कृति : धार पर हम (दो)
सम्पादक : वीरेंद्र आस्तिक
प्रकाशन वर्ष : 2010
मूल्य : सजिल्द- रुo 395/-
प्रकाशक : कल्पना प्रकाशन, बी-1770, जहाँगीर पुरी
(नजदीक स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया), दिल्ली- 110002
दूरभाष: 011-65185557, 9415474755
ई-मेल: kkpdevinder@vsnl.net
फ्लैप से...
धार पर हम (दो) सामने हो तो धार पर हम (एक) का स्मरण स्वाभाविक है. दरअसल उस कृति में गीत के निर्दोष मन का सच्चा शास्त्र रचा गया है...कहने का आशय यह है कि धार पर हम (एक) में गीत की जिन चिंगारियों को सुरक्षित किया गया था आज वे आलोक पर्व की भूमिका में हैं. आज धार पर हम (दो) का पाठ दो गुना स्फूर्त और कुतूहलप्रद है तो यह भी उसी का प्रभाव हो सकता है....यहाँ भी सम्पादकीय के रूप में जो आलेख है, उसमें हिन्दी कविता के कई एतिहासिक एवं रचनात्मक पद-चिन्हों-पड़ावों का पुनर्मूल्यांकन हुआ है....यहाँ सम्पादक की दृष्टि शत-प्रतिशत बेबाक और पारदर्शी है. बावजूद इसके कि न तो कभी सत्य चुप बैठता है और न कभी विमर्श स्थगित होता है....इसका दूसरा भाग सर्जना का है, प्रभात की ओस-बूंदों का संचयन. ध्यातव्य ये है कि संकलित सर्जक गीत-नवगीत के पैरवकार भी हैं. समकालीन रचनात्मकता के परिदृश्य पर उनकी भी अहम् भूमिका है....यह त्रासदी है- कल गीत की अस्मिता पर हमले बोले जा रहे थे आज भारतीय संस्कृति पर हमले हो रहे हैं. कल भी गीत ही भारती मन का कवच था, आज भी वह कवच है, यथावत. ....इतिहास, फिर उसका भविष्य (प्रगति) और फिर एक नया इतिहास, यही एक चक्रीय बोध कराता है साहित्य की दुनिया का, विशेषता गीत-नवगीत की दुनिया का. वर्तमान जो नया इतिहास रच रहा है उसी में भविष्य के बीज पुनः सुरक्षित हो रहे हैं. कुछ ऐसा ही मंतव्य है इस कृति में सम्मिलित गीतकार महेश अनघ (अन्य सम्मिलित गीतकार हैं- सर्वश्री कुमार रवींद्र, मधुसूदन साहा, अश्वघोष, राम सेंगर, नचिकेता, विष्णु विराट, महेंद्र नेह, योगेन्द्र दत्त शर्मा, ओम प्रकाश सिंह, राजेन्द्र गौतम, विनोद श्रीवास्तव, जय चक्रवर्ती, भारतेंदु मिश्र, यशोधरा राठौर तथा मनोज जैन 'मधुर' और उदयभानु हँस, चिरंजीत, उद्भ्रांत के पत्रों के साथ विमल जी तथा देवेन्द्र शर्मा जी की भूमिकाएं) की इन पंक्तियों का-
जब पानी चुक जाए,
धरती सागर आँखों का
बोझ उठाए नहीं उठे
पंछी से पंखों का
नानी का बटुआ टटोलना
दो हजार सत्तर में
मुहरबंद है गीत, खोलना
दो हजार सत्तर में
यह दस्तावेजी कृति विवादास्पद हो सकती है, प्रतिरोधात्मक भी हो सकती है, पर किसी भी कीमत पर केवल अलमारी की शोभा नहीं बन सकती. मेरा विश्वास है कि धार पर हम (दो) से गुजरते हुए पाठक, लेखक और समीक्षक सभी विद्वतजन जरूर कुछ सुगबुगाएंगे, कोई नया विकल्प बुनेंगे. इस कृति की यही सार्थकता होगी. मुझे नवगीतकार श्री वीरेंद्र आस्तिक के अगले अनुष्ठान की टोह और प्रतीक्षा बराबर रहेगी. - एक पाठक
जब पानी चुक जाए,
धरती सागर आँखों का
बोझ उठाए नहीं उठे
पंछी से पंखों का
नानी का बटुआ टटोलना
दो हजार सत्तर में
मुहरबंद है गीत, खोलना
दो हजार सत्तर में
यह दस्तावेजी कृति विवादास्पद हो सकती है, प्रतिरोधात्मक भी हो सकती है, पर किसी भी कीमत पर केवल अलमारी की शोभा नहीं बन सकती. मेरा विश्वास है कि धार पर हम (दो) से गुजरते हुए पाठक, लेखक और समीक्षक सभी विद्वतजन जरूर कुछ सुगबुगाएंगे, कोई नया विकल्प बुनेंगे. इस कृति की यही सार्थकता होगी. मुझे नवगीतकार श्री वीरेंद्र आस्तिक के अगले अनुष्ठान की टोह और प्रतीक्षा बराबर रहेगी. - एक पाठक
संपादक का पता:
एल-60, गंगा विहार, कानपुर-208010
दूरभाष: 0512-2406789, 09415474755
Book: Dhar Par Ham (Do): Editor- Veerendra Astik
इस महत्वपूर्ण प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंधार पर हम (दो) के लिए वीरेंद्र आस्तिक को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंइस पुस्तक की जानकारी देने के लिए आभार...
धार पर हम (दो) के लिए वीरेंद्र आस्तिक को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंपुस्तक के विषय में जानकर अच्छा लगा।