जन्म: १६ अगस्त, नीमच (म प्र) में
शिक्षा: सिविल इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर
सम्प्रति: अनुसन्धान, अभिकल्प एवं मानक संगठन,
शिक्षा: सिविल इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर
सम्प्रति: अनुसन्धान, अभिकल्प एवं मानक संगठन,
रेल मंत्रालय, लखनऊ में कार्यकारी निदेशक
रूचि: साहित्य, अध्यात्म और अनुसन्धान,
रूचि: साहित्य, अध्यात्म और अनुसन्धान,
१० से अधिक तकनीकी शोध पत्र प्रकाशित
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
1. बेंच
तुम्हारी याद
प्रतीक्षा में होगी
पार्क की उस बेंच पर
मेरी रूह को कसने को आकुल
जैसे मेरी बाहें होती थीं कल
तुम्हारे अस्तित्व को घेरे
उस तक जाऊंगा तो
अकेला नहीं लौटूंगा
2. पगडंडी
लेक पार्क की घुमावदार पगडंडी
दो जोड़े पांवों के चिन्हों से
बतियाती अक्सर
यादों के झुरमुट में
खो जाती है
सम्हाल कर रखी है
उसने अब तक तुम्हारी हंसी
अपने किनारे उगे उस
अनाम फूल में
3. फूल
फूल अनमने हैं
रंगों में अपने आप को छुपाये
वो आइना
गूम है
अपना अक्स देखकर
जिसमें
अपने खिलने के मायने
मिल जाते थे उन्हें
4. चाँद
चाँद रात भर
सोया रहा सर्द झील में
लेता हुआ करवटें
इस पार से उस पार
रात की पलकें
अंतिम बार गिर कर
उठने का होंसला खो बैठीं
स्वप्न जलपरी को खोजते
मरू के किसी
वीरान दिन से
भग्न हो रहे
5. समय
समय दस्तक देकर
छुप गया कंटीली ओट
द्वार खोले तो
वसंत की जगह
खाली हाथ
हवा मिली
सभी लघु कविताएँ बहुत सुन्दर .....कल्पनाओं की ऊंचाई को सुन्दर शब्दों से बांधा है आपने ....बढ़ा परमेश्वर फुन्क्वाल जी
जवाब देंहटाएंसभी लघु कवितायें बहुत सुन्दर हैं ...शब्दों की ऊंचाइयों को सुन्दर शब्दों मे बांधा है आपने ...बधाई परमेश्वर फुंकवाल जी
जवाब देंहटाएंआ संध्या जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद, सुन्दर शब्दों में सराहना के लिए
हटाएंसंध्या जी आपकी सराहना आगे बढ़ने का होंसला देती है. हार्दिक धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
आपका बहुत बहुत धन्यवाद डा रूपचन्द्र शास्त्री जी.
हटाएंsunder bhavon ko sunder bimbon se sajaya hai .bahut sunder
जवाब देंहटाएंrachana
आपका आभार रचना जी सुन्दर प्रतिक्रिया से उत्साह बढ़ाने के लिए.
हटाएंरचना जी आपका हार्दिक धन्यवाद उत्साह बढ़ाने के लिए
हटाएंरचना जी, पता नहीं क्यों उत्तर पोस्ट नहीं हो पा रहा है. पुनः प्रयास कर रहा हूँ. "आपका आभार सराहना युक्त प्रतिक्रिया के लिए".
हटाएंआपका आभार शांति गर्ग जी.
जवाब देंहटाएंचाँद रात भर
जवाब देंहटाएंसोया रहा सर्द झील में
लेता हुआ करवटें
इस पार से उस पार
रात की पलकें
अंतिम बार गिर कर
उठने का होंसला खो बैठीं
वाह ! वाह! वाह !
वसंत सचमुच दस्तक देकर लौट गया । पर उसे तो आना ही होगा ।
आशा जी, पंक्तियाँ रेखांकित कर कविताओं के मर्म तक जाने के लिए एवं सराहना के लिए विनीत हूँ. धन्यवाद.
हटाएंथोड़े से शब्दों नॆं कितनी गहराई तय की है इसका अनुमान आसानी से लगा
जवाब देंहटाएंपाना सम्भव नहीं है।ये एक कुशल शिल्पी की कलम का कमाल है और थोड़ा-थोड़ा गागर में सागर की अनुभुति कराता हैं,जहाँ तक मैं समझ पा रहा हूँ ये
कवितायें नवछायावाद की धार को और पैना कर रही हैं।
इतनी अच्छी कविताओं के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यबाद।
आ अनिल जी. आपकी सहृदय प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद.
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