सुषमा वर्मा |
जन्म: कानपुर (उ.प्र.) में
शिक्षा: बी.एड., एम.ए. , यूं जी सी-नेट (समाजशास्त्र)
प्रकाशन: विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्प्रति: डिग्री कॉलेज में प्रवक्ता
ब्लॉग: आहुति (sushmaaahuti.blogspot.com)
शिक्षा: बी.एड., एम.ए. , यूं जी सी-नेट (समाजशास्त्र)
प्रकाशन: विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्प्रति: डिग्री कॉलेज में प्रवक्ता
ब्लॉग: आहुति (sushmaaahuti.blogspot.com)
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
जब भी लिखती हूँ मैं
शब्द मेरे ख्याल तुम्हारा होता है
जब भी लिखती हूँ मैं
सवाल मेरे जवाब तुम्हारा होता है..!
जब भी लिखती हूँ मैं
जो बात तुमसे कही नही अभी तक
वो बात-वो प्यार मेरे शब्दो में उभर जाता है
मैं लिखती नहीं कोई कविता,
तुम्हारा ख़याल कविता बन कर पन्नों पर बिख़र जाता है..!
जब भी लिखती हूँ मैं
जीत लूँगी इस जीवन को
शब्द मेरे विश्वास तुम्हारा होता है
मैं लिखती नही कोई कविता
सिर्फ शब्द मेरे और साथ तुम्हारा होता है...!
2. ज़िन्दगी
जब भी जिन्दगी में लगा कि सब
कुछ खत्म हो गया
तभी एक उम्मीद सी दिल में जगती है
कि शायद यही शुरुआत है!
जब भी बिना आह के दिल टूट कर बिखर गया
मैं मुस्कराती रही
मेरी मुस्कराहट के पीछे धीरे-धीरे से
एक दर्द का तूफान गुजर गया
पता नही मैंने जिन्दगी को बदल दिया
या जिंदगी ने मुझे बदल दिया
पर जिन्दगी की राहें जब भी खत्म हुई
मैंने रास्ता बदल दिया
एक उलझन ही रही मेरी जिंदगी
मैं जिन्दगी के हर मोड़ पर जीने के बहाने ढूँढती रही
पर जिन्दगी को हर बार मुझे हराने के बहाने मिलते रहे...
कुछ कमी थी शायद मेरी कोशिशो में ...
जिन्दगी हर बार जीत गयी अपनी साजिशो में!
Two Poems of Sushama Varma
कुछ कमी थी शायद मेरी कोशिशो में ...
जवाब देंहटाएंजिन्दगी हर बार जीत गयी अपनी साजिशो में!
वाह ... हर पंक्ति भावमय करती हुई ... बहुत-बहुत बधाई के साथ शुभकामनाएं ।
बहुत खूब ... हर पंक्ति प्रेम का अनुख रूप लिए नही ... भावमय रचनाएं हैं दोनों ही ... लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंthank u so much....
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