एक ग्रुप फोटो में उपस्थित साहित्यकार |
प्रतापगढ़। 30 अक्टूबर को महाभारत के शिखर शांतनु, मृत्युंजय भीष्म और मत्स्यगंधा की जन्मभूमि परियावाँ में जो उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले से 60 किमी0 और प्रख्यात संत कृपालुजी महाराज की जन्मभूमि मनगढ़ के समीप ही ग्रामीण अंचल की मनोहारी भरतभूमि परियावाँ में एक महान् वटवृक्ष के नीचे सादे समारोह में महामना मदनमोहन मालवीय पोषित साहित्यिक संस्थान ‘साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी’द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में लगभग 80 साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। इस समारोह में अन्य संस्थानों यथा तारिका विचार मंच इलाहाबाद और भारतीय वांग्मय पीठ कोलकाता द्वारा भी साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। अकादमी के सचिव श्री वृन्दायवन त्रिपाठी रत्नेश यह जिम्मेदारी 1980 से सम्हाल रहे हैं और प्रतिवर्ष यह समारोह आयोजित हो रहा है, जिसमें अभी तक 500 से भी अधिक साहित्यकारों को सम्मानित किया जा चुका है। 16 प्रान्तों से पधारे साहित्यकार भारत की भाषाई एकता को एक सूत्र में पिरो कर सभी भेदभावों को भुला कर एक मंच के नीचे इकट्ठा हुए। इस वर्ष भी परियावाँ में सभी पधारे साहित्यकारों, कवियों, कलाकारों को सम्मानित किया गया। अकादमी की ओर से यह समारोह 30वें भाषाई एकता सम्मेलन के रूप में आयोजित किया गया।
प्रथम सत्र में माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन के पश्चात् भाषाई एकता पर व्याख्यांन माला का शुभारम्भ किया गया। समारोह की अध्यक्षता भारतीय वांगमय पीठ कोलकाता के सचिव श्री श्यामलाल उपाध्याय थे और कार्यक्रम का संचालन प्रख्यात साहित्यकार बज-बज, कोलकाता से पधारे डॉ0 कुँवर वीर सिह मार्तण्ड थे। कार्यक्रम में कोलकाता के सत्यनारायण सिंह आलोक, इम्फाल से श्री हुइरोम गुणीन्द्र सिंह लैकाई, विजय कुमार शर्मा, मेरठ, इगलास के गाफिल स्वामी, कोटा के श्री रघुनाथ मिश्र, संचालक श्री मार्तण्ड, अध्यक्ष श्री उपाध्याय और कई विद्वानों ने भाषाई एकता पर अपने विचार प्रकट किये। सभी ने एक मत हो कर कहा कि संविधान की अनुसूचियों की भाषाओं को, राजभाषा हिन्दी को राष्ट्रमभाषा के रूप में पहचान बनाने के लिए पहल करनी होगी। आज हिन्दी विश्व के अनेकों विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जा रही है, क्योंकि व्यावसायिक दृष्टि से भारतीय बाजार में पैठ बनाने के लिए भारतीयों को अपना जुड़ाव पैदा करने के लिए हिन्दी का समृद्ध होना अति आवश्ययक है। दूसरे सत्र में विभिन्ऩ सम्मानों को प्रदान किया गया। समारोह में हिन्दी सेवा सम्मान, विवेकानन्दज सम्मान, विद्या वाचस्पति मानद उपाधि, विद्या वारिधि मानद उपाधि, कला मार्तण्ड, हिन्दी गरिमा सम्मान,कबीर सम्मान आदि प्रदान किये गये। राजस्थान से कोटा के जनकवि आकुल को विवेकानन्द सम्मान, श्री मिश्र को विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि, रावतसर के श्री मुखराम माकड़ को सुश्री सरस्वती सिंह सुमन स्मृति सम्मान, रावतभाटा से, भवानी मण्डी से राजेश कुमार शर्मा पुरोहित को विद्या वारिधि मानद उपाधि और अलवर के श्री सुमित कुमार जैन को साहित्य महोपाध्याय मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। अन्य विभूतियों में कोलकाता के श्री श्यामलाल उपाध्याय को साहित्य महोपाध्याय, श्री अशोक पाण्डेय गुलशन को पं0 जगदीश नारायण त्रिपाठी स्मृति सम्मान, सत्यनारायण सिंह आलोक, फ़ख़्रे आलम खाँ, मेरठ, सुश्री आशा मिश्रा, दतिया, मनोज कुमार वार्ष्णेय मेरठ आदि को विद्या वाचस्पति मानद उपाधि, बिजनौर के मनोज अबोध, गोरखपुर के अशोक कुमार निर्मल, अवधेश शुक्ल, सीतापुर, पूनम शर्मा, जबलपुर आदि को विद्या वारिधि की मानद उपाधि, सुरेश प्रकाश शुक्ल, लखनऊ, सुश्री सीमा गुप्ता, अलवर और पिथौरागढ़ की सुश्री शारदा विदुषी को विवेकानन्द सम्मान प्रदान किया गया। मनोज कुमार वार्ष्णेय, मेरठ को पत्रकार मार्तण्ड पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
अकादमी के इस सम्मान समारोह की सहयोगी संस्थाओं तारिका विचार मंच, इलाहाबाद और भारतीय वांगमय पीठ, कोलकाता ने अनेकों साहित्यकारों को सम्मानित किया। वांग्मय पीठ कोलकाता द्वारा अन्य साहित्यकारों के साथ आकुल व श्री रघुनाथ मिश्र को भी कवि गुरु रवीन्द्र नाथ ठाकुर सारस्वत साहित्य सम्मान प्रदान किया गया। तारिका विचार मंच ने श्री मिश्र को पं0 रामकुमार वर्मा सम्मान से सम्मानित किया। दूसरे दिन श्री मार्तण्ड, श्रीमिश्र, आकुल, श्री आलोक और श्री अकेला ने मनगढ़ स्थि्त जगद्गुरु कृपालुजी महाराज के आश्रम जाकर प्रख्यात राधाकृष्ण मंदिर देखा और कृपालुजी महाराज के दर्शन किये, उनके जीवन दर्शन की चित्रमय झांकी देखी और उनका योग आश्रम देखा।
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