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मंगलवार, 21 अगस्त 2012

त्रिलोक सिंह ठकुरेला और उनकी पाँच कुंडलियाँ — अवनीश सिंह चौहान

त्रिलोक सिंह ठकुरेला

०१ अक्टूबर १९६६ को हाथरस उ.प्र.) में जन्मे  त्रिलोक सिंह ठकुरेला हिंदी साहित्य के सशक्त रचनाकार है। आपके द्वारा सृजित- 'नया सवेरा' (बालगीत संग्रह) और संपादित संकलन- 'आधुनिक हिन्दी लघुकथाएं' एवं 'कुण्डलिया छन्द के सात हस्ताक्षर' प्रकाशित हो चुके हैं । वर्तमान में आप कुंडलिया छंद के उन्नयन, विकास और पुनर्स्थापना हेतु कृतसंकल्प एवं समर्पित हैं। आबू समाचार के दशाब्दी समारोह पर राजस्थान के माननीय शिक्षामंत्री द्वारा सम्मानित, हिंदी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग द्वारा ' वाग्विदान्वर सम्मान ', पंजाब कला, साहित्य अकादमी, जालंधर द्वारा 'विशेष अकादमी सम्मान', विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ गांधीनगर (बिहार) द्वारा 'विद्या वाचस्पति', राष्ट्रभाषा स्वाभिमान ट्रस्ट (भारत) गाज़ियाबाद द्वारा ' बाल साहित्य भूषण’ से अलंकृत। सम्प्रति- उत्तर पश्चिम रेलवे में इंजीनियर। संपर्क- बंगला संख्या- 99, रेलवे चिकित्सालय के सामने, आबू रोड- 307026 (राजस्थान); मोबाइल- 02974-221422/ 09460714267/ 07891857409; ई-मेल: trilokthakurela@gmail.com, trilokthakurela@yahoo.com। आपकी पांच कुण्डलियाँ यहाँ प्रस्तुत की जा रही हैं:-

चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार
(1)  
                       
सोना तपता आग में, और निखरता रूप
कभी न रुकते साहसी, छाया हो या धूप
छाया हो या धूप, बहुत सी बाधा आयें
कभी न बनें अधीर, नहीं मन में घवराएँ
'ठकुरेला' कविराय, दुखों से कैसा रोना
निखरे सहकर कष्ट, आदमी हो या सोना

(2)

होता है मुश्किल वही, जिसे कठिन लें मान
करें अगर अभ्यास तो, सब कुछ है आसान
सब कुछ है आसान, बहे पत्थर से पानी
यदि खुद करे प्रयास, मूर्ख बन जाता ज्ञानी
'ठकुरेला' कविराय, सहज पढ़ जाता तोता
कुछ भी नहीं अगम्य, पहुँच में सब कुछ होता

(3)

मानव की कीमत तभी, जब हो ठीक चरित्र
दो कौड़ी का भी नहीं, बिना महक का इत्र
बिना महक का इत्र, पूछ सदगुण की होती
किस मतलब का यार,चमक जो खोये मोती
'ठकुरेला' कविराय ,गुणों की ही महिमा सब
गुण, अबगुन अनुसार, असुर, सुर, मुनिगन, मानव

(4)

पाया उसने ही सदा, जिसने किया प्रयास
कभी हिरन जाता नहीं, सोते सिंह के पास
सोते सिंह के पास, राह तकते युग बीते
बैठे -ठाले व्यक्ति, रहे हरदम ही रीते
'ठकुरेला' कविराय, समय ने यह समझाया
जिसने किया प्रयास ,मधुर फल उसने पाया

(5)

धीरे धीरे समय ही, भर देता है घाव
मंजिल पर जा पहुंचती, डगमग करती नाव
डगमग करती नाव, अंततः मिले किनारा
मिटती मन की पीर, टूटती तम की कारा
'ठकुरेला' कविराय, ख़ुशी के बजें मजीरे
धीरज रखिये मीत, मिले सब धीरे, धीरे

Trilok Singh Thakurela Ki Panch Kundaliyan

10 टिप्‍पणियां:

  1. त्रिलोक सिंह ठकुरेला की पांच कुंडलियाँ
    Abnish Singh Chauhan
    पूर्वाभास



    ठकुरेला की कुण्डली, डली यहाँ पर श्रेष्ठ ।

    कष्ट निखारे गुणों को, चरित्रवान ही ज्येष्ठ ।

    चरित्रवान ही ज्येष्ठ, काम कुछ नहीं असंभव ।

    करिए उद्यम नित्य, खुदी का करिए अनुभव ।

    कार्य सफल हो सिद्ध, नहीं कुछ यहाँ झमेला ।

    शिक्षा प्रद कुंडली, गुरु जी हैं ठकुरेला ।

    dineshkidillagi.blogspot.com-


    २००० कुंडलियाँ हैं यहाँ पर
    पर तुकबन्दी ज्यादा है |
    कुछ सलाह मिले-
    सादर ||

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  2. वाह ... बहुत ही आशावादी स्वर है इन सभी कुंडलियों में ...
    बेहतरीन बाते करती लाजवाब अभिव्यक्ति ...

    जवाब देंहटाएं
  3. gahra bhaw liye sunder sandesh deti atti uttam kundaliya,sunder prastuti.thkurela ji badhai ho.

    जवाब देंहटाएं

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