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गुरुवार, 21 जून 2012

प्रवासी रचनाकार इला प्रसाद का रचनापाठ


दिल्ली: दिनांक 4 जून, 2012 को प्रवासी दुनिया और अक्षरम के तत्वावधान में दीवानचंद ट्रस्ट , कनाट प्लेस में अमेरिका की प्रवासी लेखिका इला प्रसाद के रचनापाठ का कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में उनके पिता और हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान और आलोचक श्री दिनेश्वर प्रसाद को श्रद्धांजलि दी गई । डॉ कमल किशोर गोयनका ने श्री दिनेश्वर प्रसाद के बारे में बोलते हुए बताया कि वे हिंदी के प्रमुख आलोचक और विद्वान थे और फादर कामिल बुल्के के शब्दकोश निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

इसके पश्चात श्रीमती इला प्रसाद द्वारा अपनी प्रतिनिधि रचनाओं ‘ उस स्त्री का नाम‘ और ‘ मेज ‘ का पाठ किया गया। ‘उस स्त्री का नाम’ अमेरिका के एक समृद्ध रियल इस्टेट व्यापारी की मां को ओल्ड एज केयर होम में डाले जाने की कहानी है। परत – दर –परत उस स्त्री का खुलता व्यक्तित्तव हमें अमरीका की चमक के पीछे के खोखलेपन और मानवीय संबंधों की कीमत पर पाई समृद्धि का परिचय कराता है। ‘मेज’ एक अत्यंत प्रभावी कहानी है जिसमें एक साधारण सी प्रयोगबाह्य मेज किस प्रकार पक्षियों की चहक से घर को भर देती है उसका विवरण है। दोनों कहानियां मार्मिक, संवेदनशील और शिल्प की दृष्टि से बड़ी सुघड़ रही। कहानियों के अतिरिक्त इला प्रसाद ने अपनी कविताओं का पाठ भी किया।

कार्यक्रम में उपस्थित साहित्यिक समाज ने इला प्रसाद की रचनाओं पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रियाएं भी दी। जहां डॉ कमल किशोर गोयनका ने ‘मेज’ कहानी को जड़ में भी चेतनता का परिचय करवाने वाली कहानी बताया वहीं रूप चंद चंदेल ने उनकी काव्यात्मक भाषा और वाक्यात्मक सौष्ठव की प्रशंसा की । सुभाष नीरव ने उनकी ‘मेज’ कहानी को विशेष रूप से रेखांकित करते हुए उसे एक उत्कृष्ट कहानी बताया। बलराम अग्रवाल ने इन कहानियों को एक उपलब्धि बताया। वहीं अनिल जोशी ने उन्हें अमेरिका के रचनाकारों के संग्रह ‘कथातंर’ के संदर्भ में प्रमुख प्रवासी रचनाकार के रूप में चिन्हित किया । उन्होंने कहा कि उनकी कहानी ‘उस स्त्री की कहानी’ निरंतर भारतीय जीवन मूल्यों के बरक्स पश्चिमी जीवन मूल्यों की मुठभेड़ प्रस्तुत करती है अत इस प्रभावी प्रतिनिधि प्रवासी कहानी के रूप मे माना जाना चाहिए। व्यंग्यकार वेद व्यथित ने कहानी में अतर्निहित व्यंग्य धार की सराहना की। अमेरिका से पधारी श्रीमती अनिता कपूर ने कहानी के अंत को अत्यंत रोचक माना। वीरेन्द्र सक्सेना ने कहानियों को अत्यंत परिपक्व बताया। नारायण कुमार ने प्रो. दिनेश्वर प्रसाद को श्रद्धापूर्ण श्रद्धांजलि दी। विश्व हिंदी सचिवालय के पूर्व महासचिव डॉ राजेन्द्र मिश्र ने कहानियों को उत्कृष्ट बताया। आधुनिक साहित्य पत्रिका के संपादक श्री आशीष कांधे ने पत्रिका की नवीनतम प्रति इला प्रसाद जी को भेंट की । कार्यक्रम का गरिमामय संचालन सुरेश यादव ने किया । प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत अवधेश कुमार सिंह द्वारा किया गया।

कार्यक्रम में प्रवासी दुनिया की प्रबंध संपादक श्रीमती सरोज शर्मा , अतुल प्रभाकर अर्चना त्रिपाठी, मोहन चंद्र बहुगुणा, मनोज सिन्हा, सत्या त्रिपाठी, बालकृष्ण शर्मा, मनोज अबोध भी कार्यक्रम में उपस्थित थे।

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