फ्रिदेरिक्तन: फ्रिदेरिक्तन ब्रुन्स्विक राज्य की राजधानी है, जिसमें दुनिया के सभी देशों के प्रवासियों में भारतीय प्रवासियों के लगभग १०० परिवार हैं। जब भारतीय प्रवासियों को पता चला कि भोपाल (म.प्र., भारत) से वरिष्ठ कवि डॉ. जयजयराम आनंद शहर में प्रवास पर हैं तो उन सभी ने उनके सम्मान में काव्य गोष्ठी का आयोजन करने का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
प्रो. आर. डी. वर्मा की अध्यक्षता में डॉ. आनंद के काव्य पाठ का शुभारंभ हुआ। उन्होने कवि गोष्ठी में सबसे पहले मुक्तक प्रस्तुत किये। उनके सुन्दर मुक्तकों को सुनकर उपस्थित श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये। उनका एक मुक्तक देखें- "प्यार से हँसता चमन में फूल है/ प्यार बिन जोरू, जमी, ज़र धूल है/ प्यार तो पहचान है भगवान की/ प्यार से इंसान भी भगवान है।" इसके बाद डॉ. आनंद ने अपने शिशु गीतों और बालगीतों को प्रस्तुत किया, जिन्हें सुनकर श्रोता अपने बचपन को याद करने लगे। साथ ही उन्होने अपनी कविताओं के माध्यम से भारत और कनाडा के जीवन और धूप को प्रस्तुत किया। तब भावक वाह-वाह करने से अपने आप को न रोक सके। उन्होंने यह गीत सबको पसंद आया- "जाने कितने रामलाल ने/ सचमुच/ पापड़ बेले हैं। बचपन में/ आँसू ने बह-बह/ गहरा सागर रूप धरा/ हुई नसीब न/ दूध बूँद की/ पानी पी पेट भरा/ समय समाज कर्ज के ढेरों/ हरदिन/ झापड़ झेले हैं।"
कार्यक्रम के समापन अवसर पर डॉ. आनंद ने इन शब्दों से आभार व्यक्त किया- "किस तरह से करूँ मैं खुशी का इज़हार/ आप सबने जो दिया है प्यार का उपहार/ स्वर्ण अक्षर लिखेगें आज का इतिहास/ बन गया मेरी धरोहार आप सबका प्यार।" और "फ्रिडियरिक्टेन ने जो दिया/ तन-मन से आनंद/ जीवन् भर भूलू नहीं/रचूँ अनूठे छन्द।"
इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे- प्रो. सत्यदेव,सरिता गुप्ता,समीर कामरा, पण्डेऱ कामरा, सरिता गूज़र,प्रेमलता आनंद,अभिलाष वर्मा,प्रकाश चंद्र निगम, प्रमोद वर्मा, मधु वर्मा आदि। इस कार्यक्रम की संचालिका मधु वर्मा (संस्थापक अध्यक्ष, एशियन हेरिटेज सोसायटी, न्यू ब्रुन्स्विक, कनाडा) ने अपने समापन वक्तव्य में कहा- "रात भीग रही है, बर्फ गिर रही है। खेद है कि हम सब डॉ. आनंद को अधिक समय नहीं दे पाए और न ही भारत में चल रही अन्य साहित्यिक गतिविधियों के बारे में जान पाए। उनसे अनुरोध है कि वे बार-बार इस धरतीपर आयें ताकि हम प्रवासी उनको और अधिक सुन सके।"
प्रो. आर. डी. वर्मा की अध्यक्षता में डॉ. आनंद के काव्य पाठ का शुभारंभ हुआ। उन्होने कवि गोष्ठी में सबसे पहले मुक्तक प्रस्तुत किये। उनके सुन्दर मुक्तकों को सुनकर उपस्थित श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये। उनका एक मुक्तक देखें- "प्यार से हँसता चमन में फूल है/ प्यार बिन जोरू, जमी, ज़र धूल है/ प्यार तो पहचान है भगवान की/ प्यार से इंसान भी भगवान है।" इसके बाद डॉ. आनंद ने अपने शिशु गीतों और बालगीतों को प्रस्तुत किया, जिन्हें सुनकर श्रोता अपने बचपन को याद करने लगे। साथ ही उन्होने अपनी कविताओं के माध्यम से भारत और कनाडा के जीवन और धूप को प्रस्तुत किया। तब भावक वाह-वाह करने से अपने आप को न रोक सके। उन्होंने यह गीत सबको पसंद आया- "जाने कितने रामलाल ने/ सचमुच/ पापड़ बेले हैं। बचपन में/ आँसू ने बह-बह/ गहरा सागर रूप धरा/ हुई नसीब न/ दूध बूँद की/ पानी पी पेट भरा/ समय समाज कर्ज के ढेरों/ हरदिन/ झापड़ झेले हैं।"
कार्यक्रम के समापन अवसर पर डॉ. आनंद ने इन शब्दों से आभार व्यक्त किया- "किस तरह से करूँ मैं खुशी का इज़हार/ आप सबने जो दिया है प्यार का उपहार/ स्वर्ण अक्षर लिखेगें आज का इतिहास/ बन गया मेरी धरोहार आप सबका प्यार।" और "फ्रिडियरिक्टेन ने जो दिया/ तन-मन से आनंद/ जीवन् भर भूलू नहीं/रचूँ अनूठे छन्द।"
इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे- प्रो. सत्यदेव,सरिता गुप्ता,समीर कामरा, पण्डेऱ कामरा, सरिता गूज़र,प्रेमलता आनंद,अभिलाष वर्मा,प्रकाश चंद्र निगम, प्रमोद वर्मा, मधु वर्मा आदि। इस कार्यक्रम की संचालिका मधु वर्मा (संस्थापक अध्यक्ष, एशियन हेरिटेज सोसायटी, न्यू ब्रुन्स्विक, कनाडा) ने अपने समापन वक्तव्य में कहा- "रात भीग रही है, बर्फ गिर रही है। खेद है कि हम सब डॉ. आनंद को अधिक समय नहीं दे पाए और न ही भारत में चल रही अन्य साहित्यिक गतिविधियों के बारे में जान पाए। उनसे अनुरोध है कि वे बार-बार इस धरतीपर आयें ताकि हम प्रवासी उनको और अधिक सुन सके।"
रपट प्रस्तुति
डॉ. जयजयराम आनंद
डॉ. जयजयराम आनंद
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