पूर्वाभास (www.poorvabhas.in) पर आपका हार्दिक स्वागत है। 11 अक्टूबर 2010 को वरद चतुर्थी/ ललित पंचमी की पावन तिथि पर साहित्य, कला एवं संस्कृति की पत्रिका— पूर्वाभास की यात्रा इंटरनेट पर प्रारम्भ हुई थी। 2012 में पूर्वाभास को मिशीगन-अमेरिका स्थित 'द थिंक क्लब' द्वारा 'बुक ऑफ़ द यीअर अवार्ड' प्रदान किया गया। इस हेतु सुधी पाठकों और साथी रचनाकारों का ह्रदय से आभार।

मंगलवार, 8 मई 2012

स्वरचित कविता प्रतियोगिता का आयोजन - प्रथम पार्ट

 निर्णायक मंडल 
महेश दिवाकर

माहेश्वर तिवारी

शचीन्द्र भटनागर


प्राचार्य: डॉ. टी.पी. अग्रवाल 

सहायक कुलसचिव: डॉ. नितिन  अग्रवाल 


मुरादाबाद: यूनिवर्सिटी पॉलीटेक्निक (तीर्थंकर महावीर यूनीवर्सिटी) के कर्मठ एवं जुझारू प्राचार्य आदरणीय डॉ. टी.पी. अग्रवाल जी और युवा सहायक कुलसचिव डॉ. नितिन  अग्रवाल जी की प्रेरणा से प्रथम एवं द्वितीय वर्ष के छात्र-छात्राओं के लिए स्वरचित कविता प्रतियोगिता का आयोजन दिनांक ९ मई बुधवार, अपरान्ह २ बजे, एल टी थिएटर- २ में किया जा रहा है।  कार्यक्रम को सुचारू रूप से संपन्न कराने के लिए छात्र-छात्राओं को समय-समय पर कविता की बारीकियों से अवगत कराया गया और उनका मार्गदर्शन किया गया, जिसमें अवनीश सिंह चौहान, अनुराधा पंवार, श्री वरुण झा, श्री कार्तिकेय, सुश्री वर्षा वत्स, श्रीमती जरीन फारुक का विशेष सहयोग रहा। इस आयोजन से एक दिन पूर्व इन छात्रों की रचनाओं को पूर्वाभास पर प्रकाशित किया जा रहा है। इनमे से तीन श्रेष्ठ प्रतिभागियों का चयन मूर्धन्य साहित्यकारों के एक निर्णायक मंडल (श्रद्धेय माहेश्वर तिवारी जी, शचीन्द्र भटनागर जी एवं महेश दिवाकर जी) द्वारा किया जाएगा। बुधवार को यह  प्रक्रिया पूर्ण होगी। इस कार्यक्रम के संयोजक हैं अवनीश सिंह चौहान और अनुराधा पंवार। प्रतिभागी छात्र-छात्राओं की रचनाएँ   पाठकों-विद्वानों के  लिए यहाँ प्रस्तुत हैं- 

१. प्रकृति के प्रति - अभिषेक कुमार
अभिषेक कुमार

प्रकृति हमें देती है
बहुत कुछ
और बदले में
हमने किया इसका दोहन
निर्ममता से

प्रकृति ने हमें जीवन दिया
माँ की तरह
दिया प्यार-दुलार
पर हम हैं
कि भूल गए यह सब

नदी, झरने, पर्वत, पेड़, लताएँ
सब अपने ही तो हैं
पर हम गैरों-सा वर्ताव करते हैं
इनके साथ
स्वार्थ में अंधे होकर

हमें बदलनी होगी
अपनी यह सोच-नजरिया
प्रकृति के प्रति

२. हम भूल गए - अभिषेक मिश्रा
अभिषेक मिश्रा

हम मानते हैं
कि परमाणु बम के आविष्कार से
हम शक्तिशाली हो गए
कब तक
हम खर्च करते रहेंगे
गरीब जनता के हक़ का पैसा
इन विनाशकारी चीजों पर

हम सोचते हैं
कि हमने हथियार बनाकर
दुनिया में अपनी धाक जमा ली
और यह भूल जाते हैं कि
हिरोशिमा और नागासाकी
अब तक ठीक से नहीं
उठ पाए हैं।

३. दुश्मनी की है - सिफात हैदर
सिफात हैदर

हमने बस इतनी तरक्की की है
अपनी साँसों से दुश्मनी की है।

माँ से हम बात तक नहीं करते
सारी दुनिया से दोस्ती की है।

अब कहाँ हीर और कहाँ रांझा
अब तो पैसे से दिल्लगी की है।

कल तलक जो हमारे साथ रहा
आज उसने ही बेरुखी की है।

साफ़ है उसकी उदासी की वज़ह
गुल ने साखों से दुश्मनी की है।

४. मेरी प्यारी माँ - जोनी कुमार
जोनी कुमार

मेरे आंसू पोंछने वाली
मेरी पलकों को
अपने हाथों से सहलाकर
दिलाशा देने वाली
मेरी पीठ थपथपाकर
मुझे हसाने वाली
मेरी प्यारी माँ

मेरे सपनों को साकार कराती
अपना आशीष देकर
मैं घबराऊँ
तो बंधाती मेरी हिम्मत
खुशियाँ देती है मुझे
प्यार से मुस्काने वाली
मेरी प्यारी माँ

चेहरे पर चमक लेकर
आती है हरदम मेरे सामने
मेरे लिए हर दर्द सहकर
मुझे सुकून से सुलाने वाली
मेरी प्यारी माँ

अपना पूरा समय
खपा देती है वह
मेरे लिए
मेरे बेहतर वर्तमान
एवं भविष्य के लिए
दुआएं करने वाली
मेरी प्यारी माँ।

५. इनका जीवन - जुल्फेकार अली
जुल्फेकार अली

वृक्ष
देते हैं फल-फूल
अपना सर्वस्व
लुटाते है इस धरा पर
देते हैं आश्रय-छाया
तभी तो बनाते हैं पंछी
घोसला इन्ही पर
और इनके नीचे बैठकर
सुस्ताते हैं
थके-मांदे जीव
वृक्षों का
नहीं होता
कोई निजी स्वार्थ
निःस्वार्थ है
इनका सम्पूर्ण जीवन।

६. कैसे बचेगा देश - धर्मेन्द्र कुमार
धर्मेन्द्र कुमार

राजनीति
आजकल बन गयी है धंधा
देश की भलाई, जनता की सेवा
करने का करते है वादा
कई राजनेता
भरते रहते हैं अपनी जेब
करते हैं अय्याशी
और छोड़ देते हैं
देश और जनता को
उसके हाल पर
उन्हें बदहाल कर

आज तमाम लोग
अपने पारिवारिक पेशे के तहत
आ रहे हैं राजनीति में
वंशवाद की बेल
और कब तक फैलेगी

कुछ तो अंगूठाटेक भी हैं
इस सूची में
जिन्हें न तो संविधान का ज्ञान है
न संसद की कार्यवाही की समझ
पर वे कर रहे हैं राजनीति
आजतक
कई ऐसे भी नेता हैं
जो करते हैं राजनीति
बाहुबल से

कहाँ गए
सरदार पटेल,
लालबहादुर शास्त्री
कैसे बचेगा देश?

Self-written Poetry Contest

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