महेश अनघ यानी कि पापरहित शिव। सत्य ही शिव है और शिव ही सुन्दर। ऐसे थे हमारे प्रिय गीतकवि महेश श्रीवास्तव जी। मेरी कभी उनसे मुलाक़ात तो नहीं हुई परन्तु 4-5 बार फोन पर बात जरूर हुई। चूंकि मैं इटावा का रहने वाला हूँ और वहां से ग्वालियर पास में ही है, इसलिए उनसे बात करना और भी अच्छा लगता था। यमुना के इस पार इटावा और उस पार भिंड-ग्वालियर। यमुना के आस-पास के होने के कारण हम लोग फोन पर स्थानीय भाषा का भी प्रयोग किया करते थे। अच्छा लगता था। पर अब वह भी संभव नहीं। अब तो उनकी रचनाओं को पढ़ता हूँ- उनकी यादें ताज़ा हो जाती हैं। 14 सितम्बर 1947 को उमरी जनपद गुना, मध्य प्रदेश में जन्मे अनघजी जीवकोपार्जन के लिए ग्वालियर में आकर बस गये और यहीं पर गीत, ग़ज़ल कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, आलोचना, ललित निबंध आदि विधाओं में सृजन किया। ग्वालियर गीत की भूमि रही है और शायद इसीलिये उन्होंने अन्य साहित्यिक विधाओं में कलम तो चलाई ही, उम्दा गीत भी लिखे। उनके गीतों में यमुना पार के जन-जीवन का विस्तृत चित्रण दिखाई देता है। लोकजीवन, लोकरंग, लोकभाषा का संतुलित प्रयोग उनके गीतों की विशेषता है। प्रचार-प्रसार से कोसों दूर किन्तु लेखन को अपरिहार्य मानने वाले अनघ जी की प्रकाशित कृतियाँ हैं- 'महुअर की प्यास' (उपन्यास), 'घर का पता' (ग़ज़ल संग्रह), 'झनन झकास' और 'कनबतियां' (गीत संग्रह) तथा 'जोगलिखी' (कहानी संग्रह)। आपके गीतों को 'धार पर हम- दो' (सम्पादक: वीरेंद्र आस्तिक) आदि संकलनों में संकलित किया गया है। आपने 'गीतायन' और 'पृथ्वी और पर्यावरण' पत्रिकाओं का सम्पादन किया। आपके तीन नवगीत यहाँ प्रस्तुत हैं:-
1. मैराथन में है भविष्य
मैराथन में है भविष्य जी
उमर पांच कद पौने तीन
आँखों में आकाश अषाढी
सेब गाल कच भंवरीले
तन में गोकुल गंध
चाल दुलकी, नथुने गीले-गीले
कसी हुई नवनीत पीठ पर
मैकाले की पुख्ता जीन
तख्ती पर कुर्सी छापी
फिर रुपया रुतबा रौब लिखा
तब से ही तोता रटंत में
ज्यादा-ज्यादा जोश दिखा
तनखैया टीचर ट्यूशन में मीठे
कक्षा में नमकीन
पांच रोज झंडा माता की
जय जय का अभ्यास किया
छठवें दिन नाचे गाये
तब मुख्य अतिथि ने पास किया
खेले खाये तो चपरासी
पढ़े, गये अमरीका चीन।
2. मुहरबंद हैं गीत
खोलना दो हज़ार सत्तर में
जब पानी चुक जाए
धरती सागर आँखों का
बोझ उठाये नहीं उठे
पंक्षी से पाँखो का
नानी का बटुआ
टटोलना दो हज़ार सत्तर में
इसमें विपुल वितान तना है
माँ के आँचल का
सारी अला-बला का मंतर
टीका काजल का
नौ लख डालर संग
तोलना दो हज़ार सत्तर में
छूटी आस जुडायेगी
यह टूटी हुई कसम
मन के मैले घावों को
यह रामबाण मरहम
मिल जाए तो शहद
घोलना दो हज़ार सत्तर में
जब सीमा विवाद उलझे
रेतीले अंधड़ से
सती प्यास का पता पूछना
लाल बुझक्कड़ से
चार शब्द लयबद्ध
बोलना दो हजार सत्तर में।
3. नहीं हिली धरती
नहीं नहीं भूकंप नहीं है
नहीं हिली धरती
सरसुतिया की छान हिली है
कागा बैठ गया था
फटी हुई चिट्ठी आयी है
ठनक रहा है माथा
सींक सलाई हिलती है
सिन्दूर मांग भरती
हाकिम का ईमान हिला है
हिली आवरू कच्ची
भीतर तक हिल गयी
जशोदा की नाबालिक बच्ची
पिंजरे में आ बैठी है
चिड़िया डरती-डरती
मंदिर नहीं हिला
चौखट पर मत्था कांप रहा है
नंगा भगत देवता की
इज्जत को ढांप रहा है
हिलती रही हथेली
तुलसी पर दीवट धरती
सूरज का रथ हिला
चन्द्रमा का विमान हिलता है
बिना हाथ पैरों का
देखो आसमान हिलता है
ऐसे में पत्थर दिल धरती
हिल कर क्या करती।
Mahesh Anagh ke teen Navgeet
teenon geeton ki sanrachna shbdaavali sab naye nayejin parbanagh ji chhap.sachchi shradhanjali.
जवाब देंहटाएंdhanyvaad
तानों नवगीत बेहद चुटीले ... लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंnahi hili dharti or moharbandh hai geet ,achchi rachnaye hai
जवाब देंहटाएंकमलेश्वर द्वारा सम्पादित सारिका में दुष्यंत कुमार के बाद छपने वाले एक मात्र कवि थे , अनघ जी !
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