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रविवार, 1 मई 2011

पैडी मार्टिन और उनकी पाँच कविताएँ — अवनीश सिंह चौहान (अनुवादक)


कभी पीड़ा से लड़ा मैं/ कभी कष्टॊं से भिड़ा मैं
दुख साथ रहे बचपन से/ रहा समक्ष मौत के खड़ा मैं

अनिल जनविजय द्वारा अनुवादित रूसी कवि अनातोली परपरा की उपर्युक्त पंक्तियाँ जिस प्रकार के जीवन-संघर्ष की और संकेत कर रही हैं, लगभग उसी प्रकार का जीवन-संघर्ष आस्ट्रेलिया के ख्यात कवि पैट्रिक 'पैडी' मार्टिन ने किया है। 

पैडी मार्टिन का जन्म पश्चिमी न्यू साउथ वेल्स के एक छोटे से क़स्बे ऑरेंज में 1947 में किस तिथि को हुआ था, स्वयं उन्हें भी पता नहीं था। उन्हें सिर्फ इतना याद रहा कि वह जब तीन वर्ष के थे तब उनकी माँ का निधन हो गया, जिससे उनके पिताश्री को गहरा सदमा लगा और वे नियमित शराब पीने लगे। पिताश्री की इस दुखद स्थित को देखकर उनका बालमन अक्सर भीतर-ही-भीतर रोता रहता था। माँ के निधन के ठीक तेरह वर्ष बाद उनके पिताश्री का भी निधन हो गया। पिताश्री के जाने से न रहने का ठिकाना बचा और न ही जिंदा रहने के लिए भोजन-वस्त्र आदि की आपूर्ति हो सकी। अतः वह अपना पैतृक स्थान छोड़कर सिडनी आ गए, जहाँ वह खुले आसमान के नीचे सड़क किनारे अपना जीवन विताने लगे। कई वर्ष इसी प्रकार से संघर्ष करने के बाद उनका एक मेहनतकश महिला मेरी मार्टिन से विवाह हो गया। जीवन में कुछ उम्मीदें जगीं तो भारत चले आये, दिल्ली में छः वर्ष तक काम करते रहे और जब अपनी माटी, अपने वतन की याद आयी तो सिडनी (आस्ट्रेलिया) वापस चले गए। भारत में प्रवास के दौरान उन पर भारतीय दर्शन एवं अध्यात्म (विशेषकर महात्मा बुद्ध के उपदेश) की अमिट छाप पड़ी, जिसकी झलक उनके द्वारा सृजित अंग्रेजी कविताओं में स्पष्ट दिखाई पड़ती है।

हरफनमौला चित्रकार पैडी मार्टिन जब ग्यारह वर्ष के हुए तब उनकी पहली कविता स्थानीय अखबार में प्रकाशित हुई थी। बड़े होने पर वह ए.बी. बेन्जो, जो आस्ट्रेलिया के अनधिकारिक राष्ट्रगीत— 'वाल्टजिंग माटिल्डा' के प्रतिष्ठित लेखक हैं, तथा हेनरी लोसन, जो 'अन्डरडॉग' एवं 'सोंग ऑफ़ द रिपब्लिक' के ख्यात लेखक हैं, से विशेष रूप से प्रभावित हुए और इन विचारकों से प्रेरणा पाकर सार्थक लेखन करने लगे। जीवन के उत्तरार्द्ध में उनके दो कविता संग्रह— 'एन्शेन्ट पोइट सीरीज' तथा 'द कन्वरसेशन सीरीज' प्रकाश में आये। 

प्रेम, प्रकृति और अध्यात्म के पैरोकार पैडी मार्टिन आस्ट्रेलिया तथा कई अन्य देशों के युवा कवियों के प्रेरणाश्रोत रहे हैं। इस सन्दर्भ में अपना एक संस्मरण यहाँ जोड़ना चाहूँगा— अप्रैल 2010 में पहली बार मेरी अंग्रेजी कविता 'पोइटफ्रीक डॉट कॉम' पर छपी थी। पैडी मार्टिन ने इस कविता को नोटिस किया और उस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देकर मुझे प्रोत्साहित भी किया। दूर-देश से किसी युवाकवि को जब इस प्रकार से प्रोत्साहन मिलता है, तब उसका उत्साहवर्धन होना स्वाभाविक है। फिर क्या था— मार्टिन जी से मेरे मैत्री-संबंध प्रगाढ़ होने लगे और ई-मेल आदि से उनसे अक्सर बातचीत भी होने लगी। बातचीत के दौरान वह मुझे अंग्रेजी में कविता लिखने की तकनीक बताया करते थे, जिसके परिणामस्वरूप उन दिनों उनके मार्गदर्शन में मैंने दो-चार अंग्रेजी कविताएँ लिखने का प्रयास भी किया था। 

उन दिनों 'पोइटफ्रीक' पर आयरलेंड की चर्चित कवयित्री मेरी शाइन संपादक हुआ करती थीं— वह भी मेरी अंग्रेजी कविताओं पर सटीक टिप्पणी किया करती थीं। बाद में मेरी शाइन के संपादन में प्रकाश बुक डिपो, बरेली से 'ए स्ट्रिंग ऑफ़ वर्ड्स' (अंग्रेजी कविताओं का संकलन, 2010) प्रकाशित हुआ, जिसमें मार्टिन जी के साथ मुझे भी सम्मिलित किया गया था। दुर्योग से जिस समय यह संकलन संपादित किया जा रहा था, मार्टिन जी बहुत अस्वस्थ थे। फालिस के कारण उनका आधा शरीर काम नहीं कर रहा था। कुछ स्वस्थ होने पर उन्होंने 'पोइट्री वेन्यू' (सिडनी) में लगभग 75 साहित्य-प्रेमियों के बीच उक्त संकलन का लोकार्पण करवाया और मेरी शाइन और मेरी कविताओं का सस्वर पाठ करवाने का प्रबंध किया। इसी दौरान उन्होंने अपनी दोनों काव्य कृतियाँ अपना आशीर्वचन लिखकर मुझे डाक द्वारा भेजीं थीं। इस घटना के कुछ समय बाद पैडी मार्टिन को पुनः फालिस की शिकायत हुई। उन्हें सिडनी के एक अस्पताल में भर्ती करवाया गया, जहाँ पर 04 फरवरी, 2011 को उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु पर दुनियाभर के तीन सौ से अधिक कवियों और लेखकों ने उनकी याद में इंटरनेट पर कविताएँ लिखकर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी थी।  


आते हुए देखा है 
आपको 
आपने पुकारा मुझे
'कवि' कहकर
'सावधान!' 
गंभीरता से आपने चेताया 
'अभिमान' और 'नम्रता' 
प्रतीत होते हैं
जुड़वां 
किन्तु जनक
अलग हैं उनके
एक को जना
अहं ने  
दूसरे को 
सदाचार एवं पवित्रता ने 

नश्वर प्राणी
नहीं है
शब्द-सृजक 
कोई दरवाजा नहीं
आपके उद्यान का 
ठहरना चाहे
वहाँ पर जो
उन सभी का 
स्वागत है

शब्द 
आपके उद्यान में 
उगते हैं 
कल्पना की 
चाहरदीवारी से परे
समय की धुंध से होकर
होते हैं प्रकट 

माली हैं आप 
शब्दों के 
वे बीज हैं 
आत्मा के गीतों के
मैं आया हूँ 
आपके शब्दों का  
पान करने  
उद्धार करने 
अपने इस शरीर का 
और करने अनुप्राणित
अपनी आत्मा को 
इससे पहले कि 
मैं प्रवेश करूँ 
नये दिवस में
अगली यात्रा के लिये


जानता हूँ मैं
आप वहाँ हैं 
यद्यपि मैं 
व्यक्त नहीं कर सकता 
किन्तु 
देख रहा हूँ 
अब मैं आपको 
अधिक स्पष्ट 
आप ही हैं
प्रथम दृष्टा

आप ही हैं 
जिनके हृदय ने 
महसूस किया 
हमारी प्रारम्भिकी का 
स्पंदन
आप ही हैं 
जिन्होंने गाया
अभी तक 
गाये गये गीतों में
प्रथम गीत

आपका गीत 
गूँज रहा है 
अब भी
आपके मधुर शब्द
कर रहे हैं नृत्य 
हमारी आत्माओं के
होठों पर 

कोई भी शब्द
नहीं दे सकता 
मैं अपने हृदय को 
क्या समझ सकेगा 
नश्वर शरीर!
क्योंकि   
वे जुड़े हैं
हमारी आत्मा से
दोनों निमित्त हैं
परम शक्ति के

वर्षों तक 
बैठा हूँ मैं
अपने उपवन में
जीवन का संगीत
सुनने के लिए
आपकी आत्मा को 
गाते हुए
(ब्रह्मांड कवि के गीत)
सुनने से पहले 

३. सुनहरा तोता 

लाशों में पड़ी
एक लाश
इस परित्यक्त स्थान पर
न आएगा कोई प्रेमी
थामने मुझे
न ही कोई होठ
चूमेंगे मेरा चेहरा

कसके पकड़ रक्खी है
मैंने वह बन्दूक
जो थमाई थी
मेरे देश ने मुझे
मेरे होठों पर
जम गई है
वह प्रार्थना
जिसके बारे में
सोचा था मैंने
कि यह बचायेगी मुझे!

दोनों ही-
सुनहरा तोता
जो आने वाली सुबह का
करता है स्वागत
अपनी तीखी आवाज से
और यूकलिप्टस की
वह सुगंध
चली गई है
मेरे अन्दर से
सदा-सदा के लिए!

अंगहीन सैनिकों के बीच
पड़ा रहूँगा मैं यहाँ
इस भ्रम से पूरित स्थान पर
इन सभी
अपरिचित मृतकों के साथ!

तब तक
जब तक कि नहीं
ढक दी जाती
यह युद्धभूमि
पन्ने से हरे लिबास से
उस आतंक की छवि को
छिपाने के लिए
जिसे देखा है उन सब ने!

जब तक कि नहीं
शांत हो जाती
युद्ध की कड़कड़ाहट
जब तक कि नहीं
समाप्त हो जाती
मानव की घृणा
कोई सुनहरा तोता
स्वागत नहीं करेगा
आने वाली सुबह का
अपनी तीखी आवाज़ से!

४. एक जलधारा से संवाद

अतीत में झांकते हुए
जैसे
मैं यहाँ बैठा हूँ
आपके समीप
देख सकता हूँ मैं
वह सब कुछ
जो प्रकट हुआ है
यहाँ पर
हमारी उपस्थिति के परिणामस्वरूप
मैंने हर बसंत को
देखा है
जलतरंगों को
आपके जलाशय में
लहराते हुए
ऊपर-नीचे

सरपत
डाल रहा है अपनी परछाईं
आपके तट के
छिछले पानी पर
लोमड़ी और खरगोश
आते हैं पास आपके
बुझाने अपनी प्यास
प्रतिदिन

जैसे कि
शीत ऋतु देती है
आपको
गलने वाली ताज़ी वर्फ
क्या मैं नहीं दूंगा
प्रतिदान
जो कुछ प्राप्त हुआ है मुझे
बरसों-बरस आपसे

इसीलिए आप और मैं
बहते रहेंगे
वहां तक
जहाँ तक करेगी अनुसरण हमारा
हमारी युवा पीढ़ी
शायद हम जायेंगे
वापस
किसी विशाल समुद्र के
अंजान गर्भ तक!

५. एक विचारणीय क्षण

इसीलिए मैं बैठता हूँ यहाँ
निर्जन बागीचे के एकांत कोने में
विचार करता हुआ कि
कितनी बार किया है मैंने प्रयास
इन्द्रधनुष को पकड़ने का
तब तक
जब तक कि घेरे रहे मुझे
आस्ट्रेलियाई प्रजाति के सुन्दर तोते
और तितलियाँ

अरे! याद आता है
वह समय
जब बैठा था मैं
नदी के किनारे
अंजान होकर
कि मेरे ही समीप
वह बह रही है
अपनी डगर पर
किसी सुन्दर स्थान की ओर
काश! मैं जान पाता
जब मैं वहां बैठा हुआ था
क्या मैंने कभी प्रयास किया
उसे थामने का

अब नीरवता में
बैठा हूँ मैं
बागीचे के इस कोने में
जानता हूँ
जो कुछ भी वहाँ था
उसका अपना अर्थ था
और जो होना है
समय आने पर होगा ही

तितलियाँ, तोते, नदी और मैं
सभी बढ़ते रहेंगे
विशालतम की ओर
और 'मैं' ही हूँ
तितली, तोता और नदी
जैसे कि
तितली, तोता और नदी है 'मैं'

7 टिप्‍पणियां:

  1. शब्द
    आपके उद्यान में
    उगते हैं
    कल्पना की
    चाहरदीवारी से परे
    समय की धुंध से होकर
    होते हैं प्रकट

    पैडी मार्टिन जी को जानना सुखद अनुभव से गुजरना है.
    इस महत्वपूर्ण प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक आभार।

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  2. Paddy Martin kee kavitaon ko poore vishwa main saraha gaya hai. Aaj Paddy martin hamare beech naheen hain , yah dukhad hai. Abnish singh chauhan ne unkee angreji kavitaon ka anuvaad kar ek achchha kaary kiya hai. Anuvad bhee sundar hai.

    जवाब देंहटाएं
  3. नश्वर प्राणी
    नहीं है
    शब्द-सृजक
    कोई दरवाजा नहीं
    आपके उद्यान का
    ठहराना चाहे
    वहाँ पर जो
    उन सभी का
    स्वागत है...

    Great presentation !
    Lovely pics !

    .

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  4. namaskaar !
    behtreen kavitae !anuwaad ke liye anil jee ko bahut bahut badhai !
    saadar !

    जवाब देंहटाएं
  5. अवनीश सिंह चौहान ji ke अनुवाद द्वारा प्रवास के नामी कवी को पढना और संझना एक अति सुंदर अनुभूति है....शब्दों कि बुनावट कसावट कविता को सम्पूर्णता से बाँधने में कामयाब हुई है.


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