नमस्कार,
कविता कोश टीम के नाम ललित जी के खुले पत्र का जवाब मैं कई व्यक्तिगत कारणों से देरी से लिख रहा हूं। बहरहाल...
मैं यह बात अभी तक नहीं समझ पाया कि पिछले पांच साल से चल रहे कविता कोश में अनिल जी भाषा सिर्फ एक वर्ष में ही कैसे बुरी लगने लगी। मेरी जहां तक जानकारी है, ललित जी के सिवा किसी अन्य सदस्य ने किसी पत्र में इसकी चर्चा नहीं की।...अनिल जी की भाषा और व्यवहार को लेकर उनके किसी मित्र ने भी शायद ही कभी इस किस्म की आपत्ति जताई हो... लेकिन ललित जी अगर यह लिखते हैं कि ‘’ पिछले कुछ महीनों में अनिल जी की भाषा और व्यवहार का मैंने व्यक्तिगत स्तर परविरोध किया था। उनकी भाषा शुरु से ही चोट पहुँचाने वाली रही है।‘’ तो लगता है कि टीम के भीतर का कोई मसला व्यक्तिगत स्तर तक पहुंचा दिया गया है। ...
जयपुर में हुए सम्मान समारोह के दौरान मंच पर या नेपथ्य में ऐसी कोई बात नहीं हुई, जिससे यह अनुमान लगाया जा सके कि अनिल जी या ललित जी अथवा टीम सदस्यों में कोई विवाद है। कोई भी चाहे तो इस कार्यक्रम के वीडियो देखकर इसकी पुष्टि कर सकता है। खैर, चूंकि विवाद जयपुर में हुए कार्यक्रम के बाद सार्वजनिक हुआ, इसलिए स्थानीय संयोजक होने के नाते कुछ घटनाओं का साक्षी रहा, लिहाजा कुछ तथ्य मैं जानता हूं, लेकिन यह स्पष्ट रहे कि विवाद अगर कोई था तो वह बहुत पहले से चल रहा था...
कविता कोश में कोई विवाद है, यह टीम जानती थी, लेकिन मेरी तरह सबका शायद यही मानना था कि सब कुछ सहज रूप से शांत हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आपसी विवाद बिलावजह सार्वजनिक हो गया। और दुर्भाग्य से इसमें अनिल जी की कोई भूमिका नहीं थी।... विवाद को लेकर सबसे पहले ललित जी ने ही अपनी साइट पर प्रकट-अप्रकट रूप से कई बातें लिखीं। ... मुझे यह अच्छा नहीं लगा, इसलिए मैंने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की, क्योंकि गलत-सलत हर बात पर टिप्पणी करने की मेरी आदत नहीं। लेकिन ललित जी ने अनिल जी द्वारा अपने एक मुस्लिम मित्र को सांप्रदायिक कहने जैसा आरोप लगाया उसके बारे में एक खुलासा करना अनिवार्य है। समारोह से एक दिन पहले की शाम बल्ली सिंह चीमा जी के कमरे में कुछ कवि मित्र चीमा जी से उनका कलाम सुन रहे थे। सब लोग उनकी शायरी पर फिदा थे, सिवाय ललित जी के मुस्लिम मित्र के। वे लगातार चीमा जी की शायरी को कमतर बताए जा रहे थे। एक स्थल पर आकर उन्होंने कह ही दिया कि अवाम और राजनीति को शायरी में लाने की क्या जरूरत है, आज भी चुंबन पर हजारों ग़ज़लें कही जा सकती हैं। उन्होंने चीमा जी की शायरी की तुलना उन मुस्लिम शायरों से कर डाली जो इस्लाम की पैरवी करते हुए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। इस वाकये के दौरान अनिल जी भी कुछ समय वहां मौजूद थे। जाहिर है मेरी तरह अनिल जी को भी बुरा लगा होगा कि जिस कवि का हम कल सुबह सार्वजनिक सम्मान करने जा रहे हैं और ललित जी के मित्र उनका उपहास उड़ा रहे हैं। अनिल जी अपनी पीड़ा उन्हें अभिधा में नहीं व्यंजना में व्यक्त कर दी तो कौनसा बवाल हो गया। खुद अनिल जी ने मुझसे इस बाबत बताया था कि कैसे उन्होंने ललित जी के मित्र को लताड़ा, कि कविता की उनकी समझ दोयम दर्जे की है। ...
सम्मान समारोह के बाद टीम मीटिंग में अनिल जी और ललित जी के बीच गर्मागर्मी हुई, जिसमें ललित जी ने कविता कोश छोड़ने का ऐलान किया और मीटिंग से चले गए। इस मीटिंग में मेरे साथ प्रतिष्ठा और धर्मेंद्र भी थे। अनिल जी ने कोई अभद्रता नहीं की। ... लेकिन ललित जी ने बाहर जाकर जो कुछ किया उसका परिणाम इस रूप में सामने आया कि होटल के रिसेप्शन से मेरे पास फोन आया कि ललित जी अपने परिवार के साथ जा रहे हैं और कमरों का भुगतान भी खुद करके जा रहे हैं। मैंने जाकर उन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन वे नहीं माने।... अब हमारे सामने अतिथियों के यात्रा व्यय और अन्य भुगतानों को निपटाने का सवाल था। मैं बहुत परेशान था, लेकिन अनिल जी ने होटल और अतिथियों के यात्रा व्यय का भुगतान किया और हम सम्मान समारोह के बाद एक अप्रत्याशित असम्मान से बच गए। हमें श्रद्धा जैन और सिराज फैसल खान की पुरस्कार राशि भी काम में लेनी पड़ी। एक बात स्पष्ट कर दूं कि कविता कोश सम्मान समारोह में पुरस्कारों की राशि अनिल जी ने ही दी थी... आवश्यक धनराशि कम पड़ने पर उन्होंने अपने मास्को वाले एटीएम कार्ड से पैसे निकालने पड़े। अगले दिन अनिल जी और धर्मेंद्र होटल से सब काम निपटाकर मेरे कार्यालय आए और वहीं बैठकर रिपोर्ट लिखी, ईमेल की और कई जरूरी काम निपटाए। अनिल जी, धर्मेंद्र जी और प्रतिष्ठा जी के बीच निरंतर संवाद बना रहा। अनिल जी को किसी बात का कोई दुख नहीं था, वे पूरे उत्साह और दायित्व के साथ काम करते रहे और सबसे बात करते रहे। वे बार-बार इतना ही कह रहे थे कि ललित नाराज है, लेकिन उन्हें सब मना लेंगे। ललित बहुत भावुक है और बहुत जल्द नाराज हो जाते हैं, इस तरह टीम को साथ लेकर नहीं चला जा सकता... आदि-आदि बातें अनिल जी ने कहीं, जिनसे यही अंदाज होता था कि वे कविता कोश के व्यावसायीकरण को लेकर बहुत चिंतित हैं और अगर अनिल जी नहीं होते तो यह अब तक हो चुका होता। अब तो सब कुछ स्पष्ट हो ही गया है।
लेकिन अनिल जी ने इस बाबत सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कहा। अनिल जी पर जो आरोप है कि जगह-जगह फेसबुक पर लोगों की दीवारें रंग दी हैं उन्होंने तो यह ललित जी के लगातार आक्रमणों के बाद की घटना है। ललित जी को लगता है कि इससे उनकी छवि को नुकसान पहुंचा है तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि उनके लिखे से अनिल जी की छवि कैसे खराब हो रही थी। एक सम्मानित हिंदी कवि की छवि कोई कैसे खराब कर सकता है, इसका यह अनुपम उदाहरण है। यह जानते हुए भी कि उस कवि का उस संस्था में कितना बड़ा योगदान है, इससे अनिल जी की बात की पुष्टि होती है कि ललित जी कविता कोश के मालिक बनना चाहते हैं। और अब ललित जी लिख रहे हैं कि ‘’ मैंने धीरे-धीरे कविताकोश में पिछले पाँच वर्षों के दौरान एक संगठन बनाने की कोशिश की है।‘’ तो इसमें भी वही ध्वनित हो रहा है। क्या बतौर संपादक अनिल जी ने यह कोशिश नहीं की है... जब एक सामुदायिक कार्य होता है तो उसमें सारे काम सामुदायिक भावना से होते हैं, उसमें ‘’मैं’’ गौण हो जाता है। ... अनिल जी ने ललित जी के आक्रमणों से आहत होकर कविता कोश से अलग होने की घोषणा की थी। इसलिए उन्हें हटाने की बात ही बेमानी है। ललित जी कह रहे हैं कि वे कविता कोश के मालिक नहीं हैं, लेकिन इस पूरे प्रकरण में अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ कि ललित जी मालिक नहीं हैं तो क्यों नहीं हैं और हैं तो किस रूप में... सामुदायिक भावना के अनुसार ललित जी को टीम को यह स्पष्ट करना चाहिए था। खैर अब इसकी आवश्यकता ही समाप्त हो गई है, क्योंकि अब इसका कथित तौर पर स्वामित्व एक एनजीओ के पास होगा। मैं एनजीओ की भूमिका को लेकर अरसे से बहुत क्रिटिकल रहा हूं और मेरा मानना है कि एनजीओ कुल जमा भारत में सभी प्रकार की परिवर्तनकारी शक्तियों को कमजोर करने का साम्राज्यवादी एजेण्डा है और इनके सहायता स्रोत हमेशा ही संदेह के घेरे में रहे हैं। इसलिए मेरे लिए किसी एनजीओ में काम करना संभव नहीं है। ...
इस प्रस्तावित एनजीओ की गवर्निंग बॉडी में साहित्यकार नहीं होंगे, यह आश्चर्यजनक नहीं है। ललित जी यह मानकर चलते हैं कि साहित्यकार प्रशासन में कारगर नहीं हो सकते...पता नहीं भारत सरकार ने कैसे इतने बड़े लेखकों को नौकरियों पर रखा हुआ है...खैर, अब यह प्रशासकों का निर्णय है...
मैं कविता कोश से इसलिए जुड़ा था कि हिंदी में यह अपने किस्म का अनूठा अव्यावसायिक उपक्रम है। हम हिंदी के सेवक हैं और इसीलिए ऐसे उपक्रमों से जुड़े रहते हैं जहां भाषा और जनता के लिए बिना किसी लाभ के हम अपना योगदान कर सकें। अब चूंकि कविता कोश एक व्यावसायिक किस्म के एनजीओ में परिवर्तित हो रहा है, लिहाजा मेरे लिए संभव नहीं होगा कि इससे जुड़ा रहूं। ...
मैं किसी ऐसी संस्था के लिए अपनी रचनात्मकता और श्रम का अवदान नहीं करूंगा, जो कविता का व्यवसाय करे। मेरे लिए कविता और कविकर्म बहुत गहरी मानवीय संवेदना का पवित्र कर्म है, जिसके लिए मैं व्यवसाय जैसी शब्दावली का इस्तेमाल भी पसंद नहीं करता।...
इस सबके बावजूद मेरा मानना है कि कविता कोश को गैर व्यावसायिक ही बने रहना चाहिए और अनिल जी को ससम्मान वापस लाना चाहिए। अगर ललित जी और अनिल जी में संवादहीनता है तो भी अनिल जी को टीम में रहना चाहिए। यह कविता कोश के हित में ही होगा।
...बहुत से मसले हैं जिन पर मैं और भी बातें कह सकता हूं...पर अब छोड़ ही देना ठीक रहेगा।
सादर,
प्रेमचंद गांधी
प्रिय भाई ललित जी,
कविता कोश के बदलते संगठनात्मक स्वरूप एवं बदलती परिस्थितियों में काम कर पाना मेरे लिए लिए संभव नहीं रह गया है। क्योंकि मुझे लगता है कि आपके संगठन में साहित्यकारों के लिए जगह बहुत कम रह गई है। इसलिए मैं कविता कोश कार्यकारिणी से अपना इस्तीफ़ा दे रहा हूं।
सादर,
योगेंद्र कृष्णा
आदरणीय भाई अनिल जी,
कविता कोश से मैंने अपना इस्तीफ़ा दे दिया है।
सादर,
योगेंद्र कृष्णा
राजस्थानी साहित्यधारा के लिए प्रणेता और प्रतिनिधि के रूप में मैं श्री गाँधी के समीप आना चाहता था। मेरा कविताकोश से जुड़ाव हफ़्ते 2 हफ़्ते का है, इस घटनाक्रम से मुझे भी ऐसा ही कुछ लगा था। खैर मैं अंदरूनी हालात से ज्यादा वाक़िफ़ नहीं हूँ इसलिए ज्यादा लिखना ठीक भी नहीं होगा। 'कविकर्म बहुत गहरी मानवीय संवेदना का पवित्र कर्म है, जिसके लिए मैं व्यवसाय जैसी शब्दावली का इस्तेमाल भी पसंद नहीं करता' मेरे विचारों का ही एक पहलू है, मैं इससे सहमत हूँ। पाँच वर्षों तो शिशुकाल की तरह हैं, परिपक्वावस्था से पूर्व ही यह हश्र--उफ़--- नियति का यह क्रूर मज़ाक़---- हम ऐसे में हिन्दी के लिए विश्व स्तर पर सफलता की कामना कैसे करेंगे। नये सिरे से सोचना होगा। साहित्य में व्यावसायिकता न आये तो ही अच्छा है, और उस पर 'प्रस्तावित एनजीओ की गवर्निंग बॉडी में साहित्यकार नहीं होंगे, यह आश्चर्यजनक नहीं है। ललित जी यह मानकर चलते हैं कि साहित्यकार प्रशासन में कारगर नहीं हो सकते...पता नहीं भारत सरकार ने कैसे इतने बड़े लेखकों को नौकरियों पर रखा हुआ है...' गाँधीजी ने यह लिख कर अच्छा नहीं किया। इससे मन थोड़ा व्यथित हुआ।
जवाब देंहटाएंअबनीशजी आपने यह अवसर दे कर मुझे एक नई दिशा दी है। कहीं बंगाली कहावत ही कहीं सही हो 'एकला चालो'।
आदरणीय अवनीश जी कविताकोश के संबंध मे दस शीर्ष योगदानकर्ताओ के मध्य चल रही ईमेल को सार्वजनिक करना मुझे उचित नहीं लगता । मैं भी यही चाहता हूँ कि अनिल जी के साथ ही यह कोश आगे बढे सो मैने कोश में अनिल जी के महत्व को नवभारत टाइम्स में प्रकाशित होने वाले अपने ब्लाग में आंकडों के माध्यम से उजागर करने का प्रयास भी किया है आज कविता कोश में योगदान कर्ताओं की सूची हजारों में है परन्तु आश्चर्यजनक रूप से इन हजारों लोगों ने इस समूचे कोश के मात्र 10 प्रतिशत ;लगभग 5000 पन्नेद्ध के निर्माण में ही सहयोग किया है। समूचे कोश का 90 प्रतिशत ;लगभग 42000 पन्नेद्ध बारह प्रमुख योगदान कर्ताओ के श्रम से ही निर्मित हुआ है। उसमें भी मात्र तीन प्रमुख योगदानकर्ताओं का ही योगदान प्रतिशत दहाई का आंकडा पार कर पाया है। कविताकोश के संस्थापक ललितकुमार भी योगदान प्रतिशत के मामले में इकाई के आंकडों में ही सीमित है। यदि कोश शामिल सभी 47237 पन्नों को उनके जोडने वाले योगदान कर्ताओं के श्रम के रूप में देखें तो आंकडे इस प्रकार हैं क्रमांक नाम योगदान कर्ताजोडे गये पृष्ठों की संख्याकोश की समूची सामग्री के सापेक्ष प्रतिशतअभियुक्ति1अनिल जनविजय1548032ण्77 प्रति0अप्रैल 2007में जुडे2प्रतिष्ठा शर्मा660513ण्98 प्रति0अग0 2007 में जुडे3घर्मेन्द्र कुमार सिंह622813ण्18 प्रति0सित 2009 में जुडे4ललित कुमार2247 4ण्76 प्रति0संस्थापक हैं5दिवजेन्द्र द्विज1980 4ण्19 प्रति0सित 2008 में जुडे6अशोक शुक्ला1805 3ण्82 प्रति0जन 2011 में जुडे7नीरज दैया1722 3ण्65 प्रति02007 में जुडे8प्रकाश बादल1608 2ण्40 प्रति0दिस 2008 में जुडे9सम्यक1124 2ण्38 प्रति02007 में जुडे10श्रद्धा जैन1090 2ण्31 प्रति0फर 2009 में जुडी11विभा जिलानी907 2 प्रति012प्रदीप जिलवाने728 1ण्89 प्रति0मेरा विचार हैं कि समय के साथ कविताकोश के प्रशासक को यह अनुभव होगा कि उनकी परियोजना एक प्रबुद्ध साहित्यकार अनिल जी के इससे जुडने के बाद ही अधिक उपयोगी और इनसाइक्लोपीडिया का रूप धारण कर सकी है। भवदीय अशोक कुमार शुक्ला
जवाब देंहटाएंएक अच्छे काम में इस तरह के विवाद कार्य की गति को प्रभावित करते हैं ... कभी कभी व्यक्तिगत बातें ऊपर हो जाती हैं जो गलत है ...
जवाब देंहटाएंकविता-कोश को विकसित और सम्रद्ध करने के लिए अनिलजी, प्रेमचंद गांधीजी और अनेक महानुभावों को शत-शत नमन | पिछले कई दिनों से अनिलजी की टिप्पणियाँ और ललितजी के ब्लॉग पढ़ रही हूँ |जो भी हो रहा है अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है |
जवाब देंहटाएंललितजी के लेखों से आहत होने का भाव झलकता है वहीँ अनिलजी बेबाकी से आरोप लगाते हुए प्रतीत होते हैं | यह आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला सार्वजानिक ना हो इसी में आप लोगों का मान, आप लोगों की मर्यादा है |
मेरे अनुसार आपके लेख में ललितजी का होटल छोड़ के जाना उनकी भावनाओं पर गहरी चोट का परिणाम है | आपके अनुसार अनिलजी ने परिस्थिति को संभाला और आप लोग सम्मान समारोह के बाद अप्रत्याशित असम्मान से बच गए | आवश्यक धन-राशि कम पड़ने पर अपने मास्को वाले ATM से पैसे भी निकालने पड़े अनिलजी बहुत विशाल हृदय रखते हैं सिद्ध कर दिया किन्तु इस बात को सार्वजनिक करके अपनी उदारता को लघुता में बदल दिया इसमें भी कोई संदेह नहीं !
आप प्रबुद्ध जनों से निवेदन है कि ऐसी ओछी बातें लिखकर साहित्यकारों की मर्यादा को क्षति ना पहुँचाएँ | निरालाजी को लोगों ने किस तरह आर्थिक रूप से, भावनात्मक रूप से लूटा और विपत्ति में किस तरह उनसे पल्ला झाड़ा किन्तु निरालाजी ने अपनी वेदना को सार्वजानिक नहीं किया यही बातें उन्हें महान बनाती हैं !
यदि आप साहित्य से, कविता से प्रेम करते हैं तो अपने विचार, अपने कर्म से उसे पोषित करें, समृद्ध करें चाहे वह आपकी कृति हो या किसी अन्य की ! आप लोगों से सद्भाव की अपेक्षा है
ललितजी बार-बार लिखते हैं कि वे आयु और ज्ञान में आप लोगों से छोटे हैं तो आप लोगों का बड़प्पन इसी में है कि भूल-चुक माफ़ करें और हिंदी साहित्य और कविता-कोश को अपनी शुभेच्छा दें |
एक हिंदी शिक्षिका
कई वर्ष पहले,अनिल जी ने मेरी कवितायें पढकर-उन्हें कविता-कोश में जोडने का आग्रह किया था.उस समय, इस विषय पर उनसे ई-मेल के माध्यम से कुछ चर्चा भी हुई.कुछ तकनीकी कारणों व अपने आलसी स्वभाव के कारण-में कविता-कोश के लिए कवितायें नहीं भेज सका.लगभग 3-4 माह पूर्व,अचानक कविता कोश देखा तो वहां अपने कई कवि-मित्रों को पाया,थोडा साहस करके,कविता कोश के नियमों के अनुसार-परिचय सहित 20-22 कवितायें भेज दीं.अभी तक कविता-कोश की तरफ से कोई पत्रोतर नहीं मिला.आखिर लगभग 10-12 दिन पहले-अनिल जी को ई-मेल करके-यह जानने की उत्सुकता हूए कि मेरी कविताओं का क्या हुआ? उधर से भी कोई उत्तर नहीं आया.जब इस कविता-कोश विवाद के संबंध में जानकारी मिली-तो समझ में आया कि-अनिल जी मेरी ई-मेल का जवाब क्यों नहीं दे पाये?जब कोई साहित्यिक व्यक्ति निस्वार्थ भाव से किसी संस्था में अपना योगदान देता हॆ-उसे इस तरह के विवादों में उलझना पडे,तो पीडा तो होगी ही.अच्छा तो यही होगा कि इस विवाद को आपस में मिल-बॆठकर सुलझा लिया जाये-वर्ना हिंदी साहित्य जगत को कोई अच्छा संदेश नहीं जायेगा.कविता-कोश ने जो प्रतिष्ठा अभी तक प्राप्त की हॆ-उसपर प्रश्न-चिहन लग सकता हॆ
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