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बुधवार, 30 जनवरी 2013

पंखुरी सिन्हा और उनकी तीन कविताएँ — अवनीश सिंह चौहान

पंखुरी सिन्हा 

मुजफ्फरपुर, बिहार में 18 जून 1975 को जन्‍मीं पंखुरी सिन्‍हा की एक युवा साहित्यकार के रूप में जो अहमियत है वह न केवल कहानियां लिखने से है, बल्कि कविताएँ लिखने से भी है। उनका एक कविता संग्रह 'ककहरा' प्रकाशनाधीन है, जबकि उनकी कहानियों के दो संग्रह  'कोई भी दिन' एवं 'क़िस्सा-ए-कोहनूर' प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी कविताएँ और कहानियाँ विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्‍हें गिरजा कुमार माथुर पुरस्कार (1995)। शैलेश मटियानी कथा-सम्‍मान (2007), चित्रा कुमार पुरस्कार (2007) से सम्मानित किया जा चुका है।  शिक्षा: १९९६ में इन्द्रप्रस्थ कॉलेज से इतिहास ऑनर्स में बी.ए., १९९८ में सिम्बियोसिस- पुणे से पत्रकारिता में पी. जी. डिप्लोमा, २००८ में एस.यू.एन.वाई.-बफलो से इतिहास में एम.ए. एवं पी.एच.डी. (शोधरत)। सम्प्रति: आजकल न्यूयार्क में एक टेलीविज़न चैनल में कार्यरत। संपर्क: कैलगरी, कनाडा। ई-मेल: sinhapankhuri412@yahoo.ca 

चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार 
1. धुनों की पकड़ ...

धुनें अभी पूरी तरह पकड़ में नहीं आई थीं,
और संगीत किसी बच्चे की गेंद की तरह फिसलता जाता था,

मुट्ठियों से, उगंलियों की दरारों से,
और विदेशी संगीत तिरता आ रहा था,

खुले रोशनदानों से, खुली खिड़कियों से,

लोगों की गाड़ियों से,

मकान मालकिन के टीवी और रेडियो से,
और अधूरी अधूरी थीं चिट्ठियां सारी,
लिखकर भेज दी गयीं भी,
अत्यन्त प्रिय जनों को। 

2. अँधेरा...

अँधेरा, 
इतना घना, इतना गहरा,
और भेदती हो उसको उसकी प्रार्थना,

जैसे कवच पहनाती हो उसे, 
और अँधेरा महसूस होता हो जैसे कोई गुफा, 
आदिम, खामोश, खुंखार, 
और चमकते हों कवच उसके, 

जैसे बताते हों शत्रु को पता उसका, 
लपकते हों अस्त्र, शिकारी हो अँधेरा,

टटोलते उसे, 
भरते हुए कोटरों में प्रार्थनाएं, 
पूजनीय तत्त्व, 
जगाना असाध्य उर्जा,
अदृश्य शक्ति, 

प्रार्थना नहाते भी, 
और नहाना भी अँधेरे में,
घुप्प कर अँधेरा, 

बुझाकर सारी दिया बाती,
ये तो परंपरा नहीं,

लेकिन परंपरा है, 
नहाते हुए भजने का उसका नाम,

परंपरा है, प्रार्थना की, 
निष्कवच।

3. आकृतियाँ...

वह जाग रही थी, 
जैसे बम विस्फोटों के अलग अलग स्थानों पर, 
या अलग अलग बमों के फटने से, 
एक देश का आज, दूसरे देश का कल, 
खबरें शुरू हो रही थीं,
देशों के नाम से,
या नागरिकताओं के नाम से,

नागरिकताओं की हस्ती को लेकर लड़ाई थी,
भाषाओं की हस्ती को लेकर भी,
सबकुछ के वर्गीकरण का एक नया खेल था,
लोगों के ड्राइंग रूम्स में, अजीब किस्म की बहसें थीं,
कि किस नागरिकता के लोग, कैसे जी सकते थे?

फिर ये बातें धर्म तक पहुंचती थीं,
और मामला संगीन होता था,
जाति, जनजाति तक पहुंचते, पहुंचते,
और भी संगीन,

किसको कितनी आज़ादी थी, कौन तय कर रहा था?

कैसी छूट थी किसेकहाँ तक पहुँचने के अवसर किन्हें?

Three Hindi Poems of Pankhuri Sinha

33 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. namaste avnish ji , sabhi rachnaye acchi lagi , , naye parichaye se roobaroo accha raha . badhai aap dono ko

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    2. Bahut dhanyawad Bhavna ji, behad khushi hui ki kavitayein aapko pasand aayin

      हटाएं
  2. आपकी पोस्ट 31 - 01- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें ।
    --

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  3. कवितायें हैं या अटपटी कहानियां ....

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    1. आदरणीय डॉ गुप्ताजी, ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार। क्या आप अभी तक निर्णय नहीं कर पाए कि ये रचनाएँ क्या हैं?

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    2. Aadarniya Dr Gupta ji, Kavitayein hain, ek behad rajnitik mahaul ki, vyakti ke aage lagataar parikshayein dalne ki, yudh ke traas ki, agar in sab silsilewar baaton mein aapko kahin kahanipan nazar aata hai, to hum zaroor baatein kar sakte hain, kavita ki paridhi par, uske vistaar par. Tippani ke liye, sawal ke liye dhanyawad.

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  4. bahut sunder chitran kiya aapne bhawanao ko Pankhuri ji.

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  5. कठिन समय के बयान! अच्छा लगा इनको पढना!

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  6. आज के समय की समस्याओं को काफी कलात्मक ढंग से कहने की कोशिश की है पंखुरी। अच्छी रचनाएँ हैं। लिखती रहो। बधाई।

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. गद्य एवं रहस्यात्मक कविताये है आधुनिक मनोवृति का परिचायक है...........बढ़िया है....कविता के लिए आप हार्दिक बधाई की पात्र है............

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  9. बहुत अच्छी कविताये हैं; हार्दिक बधाई।

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  10. bahut aachhi kavita hai
    pankhuri ko meri or se badhai
    vishnu gupt
    columnist
    new delhi

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  11. पिछले तीन साल से मैं इस कवि को जानता हूँ और बड़ी रुचि के साथ इनकी कविताएँ पढ़ता हूँ। तीनों कविताएँ बेहद अच्छी और सामयिक हैं।

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  12. पंखुरी, कविताओं में संवेदनशीलता हैं। जितना ज्यादा लिखेंगीं उतनी स्पष्टता और गहराई आएगी। शुभकामनाएं!

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  13. प्रतिक्रिया एवं बधाई देने वाले सभी सम्मानित मित्रों/ अग्रजों का ह्रदय से आभार

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  14. तीनों कविताएं महत्वपूर्ण हैं. भिन्न भावभूमियों पर खड़ी दिखने के बावजूद, कहीं कोई एक धागा है जो इन्हें जोड़ता है. ताज़गी इनका स्थाई भाव है.

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  15. एकदम नए रंग और भावबोध से लबरेज कवितायेँ। बधाई पंखुरी को।

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  16. महत्त्वपूर्ण कविताएँ हैं ... ताज़गी से लबरेज ये कविताएँ स्पीड ब्रेकर की तरह हैं जो आपको रुक कर सोचने पर मजबूर करती हैं..

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  17. बहुत अच्छी लगी शुक्रिया ।

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  18. SACH BAHUT GAHRI SOCH KO LEKAR TINO KAVITAYE BUNI GAYI HAI...AUR POORI BAHVOOKTA JHALK RAHI HAI....ITNI SUNDER DIL KO CHOONE WALI KA KAVITAO KE LIYE MERI HARDIK SHUBHKAMNAYE SWEEKARE.....PANKHURI

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  19. आज के कठिन समय के निविड़ भावबोध को सहेजे सुंदर और अर्थगंभीर रचनाएँ।बहुत बहुत साधुवाद

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  20. "आकृतियाँ" कविता मारक है, माने प्रभावित करने वाली, आप अच्छा लिख रहीं हैं बधाई.
    हाँ,धूनों की पकड़ कविता में सहेजी हुई पीड़ा है, जिसका फिलहाल कोई ईलाज शायद न हो.

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  21. Hi Pankhuri..... abhi abhi tumhari teenon kavitayen padhi..... ekdam naya sa bhav jagati kavitayen hain...... kuchh aur kavitayen padhne ka man hai....... kya bhej sakogi......
    aajkal kahan ho Pankhuri......?

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  22. बहुत सुंदर सार्थक कवितायें हैं.....बधाई और शुभकामनाएँ

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  23. पंखुरी अच्छी कविताएं लिखती हैं। बधाई!

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  24. कवितायेँ अपने तेवर के साथ उपस्थित हैं |

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