भारत भूषण |
मेरठ। हिन्दी गीतों के चितेरे भारत भूषण अब इस दुनिया में नहीं रहे। 82 साल की उम्र में शनिवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। उत्तर प्रदेश के मेरठ स्थित एक अस्पताल में दो दिन से भर्ती भारत भूषण को 72 घंटे में दूसरी बार दिल का दौरा पड़ा। उनका अंतिम संस्कार रविवार सुबह सूरजकुंड श्मशान घाट पर किया गया।
एक शिक्षक के तौर पर करियर की शुरुआत करने वाले भारत भूषण बाद में काव्य की दुनिया में आए और छा गए। उनकी सैकड़ों कविताओं व गीतों में सबसे चर्चित राम की जलसमाधि रही। उन्होंने तीन काव्य संग्रह लिखे। पहला 'सागर के सीप' वर्ष 1958 में, दूसरा 'ये असंगति' वर्ष 1993 में और तीसरा 'मेरे चुनिंदा गीत' वर्ष 2008 में प्रकाशित हुआ। वर्ष 1946 से मंच से जुडने वाले भारत भूषण मृत्यु से कुछ महीनों पूर्व तक मंच से गीतों की रसधार बहाते रहे। उन्होंने महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर जैसे कवि-साहित्यकारों के साथ भी मंच साझा किया। दिल्ली में 27 फरवरी, 2011 को आयोजित कवि सम्मेलन में उन्होंने अंतिम बार भाग लिया था। उनकी याद में यहाँ पर उनका एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ-
एक शिक्षक के तौर पर करियर की शुरुआत करने वाले भारत भूषण बाद में काव्य की दुनिया में आए और छा गए। उनकी सैकड़ों कविताओं व गीतों में सबसे चर्चित राम की जलसमाधि रही। उन्होंने तीन काव्य संग्रह लिखे। पहला 'सागर के सीप' वर्ष 1958 में, दूसरा 'ये असंगति' वर्ष 1993 में और तीसरा 'मेरे चुनिंदा गीत' वर्ष 2008 में प्रकाशित हुआ। वर्ष 1946 से मंच से जुडने वाले भारत भूषण मृत्यु से कुछ महीनों पूर्व तक मंच से गीतों की रसधार बहाते रहे। उन्होंने महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर जैसे कवि-साहित्यकारों के साथ भी मंच साझा किया। दिल्ली में 27 फरवरी, 2011 को आयोजित कवि सम्मेलन में उन्होंने अंतिम बार भाग लिया था। उनकी याद में यहाँ पर उनका एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ-
फिर फिर
बदल दिये कैलेण्डर
तिथियों के संग-संग प्राणों में
लगा रेंगने
अजगर-सा डर
सिमट रही साँसों की गिनती
सुइयों का क्रम जीत रहा है!
पढ़कर
कामायनी बहुत दिन
मन वैराग्य शतक तक आया
उतने पंख थके जितनी भी
दूर-दूर नभ
में उड़ आया
अब ये जाने राम कि कैसा
अच्छा-बुरा अतीत रहा है!
संस्मरण
हो गई जिन्दगी
कथा-कहानी-सी घटनाएँ
कुछ मनबीती कहनी हो तो
अब किसको
आवाज लगाएँ
कहने-सुनने, सहने-दहने
बदल दिये कैलेण्डर
तिथियों के संग-संग प्राणों में
लगा रेंगने
अजगर-सा डर
सिमट रही साँसों की गिनती
सुइयों का क्रम जीत रहा है!
पढ़कर
कामायनी बहुत दिन
मन वैराग्य शतक तक आया
उतने पंख थके जितनी भी
दूर-दूर नभ
में उड़ आया
अब ये जाने राम कि कैसा
अच्छा-बुरा अतीत रहा है!
संस्मरण
हो गई जिन्दगी
कथा-कहानी-सी घटनाएँ
कुछ मनबीती कहनी हो तो
अब किसको
आवाज लगाएँ
कहने-सुनने, सहने-दहने
को केवल बस गीत रहा है!
आपने गीत कवि का स्मरण कर अच्छा कार्य किया है। भारत भूषन जी को सुनना स्वयं से साक्षात्कार करने जैसा था। ब्यक्ति के रूप में भी वे उतने ही सरल-तरल थे, जितने उनके गीत।
जवाब देंहटाएंराजेन्द्र वर्मा