26 जून 1926 को जनमे वरिष्ठ कवि महेंद्र भटनागर सेवानिवृत्ति के बाद ग्वालियर (म.प्र.) में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। प्रगतिशील-जनवादी हिंदी-कविता के सशक्त हस्ताक्षर भटनागर जी ने विपुल साहित्य सृजन किया है । उनका अधिकांश साहित्य ‘महेंद्र भटनागर-समग्र’ के सात खंडों में उपलब्ध है। उनकी अठारह काव्य-कृतियों के संग्रह तीन खंडों में पृथक से भी प्रकाशित हो चुके हैं- ‘महेंद्र भटनागर की कविता-गंगा’। द्विभाषिक कवि- हिंदी और अंग्रेज़ी। अंग्रेज़ी में उनकी ग्यारह काव्य-कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कविताएँ कई भारतीय भाषाओं में अनूदित व पुस्तकाकार प्रकाशित। फ्रेंच में 108 कविताओं के अनुवाद अंग्रेज़ी-प्रारूपों के साथ पुस्तकाकार उपलब्ध हैं। उनको अब तक कई सम्मानों से अलंकृत किया जा चुका है। संपर्क: 110 बलवंतनगर, गांधी रोड, ग्वालियर- 474 002 (म.प्र.)। फ़ोन: 0751- 4092908। ई-मेल: drmahendra02@gmail.com। आपकी दो रचनाएँ यहाँ दी जा रही हैं-
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
1. री हवा !
री हवा !
गीत गाती आ,
सनसनाती आ ;
डालियाँ झकझोरती
रज को उड़ाती आ !
मोहक गंध से भर
प्राण पुरवैया
दूर उस पर्वत-शिखा से
कूदती आ जा !
ओ हवा !
उन्मादिनी यौवन भरी
नूतन हरी इन पत्तियों को
चूमती आ जा !
गुनगुनाती आ,
मेघ के टुकड़े लुटाती आ !
मत्त बेसुध मन
मत्त बेसुध तन !
खिलखिलाती, रसमयी,
जीवनमयी
उर-तार झंकृत
नृत्य करती आ !
2. जीवन
जीवन हमारा फूल हरसिंगार-सा
जो खिल रहा है आज,
कल झर जायगा !
इसलिए, हर पल विरल
परिपूर्ण हो रस-रंग से,
मधु-प्यार से !
डोलता अविरल रहे हर उर
उमंगों के उमड़ते ज्वार से !
एक दिन, आख़िर,
चमकती हर किरण बुझ जायगी...
और चारों ओर
बस, गहरा अँधेरा छायगा !
मत लगाओ द्वार अधरों के
दमकती दूधिया मुसकान पर,
हो नहीं प्रतिबंध कोई
प्राण-वीणा पर थिरकते
ज़िन्दगी के गान पर !
एक दिन उड़ जायगा सब ;
फिर न वापस आयगा !
jeevan ka yathart chupai behad khubsoort kavita.
जवाब देंहटाएंकमाल की लेखनी है महेंद्र जी की लेखनी को नमन बधाई
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