दर्जन-भर ग़ज़लें एवं गीत भी संगीतबद्ध होकर प्रसारित किये चुके हैं। संपर्क— सी-130, हिमगिरि कॉलोनी, काँठ रोड, मुरादाबाद— 244001 (उ.प्र.), 99273-76877।
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
सर पे मंडराता है जाने कैसा संकट इन दिनों
छीन ली जिसने लबों से मुस्कुराहट इन दिनों
रह गई अपने-पराये की कहाँ पहचान अब
कितना सूना हो गया रिश्तों का पनघट इन दिनों
शहर से अब गाँव की आबो हवा में लौट आ
बूढ़ी माँ ने बस लगा रक्खी है ये रट इन दिनों
इक दुल्हन की तरह सज-धज जातीं हैं नीदें मेरी
आँखों को मिलती है जब सपनों की आहट इन दिनों
चारदीवारी में जैसे क़ैद हैं बस्ती के लोग
कोई दरवाज़ा न खिड़की है, न चौखट इन दिनों
इश्क़ को आख़िर हवस ने कर लिया अपना शिकार
जहन और दिल में है अनबन और खटपट इन दिनों ।
२ . गिरता हुआ कंकर
किसी तालाब पर गिरता हुआ कंकर बनाता है
मुसव्विर कांपती लहरों का जब मंज़र बनाता है
खुद उस पर तंज़ करतीं हैं बहुत मजबूरियां उसकी
कोई थककर अगर फुटपाथ को बिस्तर बनाता है
नहीं शायद उसे मालूम वो नादान है कितना
क़ि सूरज के लिए जो मोम का ख़ंजर बनाता है
कई रंगों के संगम को अगर जीवन कहा जाए
तो हर पहलू से वो तस्वीर को सुन्दर बनाता है
तुम उसके घर को देखो तो न छत है और न दीवारें
सुना है शहर में वो दूसरों के घर बनाता है ।
३. अँधेरा शहर में...
इक अँधेरा शहर में है दूर तक छाया हुआ
इसलिए हर आदमीं मिलता है घबराया हुआ
हो गया जो देवता बनकर बहुत मग़रूर वो
एक पत्थर था ज़मानेभर का ठुकराया हुआ
आइये कुछ शेर लिक्खें अब अंधेरों के ख़िलाफ़
आज है सूरज क़लम के पास कुछ आया हुआ
कह रहा है दर्द की कोई कहानी आज फिर
आंसू जैसा इक मुसाफिर आँख में आया हुआ
छीन ली उस ख़्वाब ने ही रोशनी आँखों की 'नाज़'
जो उजालों के लिए था आँख में आया हुआ ।
४. मुश्किलें राह की
मुश्किलें राह की आसान बनाते रहिए
हो गया साथ तो फिर साथ निभाते रहिए
हो न जाये कहीं मग़रूर वो उगता सूरज
उंगलियाँ उसपे ज़रूरी है उठाते रहिए
हो ललक जिनमें जरा-सी भी गगन छूने की
हौसला ऐसे परिंदों का बढ़ाते रहिए
रात काटे नहीं कटती है जो ख़ामोशी हो
मुझको मेरी ही ग़ज़ल कोई सुनाते रहिए
आ भी सकता है वो सहरा में समंदर बनकर
प्यासे हिरनों को ज़रा आस बंधाते रहिए ।
Char Gazalen: Krishn Kumar 'Naz'
Charon hi gazalen behtreen hain.....
जवाब देंहटाएंकृष्ण कुमार 'नाज़' की यथार्थपरक बेहतरीन ग़ज़लों की
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!
बेहद शानदार लाजवाब गज़लें.........
जवाब देंहटाएंप्रस्तुत करने के लिये.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
BhaiChauhan Sb many many Thanks. Naaz
जवाब देंहटाएंबेहद शानदार लाजवाब गज़लें.........
जवाब देंहटाएंअवनीश जी सुन्दर प्रस्तुतिकरण के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद एवं आभार...
नाज जी ,बहुत सुन्दर गजलें | बहुत बहुत बधाई |
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