28 जुलाई 1957, बरेली (उत्तर प्रदेश) में जन्मे हिन्दी और हिन्दी साहित्य के प्रति जी-जान से समर्पित कविता कोश और गद्य कोश के पूर्व संपादक एवं रचनाकोश के संस्थापक-संपादक अनिल जनविजय जी सीधे-सरल स्वभाव के ऊर्जावान व्यक्ति हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.कॉम और मॉस्को स्थित गोर्की साहित्य संस्थान से सृजनात्मक साहित्य विषय में एम.ए. करने के बाद आपने मास्को विश्वविद्यालय (रूस) में ’हिन्दी साहित्य’ और ’अनुवाद’ पढ़ाने लगे। इसी दौरान आप मास्को रेडियो की हिन्दी डेस्क से भी जुड़ गये। 'कविता नहीं है यह' (1982), 'माँ, बापू कब आएंगे' (1990), 'राम जी भला करें' (2004) आपके अब तक प्रकाशित कविता संग्रह हैं; जबकि 'माँ की मीठी आवाज़' (अनातोली पारपरा), 'तेरे क़दमों का संगीत' (ओसिप मंदेलश्ताम), 'सूखे होंठों की प्यास' (ओसिप मंदेलश्ताम), 'धूप खिली थी और रिमझिम वर्षा' (येव्गेनी येव्तुशेंको), 'यह आवाज़ कभी सुनी क्या तुमने' (अलेक्जेंडर पुश्किन), 'चमकदार आसमानी आभा' (इवान बूनिन) रूसी कवियों की कविताओं के अनुवाद संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं। छपास की प्यास से कोसों दूर और अपने बारे में कभी भी बात न करने वाला यह अद्भुत हिन्दी सेवी हिन्दी और हिन्दी साहित्य की पताका इंटरनेट पर पूरे मनोयोग से सम्पूर्ण विश्व में फहरा रहा है। कभी किसी ने स्वतः ही अपनी पत्र-पत्रिका में आपको 'स्पेस' दे दिया तो ठीक, न दिया तो भी ठीक; किसी ने पूछ लिया तो ठीक, न पूछा तो भी ठीक; किसी ने मान दे दिया तो ठीक, न दिया तो भी ठीक- कभी किसी से कोई अपेक्षा नहीं की इस भले आदमी ने। ई-पत्रकारिता के जरिए बस इनका ध्येय रहा कि हिन्दी साहित्य के न केवल स्थापित, बल्कि वे सभी रचनाकार विश्व-पटल पर आएं, जो हिन्दी साहित्य में अच्छा कार्य कर रहे हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है आपके द्वारा संपादित उक्त वेब पत्रिकाएं। इतना ही नहीं हिन्दी, रूसी तथा अंग्रेजी साहित्य की गहरी समझ रखने वाला यह बहुभाषी रचनाकार न केवल उम्दा कविताएँ, कहानियां, आलेख आदि लिखता है, बल्कि विभिन्न भाषाओँ की रचनाओं को हिन्दी और रूसी भाषा में सलीके से अनुवाद भी करता है। ऐसे लोग कम ही हैं, जो बहुत अच्छा लिख तो देते हैं, किन्तु वास्तविक जीवन में उस पर अमल नहीं करते— अनिल जी की यह खूबी ही है कि वे जो कहते हैं, वही करते हैं और वैसा ही प्रकट भी करते हैं। यदि मैं हिन्दी और हिन्दी साहित्य के लिये महायज्ञ करने वालों की संक्षेप में बात करूँ, तो अज्ञेय जी, डॉ धर्मवीर भारती जी, डॉ शम्भुनाथ सिंह जी, दिनेश सिंह चौहान जी आदि आधुनिक भारत के विलक्षण हिन्दी सेवियों की सूची में अनिल जनविजय जी का नाम भी जोड़ा जा सकता है। मुझे ऐसा कहने में गर्व महसूस होता है, अन्य लोग क्या सोचते हैं, यह उनकी व्यक्तिगत समझ पर निर्भर करता है। अपनी माटी- अपनी जड़ों से अगाध प्रेम तथा भारत-रूस के बीच मजबूत पुल का कार्य करते हुए यह साहित्य-मनीषी हिन्दी के लिए विशिष्ट कार्य अपने ढंग से कर रहा है। जब कभी भी साहित्यिक ई-पत्रकारिता का इतिहास लिखा जायेगा, वहाँ इस महानायक का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित किया जायेगा— ऐसा मेरा विश्वास है।
१. तुम गाती हो
तुम गाती हो
गाती हो जीवन का गीत
और धूप-सी खिल जाती हो
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
तुम गाती हो
गाती हो सौन्दर्य का गीत
और फूल-सी हिल जाती हो
तुम गाती हो
गाती हो प्रेम का गीत
और रक्त में मिल जाती हो
मैं चाहूँ यह
तुम गाओ हर रोज़ सवेरे
कोई समय हो
हँसी हमेशा रहे तुम्हें घेरे
२. मैंने कहा
मैंने कहा--
अकेला हूँ मैं मास्को में
वसंत आया मेरे पास भागकर
साथ लाया
टोकरी भर फ़ूल
बच्चों की खिलखिलाहटें
पेड़ॊं पर हरी पत्तियाँ
मैंने कहा--
अकेला हूँ मैं
याद आई तुम्हारी
प्रेम आया
इच्छा आई मन में तुम्हें देखने की
मैंने कहा--
अकेला नहीं हूँ मैं
स्नेह है तुम्हारा मेरे साथ
लगाव है
तुम्हारे चुम्बनों की निशानियाँ हैं
मेरे चेहरे पर अमिट
स्मृति में तुम्हारा चेहरा है
तुम्हारी चंचल शरारतें हैं
मैंने कहा--
अकेला नहीं हूँ मैं
प्रिया है मेरी, मेरे पास
मेरे साथ
३. यह रात
मैं हूँ, मन मेरा उचाट है
यह बड़ी विकट रात है
रात का तीसरा पहर
और जलचादर के पीछे
झिलमिलाता शहर
ऊपर
लटका है आसमान काला
चाँद फीका-फीका,
मय का खाली प्याला
मन में मेरे शाम से ही
तेरी छवि है
इतने बरस बाद आज फिर याद जगी है
आग लगी है
४. मस्कवा
आठों पहर
जगा रहता है
यह शहर
आतुर नदी का प्रवाह
कराहते सागर की लहर
करता है
मुझे प्रमुदित
और बरसाता है
कहर
रूप व राग की भूमि है
कलयुगी सभ्यता का महर
अज़दहा है
राजसत्ता का
कभी अमृत
तो कभी ज़हर
५. इच्छा
गाती हो सौन्दर्य का गीत
और फूल-सी हिल जाती हो
तुम गाती हो
गाती हो प्रेम का गीत
और रक्त में मिल जाती हो
मैं चाहूँ यह
तुम गाओ हर रोज़ सवेरे
कोई समय हो
हँसी हमेशा रहे तुम्हें घेरे
२. मैंने कहा
मैंने कहा--
अकेला हूँ मैं मास्को में
वसंत आया मेरे पास भागकर
साथ लाया
टोकरी भर फ़ूल
बच्चों की खिलखिलाहटें
पेड़ॊं पर हरी पत्तियाँ
मैंने कहा--
अकेला हूँ मैं
याद आई तुम्हारी
प्रेम आया
इच्छा आई मन में तुम्हें देखने की
मैंने कहा--
अकेला नहीं हूँ मैं
स्नेह है तुम्हारा मेरे साथ
लगाव है
तुम्हारे चुम्बनों की निशानियाँ हैं
मेरे चेहरे पर अमिट
स्मृति में तुम्हारा चेहरा है
तुम्हारी चंचल शरारतें हैं
मैंने कहा--
अकेला नहीं हूँ मैं
प्रिया है मेरी, मेरे पास
मेरे साथ
३. यह रात
मैं हूँ, मन मेरा उचाट है
यह बड़ी विकट रात है
रात का तीसरा पहर
और जलचादर के पीछे
झिलमिलाता शहर
ऊपर
लटका है आसमान काला
चाँद फीका-फीका,
मय का खाली प्याला
मन में मेरे शाम से ही
तेरी छवि है
इतने बरस बाद आज फिर याद जगी है
आग लगी है
४. मस्कवा
आठों पहर
जगा रहता है
यह शहर
आतुर नदी का प्रवाह
कराहते सागर की लहर
करता है
मुझे प्रमुदित
और बरसाता है
कहर
रूप व राग की भूमि है
कलयुगी सभ्यता का महर
अज़दहा है
राजसत्ता का
कभी अमृत
तो कभी ज़हर
५. इच्छा
ऐसा
क्यों हुआ है आज
हिन्दू से मुस्लिम डरें
कैसा
ज़माना आ गया
राम जी भला करें
Five Hindi Poems of Anil Janvijay
panchon kavitayen kahan aur banak men adbhut.
जवाब देंहटाएंpriy bhaee pathakon tak pahuchane liye dhnaybaad v kavi ko shat shat badhaaee.
Dr Anand
अनिल जी की कविताएं बहुत शांत ढंग से कहीं गहरे तक जाती हैं और बेहद मौन में भी अपनी बात कहती हैं... वे हिंदी की क्लासिकी काव्य परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं... मुझे उनकी कविताएं हमेशा बहुत कुछ सीखने को देती हैं... हालांकि मैं उनके स्वभाव का कवि नहीं हूं, मगर उनसे सीखकर मैंने बहुत सी अच्छी कविताएं लिखी हैं...
जवाब देंहटाएंANIL JI KEE KAVITAAYEN PADH KAR AANANDIT HO GAYAA HUN .
जवाब देंहटाएंअच्छा कवि वही होता है, जो अच्छी कविताओं का पारखी हो। अनिल जी अच्छे कवि भी हैं और अच्छी कविताओं के पारखी भी। उन्हें इन कविताओं के लिए बहुत बधाई कहें।
जवाब देंहटाएंबहुत सादगी से कही हुई ये कविताएँ बहुत गहरे तक अपनी छाप छोडती है.
जवाब देंहटाएंmaskawa
जवाब देंहटाएंबहुत ही सहज व सरल भाषा का उपयोग करते हुए भी बड़ी गंभीर बातें कह जाते हैं कवि अनिल जन विजय जी| आपकी कवितायेँ शांति से दिल के अंदर तक उतार गई हैं, धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाएं हैं सहज सरल भाधा में ...मन को छू गयीं ...
जवाब देंहटाएंबधाई अनिल जन विजय जी..
आभार अवनीश जी ..
VERY GOOD POEMS BY ANIL JANVIJOY. CONGRATS TO ANIL!!
जवाब देंहटाएंVERY GOOD POEMS BY ANIL JANVIJOY. CONGRATS TO ANIL!!
जवाब देंहटाएंवाह.. जीवंत कविताएं.. कवि को बधाई और आपका आभार..
जवाब देंहटाएंbahut umda kavitayein hain
जवाब देंहटाएंsunder aur jiwant kavitae hai .
जवाब देंहटाएंसहज,सरल भाषा में अद्भुत कवितायें....बधाई बहुत बहुत...आभार !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रेम कविताएं। बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंपता नही कैसे अनिल की ये कविताये पढने से रह गई।ताजगी भरी कविताये,बहुत अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंhamari echa hai
जवाब देंहटाएंmanusya ko log manusya samajh lyen yhi bahut hai
MGSM
बहुत ही अछि कविताये दिल को भगायी धन्यवाद आपका इन कविताओं के लिए| Top 5 Books motiavtinal books
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