भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के महानिदेशक श्री सुरेश गोयल 11वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी उत्सव का उदघाटन करते हुए। साथ में खड़े हैं- जापान के प्रो. हिदेआकि इशिदा, प्रभाकर श्रोत्रिय और श्रीनारायण ‘समीर’ |
आई.सी.सी.आर., प्रवासी दुनिया और अक्षरम के संयुक्त तत्वावधान में दो – दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव की शुरूआत हुई। अंतरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव का यह 11वां संस्करण है। इस उत्सव का उद्घाटन भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद के महानिदेशक श्री सुरेश गोयल ने किया। उद्घाटन सत्र में हिन्दी के समक्ष उपस्थित चुनौतियों पर गंभीर चर्चा हुई। इस सत्र में डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय, राहुल देव, डॉ. अशोक चक्रधर, प्रो. हिदेआकि इशिदा, केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो , गृह मंत्रालय के निदेशक डॉ. श्रीनारायण समीर, डॉ. विमलेश कांति वर्मा ने अपने विचार प्रकट किए। इस उत्सव के आयोजन का मुख्य उद्देश्य हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार कर उसे व्यापकता प्रदान करना व उसकी रक्षा करना है। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री सुरेश गोयल ने हिन्दी भाषा की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा की हिन्दी भाषा को मात्र राजभाषा का दर्जा प्रदान कर देने से हिन्दी भाषा का विकास नहीं हो सकता। इसके लिए हिन्दी को आत्मा की भाषा बनाना जरूरी है, यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि हिन्दी केवल सरकारी फाइलों में दबकर न रह जाए। उन्होंने युवाओं में हिंदी के प्रति लगाव के लिए हिंदी फिल्मों के योगदान की सराहना की। प्रख्यात चिंतक और लेखक श्री प्रभाकर श्रोत्रिय ने बताया कि हिन्दी में साहित्य के अलावा अन्य ज्ञान अनुशासनों में रचनाएं उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि हिन्दी क्षेत्र के लोगों को दक्षिण भारत की भाषाएं सीखनी सिखानी चाहिए ताकि भारत में भाषायी सामंजस्य स्थापित हो सके। डॉ. श्रीनारायण समीर ने कहा कि राष्ट्रीय भावना की कमी हिन्दी के विकास में मुख्य बाधा है। उन्होंने लोकतांत्रिक बहुलतावाद को हिंदी की प्रमुख शक्ति बताया।
जापान में हिन्दी भाषा के विद्वान प्रो. हिदेआकि इशिदा ने जापान में हिन्दी भाषा के विश्वविद्यालय स्तरीय शिक्षण की जानकारी देते हुए बताया कि जापान में विद्यार्थियों में हिन्दी सीखने के प्रति बहुत उत्साह है। केंद्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो. अशोक चक्रधर ने सरकार में हिन्दी के कामकाज का लेखाजोखा पेश करते हुए बताया कि उनकी योजना निकष तैयार करने की है जो हिन्दी भाषा के मानक मूल्यांकन का उपकरण होगा। हिन्दी की चिंताजनक स्थिति को सिलसिलेवार ढंग से पेश करते हुए प्रख्यात पत्रकार और प्रखर विचारक श्री राहुल देव ने कहा कि प्राथमिक स्तर पर हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं में विद्यार्थियों को शिक्षा देने से ही इन भाषाओं का संरक्षण संभव है। राहुल देव ने हिंदी भाषी समाज को जाग्रत होकर प्रयत्न करने की आवश्यकता पर बल दिया। अमेरिका से पधारी लेखिका सुदर्शना प्रियदर्शनी ने अमेरिका में हिंदी की स्थिति पर चिंता प्रकट की । ब्रिटेन की अध्यापिका श्रीमती सुलेखा चोपला ने ब्रिटेन में अपने हिंदी शिक्षण संबंधी अनुभवों को प्रस्तुत किया। भाषा वैज्ञानिक डॉ. विमलेश कांति वर्मा ने कहा कि हिन्दी भाषा अपनी सभी बोलियों से विकास प्राप्त करती है जिसमें सरनामी हिन्दी, फीजी बात और उजबेकी पार्या भी शामिल हैं। परंतु बोलियों को हिंदी से अलग करना एक साजिश है। इससे हिंदी का अहित होगा। अंत में सेल के श्री हीरा वल्लम शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कार्यक्रम की सफलता के लिए विद्वान बक्ताओं और सुधी श्रोताओं के योगदान की सराहना की। कार्यक्रम में सान्निध्य ब्रिटेन से पधारे यू.के.हिदी समिति के पदाधिकारी श्री के.बी.एल सक्सेना का था। कार्यक्रम के प्रारंभ में अतरराषट्रीय रामायण सम्मेलनों के सूत्रधार लल्लन प्रसाद व्यास की श्रद्धांजलि स्वरूप डा सत्येन्द्र श्रीवास्तव का पत्र पढा गया। कार्यक्रम का कुशल संचालन अक्षरम के अध्यक्ष अनिल जोशी द्वारा किया गया। इस सत्र में विशेष उपस्थति हिंदी के प्रमुख प्रकाशकों हिंद पाकेट बुक्स , राजकमल प्रकाशन के अशोक महेश्वरी, वाणी प्रकाशन के अऱूण महेश्वरी, डायमंड बुक्स के नरेन्द्र वर्मा की रही।
द्वितीय सत्र
कार्यक्रम का दूसरा प्रमुख सत्र हिन्दी प्रौद्योगिकी पर आधारित था। सत्र का संचालन करते हुए प्रो. राजेश कुमार ने हिन्दी के विकास में प्रौद्योगिकी के योगदान को रेखांकित करते हुए हिन्दी के क्षेत्र में विभिन्न संभावनाओं का उल्लेख किया। सत्र के अध्यक्ष प्रो. अशोक चक्रधर ने कहा की हिन्दी भाषा के क्षेत्र में विभिन्न मांगों की पूर्ति प्रौद्योगिकी कर सकती है। उन्होने कहा कि हिन्दी के विकास के लिए बहुमुखी प्रयासों और उनके एकीकरण की अत्यधिक आवश्यकता है। प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ श्री बालेंदु दधीच ने ई-बुक्स के स्वरूप और संभावनाओं पर प्रकाश डालते हुए इस क्षेत्र में लेखकों और पाठकों के लिए अमित संभावनाओं का विवरण प्रस्तुत किया। इसी प्रसंग को आगे बढाते हुए सी-डैक के ग्रुप कोऔडिनेटर श्री जसजीत सिंह ने भारतीय भाषाओं के सी-डैक द्वारा उपलब्ध कराए गए विभिन्न उपकरणों की झलक पेश की। श्री चन्द्र मोहन रावल ने अनुवाद के क्षेत्र में उपलब्ध कंप्यूटर सहायक उपकरणों – कैट टूल की उपयोगिता की चर्चा की। अंत में मनु इंफोसौलूशंस ने सीईओ भारत भूषण ने ब्लॉग प्रकाशित करने और उसके डिजाइन पर व्यावहारिक प्रस्तुति की।
लेखक से संवाद
पद्मश्री श्रीमती प्रतिभा राय और कवयित्री-कथाकार श्रीमती अलका सिन्हा
11वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी उत्सव में ‘लेखक से संवाद’ श्रृंखला के अंतर्गत ज्ञानपीठ का 47वां सम्मान प्राप्त करने वाली वरिष्ठ उड़िया लेखिका पद्मश्री श्रीमती प्रतिभा राय से एक अंतरंग मुलाकात की गई जो कि इस उत्सव की विशेष उपलब्धि रही। बात-चीत कर रही थीं अक्षरम की सचिव और जानी-मानी कवयित्री-कथाकार श्रीमती अलका सिन्हा । प्रतिभा राय के जीवन के कई छुए-अनछुए पहलुओं पर बात करते हुए प्रतिभा राय की लेखन यात्रा और जीवन संघर्ष पर उनसे बात की गई। 1999 में उड़ीसा में आए भयंकर तूफान के दौरान लेखिका की सामाजिक प्रतिबद्धता के बारे में जानकर श्रोता विभोर हो गए। इस आत्मीय बातचीत ने उनकी प्रेममय जीवन-दृष्टि और धर्म के प्रति उनके व्यापक मत का भी खुलासा किया। बीस उपन्यास, तेइस कहानी-संग्रह, दस यात्रा-वृत्तांत और अनेक वैचारिक लेखों से क्रांति लाने वाली इस रचनाकार को अनेकों बार अदालत और मुकद्मों का ही नहीं, बल्कि जान से मार दिए जाने की धमकियों का भी सामना करना पड़ा। अपनी रचना-प्रक्रिया के बारे में उन्होंने बताया कि वे पहले से तय करके नहीं चलतीं कि उन्हें कहां ठहरना है यह तो उनके वैचारिक मंथन के साथ-साथ तय होता है। उपेक्षित ऐतिहासिक पात्रों को उन्होंने नए सिरे से व्याख्यायित किया और पाठकों को विवेचना के नए सिद्धांतों से परिचित कराया। जीवन संघर्ष में जहां उनकी चौंकाने वाली दृढ़ता ने श्रोताओं को प्रभावित किया वहीं व्यावहारिक जीवन में उनकी विनम्रता से ये श्रोता अभिभूत हुए बिना नहीं रह सके। लगभग घंटे भर की यह मुलाकात कई अर्थों में महत्त्वपूर्ण रही और उनके व्यक्तित्व, साहित्य और संघर्षा का एक सशक्त चित्र उपस्थित दर्शकों के सामने आया । डा प्रतिभा राय ने कार्यक्रम में आमंत्रित करने के लिए ड़ा सीतेश आलोक को धन्यवाद किया और इस अवसर पर डा प्रतिभा राय ने डा अरूणा सीतेश व उनके साहित्य का पुण्य स्मरण किया।
नाट्य प्रस्तुति
इसके पश्चात राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक रामजी बाली के निर्देशन में नाटक विवेकानंद की प्रस्तुति की गई। विवेकानंद के जीवन के संघर्षों, उनके विचारों, जीवन यात्रा को प्रस्तुत करता है । इस नाटक से विवेकानंद जी का संदेश सार्थक रूप में उपस्थित दर्शकों तक पहुंचा
अंतरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव – 10 फरवरी
अंतरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव के दूसरे दिन के प्रथम सत्र का संचालन डा हरजेन्द्र चौधरी के द्वारा किया गया। स्वागतोपरान्त प्रथम वक्ता डॉ. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने रामकथा :कला संदर्भ विषय पर बोलते हुए विभिन्न कला रूपों में रामकथा पर प्रकाश डाला। उन्होंने रामकथा के भारतीय जीवन के प्रत्येक पक्ष से जुड़े होने के साथ-साथ विभिन्न कलारूपों को पावर प्वांइट प्रस्तुति के माध्यम से दिखाया। उन्होंने रामलीला की ऐतिहासिक परंपरा के बारे में जानकारी दी और कहा कि रामलीला से जुड़े ज्यादातर श्रमिक मुस्लिम समुदाय से हैं।इस प्रकार यह सांप्रदायिक सद्भाव की एक मिसाल है। उन्होंने बताया कि मूर्त और अमूर्त दोनों रूपों में रामकथा भारतीय जनमानस का अभिन्न अंग है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के अध्यक्ष प्रो. केशरीलाल वर्मा ने आयोग के कामकाज के बारे में बताया । उन्होंने कार्य का आधुनिकतम बनाने के लिए किए जा रहे उपायों की जानकारी दी और उसमें विदेशी विद्वानों का सहयोग मांगा।
नार्वे से आए अमित जोशी ने नार्वे में हिन्दी की स्थिति पर प्रकाश डाला। उन्होने बताया कि नार्वें में प्रकाशित की जा रही शांति दूत नामक पत्रिका उन्हें विरासत में मिली और उस परंपरा को उन्होनें निरंतर जारी रखा। म.प्र. पाब्लिक सर्विस कमीशन के सदस्य और वैज्ञानिक प्रो. एस. पी. गौतम जी ने कहा कि आध्यात्मिक ग्रंथों में विज्ञान गूढ़ रूप से छिपा है। उन्होंने तुलसी के मानस में गाड पार्टिकल की संकल्पना होने पर प्रकाश डाला। इस विषय पर उनकी एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई है। उन्होनें राम चरित मानस में आधुनिक विज्ञान संबंधी संकल्पनाओं की जानकारी देते हुए बताया कि यदि राम चरित मानस को वैज्ञानिक दृष्टि कोण से अध्ययन किया जाए तो प्रकृति और विज्ञान के बहुत से रहस्यों का खुलासा हो सकता । भारत सरकार के सैन्ट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के प्रमुख रहे श्री एस.पी.गौतम के ये शोधपरक निष्कर्ष और अन्वेषण मांगते हैं।
विदेश मंत्रालय में उप सचिव (हिंदी) सुनीति शर्मा ने विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन से जुड़े अपने अनुभवों को साझा किया और विदेश मंत्रालय द्वारा विदेशों में हिंदी के प्रचार –प्रसार के लिए की जा रही गतिविधियों की जानकारी दी। कनाडा की स्नेह ठाकुर ने कनाडा में हिन्दी की स्थिति तथा उसके उत्थान के सम्बन्ध में चर्चा की। उन्होंने उन चुनौतियों का भी जिक्र किया जिनका सामना उन देशों में रह रहे हिंदी सेवियों को करना पड़ता है। मैनचेस्टर, ब्रिटेन से आये डा अंजनी कुमार जी ने कहा कि भारतीय कहीं भी क्यों न हो परन्तु वह भारतीय ही रहेगा। उन्होनें अपनी कविता ‘रोज मरते जा रहे, जिंदगी की चाह में’ से वक्तव्य का अन्त किया । चौधरी चरणसिंह विश्वविघालय (मेरठ) से हिन्दी भाषा के विभागाध्यक्ष श्री नवीन चन्द्र लोहानी ने हिन्दी के उत्थान के सन्दर्भ में कहा कि विदेशों में बोली जा रही हिन्दी को भी हिन्दी भाषा का दर्जा प्रदान किया जाए। हिन्दी भाषा के क्षेत्र में श्री लोहानी का यह अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है कि उन्होनें अपने विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में प्रवासी भारतीय साहित्य को भी स्थान प्रदान किया। यह हिंदी के बढ़ते हुए दायरे का जीता- जागता उदाहरण है।
वरिष्ठ पत्रकार श्री अजीत राय जी ने हिन्दी की पीड़ा जाहिर की। उन्होनें बताया कि हिन्दी भाषा के विकास के क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण आयाम हैं। बालीवुड व पत्रकारिता। पत्रकारिता ने हिन्दी के विकास में जो योगदान दिया वह दिखाई दे रहा है परन्तु फिल्म एक सशक्त माध्यम है जिसके जरिए हिंदी करोड़ो लोगों तक पहुंची है। जापान के प्रो. हिदेआकि इशिदा ने जापान में हिंदी साहित्य की विभिन्न प्रवृतियों के संबंध में प्रकाशित अध्य्यन सामग्री और पत्रिकाओं आदि के संबंध में जानकारी दी।
जापान के ही ओसाका विश्वविद्यालय से आए एसोशिएट प्रोफेसर विचारक और चिंतक डा चैतन्य प्रकाश ने हिंदी की वैश्विकता के संबंध में जीवन मूल्यों और संस्कृति को सबसे महत्पूर्ण कारक बताया। उन्होंने कहा कि हिंदी की वैश्विकता किसी एकाधिकार प्रवृति से नहीं अपितु विश्व के कल्याण के भाव से है। अत्यंत प्रभावी भाषण में डा चैतन्य प्रकाश ने भाषा के सूत्रों को संस्कृतिसे जोड़ते हुए उसे ही अंतरराष्ट्रीयता का मुख्य बिंदु बनाने का प्रस्ताव किया। (टैक्सास) अमेरिका से पधारी डा कुसुम व्यास ने भारतीय संस्कृति के गहरे में निहित पर्यावरणीय सरोकारों को चरितार्थ करने के लिए हरित कुंभ की संकल्पना की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वे बायोलोजिकल विविधता के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की विभिन्न संस्थाओं से मिलकर काम कर रही हैं। उन्होंने लुप्त होती हुई भाषाओं के संबंध में भी चिंता प्रकट की।
सोनीपत से पधारे हिंदी के वरिष्ठ विद्वान एवं भाषा वैज्ञानिक अशोक बत्रा ने प्रवासी लेखिका अंजना संधीर के काव्यसंग्रह की बहुआयोमी समीक्षा की। इस अवसर पर प्रदर्शनी हाल में Traces of Indian Culture in Vietnam विषय पर लगी प्रदर्शनी के संयोजक गीतेश शर्मा का परिचय कराया गया । गीतेश शर्मा ने वियतनाम, कंबोडिया, लाओस जैसे देशों में भारतीय संस्कृति के तत्वों की खोज पर विशेष बल दिया।
रचनात्मक प्रस्तुतियां
भोजन के बाद रचनात्मक प्रस्तुतियों का समय था । सत्र का संचालन ड़ा राजेश कुमार द्वारा किया गया। सत्र में सबसे पहले गायक अंबरीश पुन्यानी ने विवेकानंद सार्ध जन्म शताब्दी के अवसर पर नरेश शांडिल्य द्वारा लिखे ‘एक युवा सन्यासी जिसने, सोच बदल दी दुनिया की ‘ और अनिल जोशी के विवेकानंद पर लिखे नाट्यगीत “क्या तुमने उसको देखा है” की प्रस्तुति की। “क्या तुमने उसको देखा है” सच्चे गुरू की तलाश की प्रक्रिया के संबंध में है. चूंकि स्वामी विवेकानंद सबसे पूछते थे क्या तुमने ईश्वर को देखा है। दोनों प्रस्तुतियां अत्यंत प्रभावी थी और इनसे विवेकानंद का चरित सजीव हो उठा । इस अवसर पर अंबरीश पुन्यानी के शिष्य धीरज जोशी ने मीरा पर एक भजन की प्रस्तुति की। इन संगीत प्रस्तुतियों ने सबका मन मोह लिया।
डा सविता सिंह ने अपनी कहानी ‘पीटा बाउटन’ प्रस्तुत की। मांट्रियल की पृष्ठभूमि पर आधारित इस कहानी में दो संस्कृतियों के आदान-प्रदान और इससे मानवीय संबंध में उत्पन्न तनावों का सशक्त चित्रण किया गया है। विदेशों में अकेलापन और मानवीय संवेदनाओं का अभाव कहानी मे उभर कर आए। आधुनिक बोध की यह कहानी प्रवासी संदर्भों में अत्यंत प्रासांगिक थी ।
संकल्प जोशी ने अलका सिन्हा की कहानी ‘ चौराहा ‘ की एकल नाट्य अभिनय द्वारा प्रस्तुति की।
यह कहानी बेरोजगारी और पिता –पुत्र के संबंधों पर है। अपने कुशल ओर मार्मिक अभिनय से अलका सिन्हा द्वारा लिखी विचारोत्तजेक कहानी के सभी पात्रों को दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रमुख अभिनेता संकल्प जोशी ने जीवंत कर दिया। इस अवसर पर विशेष उपस्थति लखनऊ के पूर्व महापौर दाऊ जी गुप्ता तथा इंदिरा गाधी सांस्कृतिक स्रोत संस्थान के श्री गिरीश जोशी की थी।
सम्मान समारोह
इसके पश्चात सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें अध्यक्षता करते हुए साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष डा विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने मानवीय संवेदनाओं के लिए साहित्य की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि एक साहित्यकार ही एक पक्षी की पीड़ा को अभिव्यक्त करने के लिए साहित्य लिखता है और बाद में बाल्मिकी जैसा प्रसिद्ध लेखक होता है। उन्होंने प्रेमचंद की कहानियों से उद्त करते हुए बताया कि किस प्रकार प्रेमचंद के साहित्य में बैलों के भी मनोभाव व्यक्त किए । व्यक्ति में भावनाओं और संवेदनाओं के विकास में साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। इस अवसर पर बोलते हुए सम्मान समारोह कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा रत्नाकर पांडेय ने संघ लोक सेवा आयोग के संबंध में चले आंदोलन में नवयुवकों के योगदान की प्रशंसा करते हुए कहा कि आज भी उसी प्रकार के आंदोलन की जरूरत है। उन्होंने शिखर सम्मान से सम्मानित श्री चतुर्वेदी जी की प्रशंसा करते हुए कहा कि पहले विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस कार्यक्रम में 9 विशिष्ट व्यक्तत्वों को सम्मानित किया गया। इनमें से श्री टी.एन.चतुर्वेदी को अक्षरम शिखर सम्मान, रूस के डा दिमित्रि चैलिशेव को संस्कृति समन्वय सम्मान, जापान के प्रो. हिदेआकि इशिदा को साहित्य सम्मान, मैनचेस्टर, ब्रिटेन के डा अंजनी कुमार को हिंदी सेवा सम्मान अमेरिका की श्रीमती कुसुम व्यास को संस्कृति सम्मान तथा भारत से प्रसिद्ध कवि डा बलदेव वंशी को साहित्य सम्मान, विदेश मंत्रालय में उपसचिव श्रीमती सुनीति शर्मा को विश्व हिंदी सम्मेलन के सफल संयोजन व संचालन के लिए हिंदी सेवा सम्मान, डायमंड बुक्स के नरेन्द्र वर्मा को प्रकाशन सम्मान, पटना से प्रकाशित नई धारा के संपादक डा शिवनारायण को साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम में दीवानचंद ट्रस्ट के सचिव श्री राजेन्द्र गुप्ता विशेष रूप से उपस्थित थे।
इस अवसर पर उत्सव के संयोजक अनिल जोशी ने अस्वस्थता के कारण कार्यक्रम में नहीं पहुंच सके हिंद पाकेट बुक्स के शेखर मल्होत्रा तथा दिल्ली से बाहर रही श्रीमती कमला सिंघवी के बारे में सूचना दी। उन्होंने कार्यक्रम के लिए भेजे शेखर मल्होत्रा के संदेश के बारे में जानकारी दी कि हिंदी को पाठकों तक पहूंचान में अग्रणी रहा हिंद पाकेट बुक्स चाहता है हिंदी नई प्रौद्योगिकी के साथ जुडे जिससे ज्यादा से ज्यादा पाठकों तक पुस्तकें पहुंच सकें।
कवि सम्मेलन
इस बार का कवि सम्मेलन गोपाल सिंह नेपाली की जन्मशती के अवसर पर उन्हें समर्पित किया गया था। इस अवसर पर बेतिया के प्रसिद्ध गायक सतीश मिश्रा ने गोपाल सिंह नेपाली के प्रसिद्ध गीतों ‘दर्शन दो भगवान नाथ’ व अन्य गीतों की प्रस्तुति की । कार्यक्रम को श्रोताओं द्वारा खूब सराहा गया।
अंत में कार्यक्रम का समापन देश –विदेश के रचनाकारों से सजे कवि सम्मेलन के साथ हुआ। कार्यक्रम के प्रारंभ में रूस से पधारे वयोवृद्ध कवि मदनलाल मधु ने ‘जो कांटे हैं, वो तो हमेशा चुभेंगे. भला उनसे दामन बचाओगे कब तक’ गज़ल का पाठ किया। वेदप्रकाश ने मिलावट पर व्यंग्य कविता प्रस्तुत की वहीं सरोजनी प्रीतम की क्षणिकाओं में व्यंग्य के अलग तेवर थे।
ममता किरण की संवेदनशील कविता बाग जैसे गूंजता है पंछियों से , घर मेरा वैसे चहकता बेटियों से सबको छू गई। गज़लकार शशिकांत ने अलग अंदाज में गज़ल यूं रखी ‘गले खुलकर मिले आपस में दोनो, मगर दिल में छुपा था और ही कुछ’। सुरेश नीरव जी की कविता सागर मंथन पर थी । दोहाकार नरेश शांडिल्य ने ऐसे प्रखर दोहों के माध्यम से बात व्यक्त की ‘ एक कहो कैसे हुई, उसकी मेरी बात, मैंने सब अर्जित किया, उसे मिली खैरात। वाह क्या बात है से लोकप्रियता प्राप्त प्रवीण शुक्ल ने चुटीली कविताओं से श्रोताओं को हंसने पर मजबूर कर दिया। आकाशवाणी के निदेशक डा लक्ष्मीशंकर बाजपेयी ने मुक्तों से समां बांधा। वही मेरठ से पधारी कवयित्री तुषा ने मार्मिक गीत प्रस्तुत किए। कनाडा के शिवराज वत्स की गज़लें प्रभावी थी। वहीं कनाडा से पधारी स्नेह ठाकुर की रचनाओं मे दर्शन का पुट था। अनिल जोशी के स्त्री -पुरूष संबंधो पर कंद्रित व्यंग्य था ये वो और जो तो श्रोताओं को इतना पसंद आया की कार्यक्रम की आपसी बातचीत में ये , वो तकिया कलाम बन गए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री बी.एल.गौड़ की इन पंक्तियों ने काव्यप्रेमियों को आल्हादित कर दिया।
पांखुरी की देह पर . ओस के कण देखकर , एक पल को यूं लगा
ज्योंकि किसीने बीन कर आंसू किसी के, लो बिखेरे फूल पर
कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे बालस्वरूप राही ने गोपाली जी के साथ अपने संस्मरणों को साझा किया । उनकी गज़ल – दस्तखत जिनको कराने हैं, अभी सब्र करें, घर में कुछ रोज का सामान अभी बाकी है , को श्रोताओं द्वारा बहुत पसंद किया गया।
अंत में अनिल जोशी ने आई.सी.सी.आर का उनके अध्यक्ष, महानिदेशक, उपमहानिदेशक, श्री मल्कीत सिंह, श्री अशोक जाजोरिया. हिंद पाकेट बुक्स के शेखर मल्होत्रा स्टील अथारटी आकाशवाणी के श्री लक्ष्मीशंकर बाजपेयी, दीवानचंद ट्रस्ट, प्रवासी दुनिया की श्रीमती सरोज शर्मा, परिधि कला आर्टस व बेनी माधव संस्थान व अन्य सहयोगी संस्थाओं का आभार प्रकट किया । उन्होंने कार्यक्रम के सफलतापूर्वक संपन्न होने में संरक्षक विश्वनाथ जी, संतोष तनेजा कार्यक्रम के मार्गदर्शकों डा विमलेश कांति वर्मा, नारायण कुमार, संयोजकों श्री अतुल प्रभाकर , अलका सिन्हा, नरेश शांडिल्य, विनोद संदलेश, निर्मल वैद्य, अवधेश सिंह, विमल कुमार सिंह, डा राजेश कुमार, डा हरजेन्द्र चौधरी, शशिकांत, रघुबीर शर्मा, सत्या त्रिपाठी, जितेन्द्र कालरा, बी.डी.शर्मा की भूमिका के लिए उनका विशेष रूप से धन्यवाद ज्ञापन किया।
International Hindi Utsav In Delhi
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