राघवेन्द्र तिवारी
मध्य प्रदेश राज्य की राजधानी भोपाल को झीलों की नगरी भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ कई छोटे-बडे ताल- झीलें हैं । शायद इसीलिए यहाँ की मिट्टी में राग-रंग ज्यादा घुला-मिला है और शायद इसीलिए यहाँ पर गीत-नवगीत को न केवल लिखा-पढ़ा जाता है बल्कि गाया-गुनगुनाया भी जाता है- वह भी बड़े चाव से। इसी परंपरा का निर्वहन करने वाले गीतकार हैं राघवेन्द्र तिवारी। वे जब गीत लिखते हैं तो ऐसा लगता है कि मानो चित्रकारी कर रहे हों और जब वे चित्रकारी करते हैं तो उसमें भी उनके गीत प्रतिध्वनित होते हैं। उनके गीतों में ताज़गी है क्योंकि उनमें वर्तमान स्थितियों/ परिस्थितियों को थीम बनाया गया हैं। बानगी के तौर पर देखें- "कद नहीं कम हो सका/ झूठी रहीसी का/ इसलिए पानी रहा है/ अब तलक फीका। इस शहर में कई किस्से/ कई द्वंदों के/ नए आशय गढ़ रहे हैं हम परिंदों के/ हादसों की यह नई बेशक सियासत हो/ इसलिए माथे लगा है यह नया टीका। " उनके गीतों में इस प्रकार का टटकापन उन्हें गीतकारों की 'भीड़' से अलग खड़ा कर देता हैं। राघवेन्द्र तिवारी का जन्म 30 जून 1953 में उ.प्र. के एक गाँव में हुआ। बी.एड सहित दूरशिक्षा, जनसंचार और पत्रकारिता तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकारों, मानवाधिकारों एवं हिन्दी में स्नातकोत्तर कर शोध कार्य किया। देश की अनेकों पत्र-पत्रिकाओं में रेखाचित्रों, कविता, गीतों, कहानियों, व्यंग्लेखों आदि का 1971 से प्रकाशन। म.प्र. हिन्दी ग्रन्थ अकादमी द्वारा 'शिक्षा का नया विकल्प: दूर शिक्षा' (1997) नामक पुस्तक का प्रकाशन और एक पुस्तक 'बीजू की विनय' साक्षरता के लिए प्रकाशित। दो कैसेट शिशु गीतों एवं बालगीतों के 1996 में रिलीज किये गये । सम्प्रति: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में परामर्शदाता. संपर्क: ई एम- 33, इंडसटाउन, होशंगाबाद रोड, भोपाल, म.प्र., मो: 09424482812.
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
१. जंजाल जी का
कद नहीं कम हो सका
झूठी रहीसी का
इसलिए पानी रहा है
अब तलक फीका।
इस शहर में कई किस्से
कई द्वंदों के
नए आशय गढ़ रहे हैं
हम परिंदों के
हादसों की यह नई बेशक
सियासत हो
इसलिए माथे लगा है
यह नया टीका।
आँखों-आँखों में
छला जाता है अपनापन
और खाबों-ख्यालों में
है बचा बचपन
पालथी मारे
अकेला बैठ जाता है
सीखने सन्मार्ग का
अध्यात्म नीका ।
इस शहर की आबकारी
है हजारों बजह वाली
जहाँ अपने लोग, अपनी
हवेली तक हुई ख़ाली
राजसी दरवार ड्योढी-
कचहरी तक
सभी कुछ तो बन गये
जंजाल जी का ।
२. अपना कन्छेदी
क्रोधित क्यों
अपना कन्छेदी ।
पहले थी
छोटी-सी दुनिया
जुड़े रामभरोसे
व मुनिया
रहे, जिस तरह
ढोर-बरेदी!
भोजन के तमाम
हलकों में
पानी था
पानी पलकों में
पानी उसके
घर का भेदी ।
"जाओ मरो
भरत की भू पर
भूखे रहो
इजाजत दे दी!
लिखने लगे
मीडिया वाले-
"पड़े यहाँ
खाने के लाले"
खाकर 'चिकन'
"प्रभंजन वेदी"
३. इस तरह कंधे न उचकाओ
इस तरह कंधे न उचकाओ
हो सके तो भीड़ से हटकर
नया करतब दिखाओ।
थक गई जनता तमाशे देख
सारे नट-नटी के
खोज लाओ मोतियों को
लगा गोते तलहटी के
नहीं घबराओ
हो सके तो डूबकर जल के
हृदय को बींध आओ ।
समय चलते थाम सकते हो
लगामें अश्व-हय की
मोड़ सकते आदतें हो
स्वयं इस विस्तृत प्रलय की
मान भी जाओ
हो सके तो पार जाकर
समझ लेना सभ्यताओ!
कद नहीं कम हो सका
झूठी रहीसी का
इसलिए पानी रहा है
अब तलक फीका।
इस शहर में कई किस्से
कई द्वंदों के
नए आशय गढ़ रहे हैं
हम परिंदों के
हादसों की यह नई बेशक
सियासत हो
इसलिए माथे लगा है
यह नया टीका।
आँखों-आँखों में
छला जाता है अपनापन
और खाबों-ख्यालों में
है बचा बचपन
पालथी मारे
अकेला बैठ जाता है
सीखने सन्मार्ग का
अध्यात्म नीका ।
इस शहर की आबकारी
है हजारों बजह वाली
जहाँ अपने लोग, अपनी
हवेली तक हुई ख़ाली
राजसी दरवार ड्योढी-
कचहरी तक
सभी कुछ तो बन गये
जंजाल जी का ।
२. अपना कन्छेदी
क्रोधित क्यों
अपना कन्छेदी ।
पहले थी
छोटी-सी दुनिया
जुड़े रामभरोसे
व मुनिया
रहे, जिस तरह
ढोर-बरेदी!
भोजन के तमाम
हलकों में
पानी था
पानी पलकों में
पानी उसके
घर का भेदी ।
"जाओ मरो
भरत की भू पर
भूखे रहो
पलें बदबू पर"
प्रभु ने उसेइजाजत दे दी!
लिखने लगे
मीडिया वाले-
"पड़े यहाँ
खाने के लाले"
खाकर 'चिकन'
"प्रभंजन वेदी"
३. इस तरह कंधे न उचकाओ
इस तरह कंधे न उचकाओ
हो सके तो भीड़ से हटकर
नया करतब दिखाओ।
थक गई जनता तमाशे देख
सारे नट-नटी के
खोज लाओ मोतियों को
लगा गोते तलहटी के
नहीं घबराओ
हो सके तो डूबकर जल के
हृदय को बींध आओ ।
समय चलते थाम सकते हो
लगामें अश्व-हय की
मोड़ सकते आदतें हो
स्वयं इस विस्तृत प्रलय की
मान भी जाओ
हो सके तो पार जाकर
समझ लेना सभ्यताओ!
सुंदर भावाभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
टिप्पणी में देखिए मरे चार दोहे-
अपना भारतवर्ष है, गाँधी जी का देश।
सत्य-अहिंसा का यहाँ, बना रहे परिवेश।१।
शासन में जब बढ़ गया, ज्यादा भ्रष्टाचार।
तब अन्ना ने ले लिया, गाँधी का अवतार।२।
गांधी टोपी देखकर, सहम गये सरदार।
अन्ना के आगे झुकी, अभिमानी सरकार।३।
साम-दाम औ’ दण्ड की, हुई करारी हार।
सत्याग्रह के सामने, डाल दिये हथियार।४।