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रविवार, 16 सितंबर 2012

'तूफान' - अलभ़्य घोष

अलभ़्य घोष

अलभ्य घोष का जन्म 10 जुलाई 1976 को ग्राम- हरिदेव पुर, कोलकाता, प.बंगाल में हुआ। मिट्टी की मूर्तियाँ और चित्रकारी के शौक़ीन अलभ्य जी ने कई बंगाली फिल्मों और धारावाहिक नाटकों में पटकथा लेखन और अभिनय किया है। आप टेली फिल्म 'अमातिर कथा', जिसे चौदहवे कोलकाता फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित किया गया था, के सहायक निर्देशक एवं पटकथा लेखक हैं। आपका प्रथम कविता संग्रह- दरपन 1994 में प्रकाशित हुआ था। अनेक पत्र-पत्रिकाओं एवं समवेत संकलनों में गल्प, कविता, नाटक, उपन्यास आदि प्रकाशित। सम्प्रति: स्वाधीन बांला चलचित्र परिचालक एवं निर्माता। 945 हरिदेव पुर, नेताजी पल्ली, कोलकाता- 700082; ई-मेल: allabhya@in.com। आपका एक लघु नाटक यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है:- 

चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार

(1)

कुछ समय पहले यहाँ से एक तुफान गुजर गया। जो प्रदीप और अनीता के साथ एक चार साल के बच्चे को भी छुआ है । बचपन में छोटा बच्चा अपने माता-पिता की लड़ाई देखकर इस वास्तविकता को समझता है कि वह अकेला है; हर कोई निर्दयतापूर्वक अकेला हैं। वह रोया। पिता या माँ कौन उसे पनाह दे सकते हैं, समझ नहीं प् रहा है। वह दस बाइ दस फुट के कमरे में स्टील अलमारी के पीछे खड़ा होकर रोया।

(2)

अब  वह गहरी नीद मे। कमरे में अंधेरे छाया हुआ है। अनीता अपने बेटे के बगल में बैठी है... अपनी ओली में उसका सिर रखे है। प्रदीप स्तंभ के सहारे गलियारे में खड़ा है। छोटा लड़का नींद में अब रो रहा है । घरेलू सामान फर्श पर टूटा पड़ा हैं। भोजन रसोई घर में बना रखा है। बच्चा डिनर के बिना सो रहा है। 

कमरे में क्या हुआ? चलिए, कुछ समय पीछे लिए चलता हूँ। प्रदीप अनीता के लिए दरवाजे पर इंतज़ार कर रहा था। आखिरकार- लंबे इंतजार के बाद, सफेद अम्बेसडर कार, रोज की तरह, गली के सामने आती है। चाय स्टाल से अश्लील सीटी की आवाज़ प्रदीप के कानों में प्रवेश करती है। वह अपने आप को काबू नहीं रख सका। वह कार के सामने आ गया, गलियारे में  बेटे को छोड़ दिया।

'शुभरात्रि, अनीता', अनीता के मालिक, श्री सेन ने कहा। 
अनीता जॉब से वापस घर हर रात दस बजे आती हैं। आज और अधिक देर हो चुकी थी। प्रदीप श्री सेन के मुंह पर थप्पड़ मारता है। 
'अगर मैंने तुम्हें कल फिर से इसके साथ देखा तो मैं तुम्हें जान से मर डालूँगा।'

चाय की दुकान के लोग दुकान बंद करने के बाद घर जाने वाले थे। वे रुक गए।

श्री सेन प्रदीप के अप्रत्याशित व्यवहार से असमंजस में था। लेकिन उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं की।वह चारों ओर देखकर कार में बैठ गया। उसके चहरे पर उग्रता का भाव, उसने ड्राइवर को गाड़ी चलाने के लिए कहा। अनीता ने रूमाल से अपना चेहरा छुपाए कमरे में प्रवेश किया। वह बिस्तर पर सोने चली गई। प्रदीप के कमरे में प्रवेश करने के बाद, उसने उसकी कमीज पकड़ी।

'तुमने उसे थप्पड़ क्यों मारा?'

'मैंने ठीक किया।'
'अगर मेरी नौकरी कल चली गई। तो? क्या खाओगे? हवा?'

अनीता प्रदीप की पकड़ में थी। प्रदीप बहुत उत्तेजना में था। उसकी आँखें लाल थीं।

'प्राईवेट सेक्रेटरी ...... आप सोच रहीं हैं मैं कुछ नहीं समझ सकता। हर दिन आप नए बहाने के साथ घर देर से आती हैं। शर्म नहीं आती ?'

'नहीं। क्योंकि मैं परिवार का एक अच्छी चिंतक हूँ।' 
'मुझे नहीं लगता है।'
'कोई बात नहीं। मैं अपने बेटे के भविष्य के बारे में सोचती हूँ। मुझे उसके पिता की क्षमता के बारे में पता है।'

प्रदीप का पूरी तरह से संयम का बांध टूट जाता है। उसने अनीता को रोकने के लिए थप्पड़ मारा। अनीता बिस्तर पर गिर जाती हैं । प्रदीप पागल हो जाता है; जब उसने महसूस किया कि वह परिवार की देखभाल करने के लिए पर्याप्त नहीं है। वह अपनी पत्नी की देखभाल नहीं कर सकता। उसे एक अच्छा काम नहीं मिला। परिवार निजी ट्यूशन की नौकरी से नहीं चल सकता। अनीता जानती थी कि प्रदीप बच्चा नहीं चाहता था, लेकिन वह एक कमज़ोर क्षण के कारन जन्मा था। बच्चे और परिवार की हालत में सुधार के लिए; अनीता घर से बाहर निकली थी। वह सुंदर है, सो उसे कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ा था, काम पाने के लिए। वह अब एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के निदेशक की निजी सचिव है। अपने मालिक का दिल जीतने के लिए, अनीता उसे ड्यूटी के बाद व्यक्तिगत समय देती है । वास्तव में पार्टी या क्लब में जाने के लिए वह मालिक के निमंत्रण को मना नहीं कर सकती। 

(3)

प्रदीप ने  ड्रेसिंग टेबल से फर्श पर कंघी, इतर की शीशी, पाउडर का डिब्बा, मेकअप बॉक्स और डायरी के साथ एक फूलदान फेंक दिया था। इसके अलावा ड्रेसिंग टेबल का शीशा भी टूट गया है। अनीता ने थोड़ा पैसा बचाकर ड्रेसिंग टेबल खरीदा था। यह उसे बहुत पसंद है। हर दिन, नहाने के बाद अनीता अपने बालों में कंघी करने के लिए ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठती हैं। एक दिन प्रदीप उसके पीछे खड़ा था। अनीता ने आईने में देखा कि प्रदीप उसे देख रहा है। उसने मुस्कराते हुए कहा-
'आप एक बच्चे की माँ को ऐसे क्या देख रहे हो? 
प्रदीप करीब आया और बोला- 'मैं तुम्हें चूमने की सोच रहा हूँ।'
'आपका बेटा जाग जाएगा।'
'मैं अपनी पत्नी से प्यार कर रहा हूँ।' वह क्यों हस्तक्षेप करती।
'आपको जलन हो रही हैं?'
'क्यों नहीं। मैं अपने बेवकूफ साथी के साथ अपना प्यार साझा नहीं कर सकती।'
इसी क्षण, बुबुन जग गया और बिस्तर पर बैठ गया।
'माँ, मैं टॉयलेट जाना चाहता हूँ।'

प्रदीप बहुत परेशान था। एक अजब हंसी के साथ अनीता अपने बेटे को लेकर टॉयलेट चली गयी।

(4)

चीनी मिट्टी का एक फूलदान प्रदीप लाया था। जो अब फर्श पर टूटा पड़ा है। रजनीगंधा उसका पसंदीदा फूल है। अपनी शादी के बहुत दिनों बाद अनीता के लिए फूल स्टाल से रजनीगंधा लिया था। शादी के पांच साल में, प्यार का फूल परिवार की आर्थिक हालत से सूख गया हैं। उसकी ट्यूशन फीस परिवार को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं थी। प्रदीप मुसीबत में था। अनीता घर से बाहर आती है, उसकी मदद करने के लिए।

(5)

बी.ए. द्वितीय वर्ष के छात्र प्रदीप ने अनीता को प्रभावित किया था। उसके गाने कॉलेज में बहुत लोकप्रिय थे। लड़कियों ने उसे पसंद किया था। छह फीट ऊंचा, उज्ज्वल, पतला, मृदुभाषी, प्रदीप का व्यक्तित्व इतना आकर्षक है कि अनीता ने अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध प्रदीप से शादी की थी।

लेकिन आज अनीता उसे उसके व्यवहार के लिए नफरत करने लगी है। अब प्रदीप की गीतों की डायरी फर्श पर उपेक्षित पडी है।

(6)

रात का एक बजा है। घड़ी का संगीत कह रहा है रात खत्म होने जा रही है। बुबुन अब गहरी नींद में है। अनीता अपनी ओली से उसका सर हटाती है । प्रदीप अभी भी गलियारे में खड़ा है। अनीता गलियारे में धीरे-धीरे जाती है। एक नरम हाथ ने प्रदीप को छुआ। प्रदीप के शरीर की प्रत्येक नस को अनीता के स्पर्श के बारे में बहुत अच्छी तरह से पता है। आंसुओं में चार आँखों को खुद समझ में आ गया। प्रदीप अपने व्यवहार के लिए पश्चाताप करता है। अनीता सब कुछ भूल गयी। अनीता प्रदीप के सीने से एक पागल की तरह चिपक गयी। प्रदीप चिल्लाया। अनीता प्रदीप के दाहिने हाथ से रक्तश्राव देखती है। वह समझ गयी, प्रदीप ने अपने आपको सजा दी है, दर्पण पर हाथ मारकर। अनीता प्रदीप के दाहिने हाथ पर चुंबन करती हैं।

तूफान चला गया है। प्रदीप और अनीता बहुत करीब हैं। यह उनका निजी जीवन है। हम प्रवेश नहीं कर सकते।

A short play 'Toofan' written by Allabhya Ghosh

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