शायद किसी मोड़ पर/ ठहर जाए
थककर हाँफती/ जिन्दगी लौट आए
वरिष्ठ नवगीतकार गुलाब सिंह जी जिस तरह से यहाँ जिन्दगी के थक-हांफ कर लौट आने की बात कर रहे हैं, उसके कारणों की खोज में तह तक जाते हुए डॉ. जयशंकर शुक्ल कहते हैं- "सभ्यताएं / नग्न होती जा रहीं इस दौर में/ आचरण / खोया न जाने कब कहाँ किस शोर में।" और इस आचरण को वापस लाने की डॉ. शुक्ल की लालसा-उम्मीद जिन्दगी के लौट आने जैसी ही है। डॉ. शुक्ल के गीत आज की विषम स्थितियों को न केवल उजागर करते हैं, बल्कि उनमें जो पीड़ा व्यंजित होती है वह कवि की सदाशयता को भी दर्शाती है। जनपद इलाहाबाद के ग्राम सैदाबाद में 02 जुलाई 1970 को जन्मे डॉ. शुक्ल दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग में शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं। अब तक उनके दो काव्य संग्रह ('किरण' और 'क्षितिज के सपने'), नौ काव्य संकलन और चार संपादित कृतियाँ प्रकाशित हो चुकीं हैं। उनके साहित्यिक अवदान के परिप्रेक्ष्य में उन्हें लगभग एक दर्जन सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है। संपर्क- म.सं. 49, ग. सं. 06, बैंक कालोनी, नन्द नगरी, दिल्ली-110093, मोब- 09968235647 । आपके यहाँ दो नवगीत दिये जा रहे हैं:-थककर हाँफती/ जिन्दगी लौट आए
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
सभ्यताएँ
नग्न होती जा रहीं इस दौर में
आचरण
खोया
न जाने कब कहाँ किस शोर में
पार्टियों में मथ थिरकता
पश्चिमी संगीत में
नृत्य करतीं युवतियाँ
मदहोश होकर प्रीत में
नशे के
सौदागरों की
छवि न मिलती भोर में
पार कर ड्योढी समय की
तितलियाँ मुखरित हुईं
नाचतीं फिरती पबों में
शान से गर्वित हुईं
चोट पाकर
झलमलाया
जल नयन के कोर में
पहन बहुरंगे बासन नूतन
दिखातीं तन बदन
अर्धसत्यों सी प्रकाशित
हो रही जैसे कथन
कैट करती वाक
मंचों पर
समय की डोरे में
शयन कस्खों में चहकती
पात्र डेली सोप-सी
महल जेवर वस्त्र में
सजती निखरती होप-सी
देख वातायन
सिमटता
मनुज अंधे खोर में ।
2. स्वार्थी युग हो गया है
स्वार्थी युग हो गया है
मर रही संवेदना
अब हलाकू घूमते हैं
मौत की टोली बना
हर तरफ संत्रास का
फैला हुआ है कोहरा
फूल लगते कागजी सब
सब्जियों पर रंग हरा
सच अनावृत्त हो रहा है
झूठ की गोली बना
झुग्गियों में फैलती
आँचल पसारे क्रंदना
मायवी दुनिया हुई
सब लुप्त होती भावना
सत्य भी मिलता बिचारा
फूस की खोली बना
अस्पतालों में चिकित्सक
कर रहे व्यापार हैं
कैश-लेश की ओट में
करते विविध व्यभिचार हैं
पीड़ितों से लूटते ये
द्रव्य को झोली बना
राजपथ अब हो गये हैं
मौत की सूनी डगर
जनपथों पर घूमती है
काल की पैनी नज़र
दौड़ चूहों की निकलती
खून की होली मना ।
Two Hindi Poems of Dr. Jay Shankar Shukl
शुक्ल जी की दोनों रचना अत्यंत प्रभावपूर्ण है, हम तक लाने के लिए हार्दिक आभार.
जवाब देंहटाएंsamadarniya amrita tanmay ji sadar naman,
हटाएंapke subhkamnao ke liye mai hriday se abhari hu
dr jay shankar shukla 09april2013
navgiton ne kar diya
जवाब देंहटाएंmujhko aatm vibhor
suprabhat bihansa saras
suna vihagi shor
Sadhuwaad
Brajesh Chandra Shrivastva
Morar Gwalior
abhari hu apka, sunlo chandra brajesh.
हटाएंnavgeeto par jo likha ,sundartam sandesh
dr jayashankar shukla bank colony delhi
…
जवाब देंहटाएंnavgiton ne kar diya
mujhko aatm vibhor
suprabhat bihansa saras
suna vihagi shor
Sadhuwaad
Brajesh Chandra Shrivastva
Morar Gwalior
४ नवम्बर २०११ १:४० अपराह्न
navgito ko padh huye, pathak atmvibhor.
जवाब देंहटाएंpulkit man sekar rahe khagkul jaisa shor.
sunder bhav akarshak shilp vishist silp ke liye badhai
जवाब देंहटाएंravikar ji apke mangalkamnao ka abhar
जवाब देंहटाएंdr jayashankarshukla
Abhar
जवाब देंहटाएं