योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' |
शब्दों से बतियाने वाले
सभी सिलसिले टूट रहे हैं
यदा-कदा जब ख़त आते हैं
सौ-सौ बार उन्हें पढ़ता हूँ।
सभी सिलसिले टूट रहे हैं
यदा-कदा जब ख़त आते हैं
सौ-सौ बार उन्हें पढ़ता हूँ।
जहाँ पत्र लेखन की परंपरा के क्षीण होने का दर्द सत्येन्द्र तिवारी अपने गीत 'जब ख़त आते हैं' में व्यंजित करते हैं, वहीं योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' की अद्यतन रचना "तुमको पत्र लिखूँ' पत्र लिखने की बात करती है; क्योंकि तकनीकी युग में मोबाइल के चलन से पत्र लिखना बहुत कम हो पा रहा है। कवि जीवन के खट्टे-मीठे तमाम अनुभवों को अपने पत्र में लिखना चाहता है और यह चाहत उसे मन को हल्का करने में सहयोग देगी, ऐसा प्रतीत होता है. तभी तो वह कह उठता है- "कई दिनों से सोच रहा हूँ / तुमको पत्र लिखूँ / मोबाइल से बातें तो काफ़ी/ हो जाती हैं / लेकिन शब्दों की खुशबुएँ / कहाँ मिल पाती हैं / थके-थके से खट्टे-मीठे / बीते सत्र लिखूँ।" जीवन के कटु अनुभवों के बीच भी यह गीतकार आश्वस्त है कि नई पीढ़ी सकारात्मक परिवर्तन लायेगी- "इस बच्चे को देखो, यह ही / नवयुग लाएगा ।" अपनी बात को नए अंदाज में कहने वाले योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' न केवल अच्छे गीतकार है बल्कि सच्चे साहित्य सेवी भी हैं. 'व्योम' जी के प्रयासों से आज महानगर में न केवल साहित्यिक गतिविधियाँ बढीं हैं बल्कि उनसे सम्बंधित समाचार को देश भर की पत्र-पत्रिकाओं को प्रेषित करने का पुनीत कार्य भी अधिकांशतः आप ही करते है। इस रचनाकार का जन्म हुआ 09 सितंबर 1970 को मुरादाबाद में। आप लेखाकार (कृषि विभाग, उ०प्र०) पद पर कार्यरत हैं। देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपके गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे, कहानी, संस्मरण आदि प्रकाशित होते रहे हैं। 'इस कोलाहल में' आपका काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुका हैं। कविता-संग्रह ‘इस कोलाहल में’ के लिए आपको भाऊराव देवरस सेवा न्यास, लखनऊ द्वारा ‘पं० प्रताप नारायण मिश्र स्मृति सम्मान-2009’ से सम्मानित किया जा चुका है। आप वेब पत्रिका गीत-पहल के संपादक हैं। इस गीतकवि के दो नवगीत हम आप तक पहुंचा रहे हैं:
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
कई दिनों से सोच रहा हूँ
तुमको पत्र लिखूँ ।
लिखूं कुशलता घर की, आँगन
की दीवार लिखूँ
खुशफ़हमी की फ़सलें, मन के
खरपतवार लिखूँ
रिश्तों के पैबंद लगे जर्जर
से वस्त्र लिखूँ ।
कभी सोचता हूँ कटु अनुभव
बाँटूं जीवन के
या फिर लिखूँ याद आते दिन
गुज़रे बचपन के
आने वाले उजले पल को
भी सर्वत्र लिखूँ ।
मोबाइल से बातें तो काफ़ी
हो जाती हैं
लेकिन शब्दों की खुशबुएँ
कहाँ मिल पाती हैं
थके-थके से खट्टे-मीठे
बीते सत्र लिखूँ ।
2. इस बच्चे को देखो
इस बच्चे को देखो, यह ही
नवयुग लाएगा ।
संबंधों में मौन शिखर पर
बंद हुए संवाद
मौलिकता गुम हुई कहीं, अब
हावी हैं अनुवाद
घुप्प अँधेरे में आशा की
किरण जगाएगा ।
घुटन भरा हर पल लगता ज्यों
मुड़ा-तुड़ा अख़वार
अपनों के अपनेपन में भी
शामिल है व्यापार
नई तरह से यह उलझी
गुत्थी सुलझाएगा ।
सोच नई है, दिशा नई है
नया-नया उत्साह
खोज रहा है नभ में प्रतिदिन
उजले कल की राह
यह भविष्य में एक नया
इतिहास बनाएगा ।
Two Navgeet: Kavi Yogendra Varma 'Vyom'
बेहतरीन कविताएं..
जवाब देंहटाएंआपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंयोगेन्द्र वर्मा 'व्योम' के सुन्दर नवगीतों के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंबेहतर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएं\नमस्कार !
जवाब देंहटाएंयोगेन्द्र वर्मा 'व्योम' जी के सुन्दर नवगीतों के लिए आभार!
सादर