चर्चित युवा साहित्यकार एवं वरिष्ठ उप-सम्पादक समीर श्रीवास्तव जी के बारे में हम सभी जानते हैं लेकिन उनको ऊर्जा प्रदान करने वालीं उनकी सहधर्मिणी युवा कवयित्री कीर्ति श्रीवास्तव जी से हमारा परिचय उतना नहीं है। इसका कारण यह रहा कि वे लेखन से तो काफी समय से जुडी हुईं हैं, लेकिन उनकी रचनाओं का आस्वादन करने का अवसर हमें कुछ समय पहले ही फेसबुक पर मिल सका। तभी से उनकी रचनाओं के बारे में मेरी धारणा बनी कि वे सामाजिक जीवन की विविध समस्याओं को व्यंजित करती हैं। उनकी रचनाएँ मध्यम वर्ग के सहज मनोविज्ञान को रेखांकित करती प्रतीत होती हैं और जिनसे आज के आदमी की अभिरुचि, भावनाओं, उसकी उलझनों, समस्याओं एवं संघर्षों को जाना-समझा जा सकता है। जहाँ तक शिल्प विधान की बात है तो इस युवा कवयित्री का यह प्रारंभिक दौर है। और इस दौर में विषय-वस्तु पर रचनाकार का ध्यान ज्यादा जाता है, और कभी-कभी शिल्प पर कम। कीर्ति जी का जन्म 06 जुलाई 1974 को भोपाल, म.प्र. में हुआ। आपके पिताजी परम श्रद्धेय मयंक श्रीवास्तव जी हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य विद्वान् हैं। आपकी शिक्षा: एम.कॉम.,भोपाल विश्वविध्यालय, भोपाल से हुई। प्रकाशन: देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में गीत, ग़ज़ल एवं कविताओ का प्रकाशन। सम्प्रति: संचालक 'विभोर ग्राफिक्स'। संपर्क: 'राम भवन', 444-9ए, साकेत नगर, भोपाल- 462024 (म.प्र.), मो.- 07415999621, 09826837335। ईमेल: gunjanshrivastava18@gmail.com।
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
इश्क के बाज़ार में बिक गए,
वफ़ा की दुकान में टिक गए।
वो निकला दुश्मन हमारा,
उनसे दोस्ती कर मिट गए।
जवानी पे अपनी गुरुर था बड़ा,
आया बुढ़ापा तो झुक गए।
है पाक दामन साबित करने के लिए,
दो गज़ जमीन में गढ़ गए।
सच बोलने की सज़ा मिलीं हमे,
अपनी ही जिंदगी से लड़ गए।
ज़मीर को हावी होने न दिया,
गुनाहों के बोझ से दब गए।
इंसानियत को खडा़ कर चौराहे पर,
अपनी ही नजरों से गिर गए।
(2)
गम को छुपाकर आँखों को सूखा रखा,
बच्चों को खिलाकर ख़ुद को भूखा रखा।
तन के दागों को धो लिया हमने,
मन के दागों को छुपा रखा।
चाहे कितनी भी हो पुरानी दुश्मनी,
हमने रकीबों के लिए द्वार खुला रखा।
माँ-बाप का वो क्या कर्ज़ चुकायेगा,
जिस बेटे ने उनको ख़ुद से जुदा रखा।
जलती हुई शमा सभी ने देखी,
हमने तो बचकर उसका धुँआ रखा।
(3)
आसमां को पा नहीं सकता,
तू ज़मी डिगा नहीं सकता।
हुनरमंद तो होते हैं सभी,
हर कोई आजमा नहीं सकता।
मेहनत तेरी जाया न जायेगी,
बरगद कोई हिला नहीं सकता।
नफरतों से भरी दुनिया में,
प्यार कोई मिटा नहीं सकता।
गर हौंसला है तुझमें आगे बढ़ने का,
राहों में काँटे कोई बिछा नहीं सकता।
दौलतों की चाह नहीं हो जिसे
ज़मीर कभी डगमगा नहीं सकता।
प्यार से जहर भी पीले ‘कीर्ति’,
जाम कोई पिला नहीं सकता।
(4)
राहो में रोशनी हो जरूरी नहीं,
रात संग चाँदनी हो जरूरी नहीं।
यादों के संग जी लूँ मंजूर मुझे,
तू मेरी ज़िंदगानी हो जरूरी नहीं।
हवा के झौके ने व्याकुलता जगा दी,
झौका-ए-हवा रूमानी हो जरूरी नहीं।
तू ऐशो- आराम से गुजारे ज़िन्दगी,
तुझे न कभी परेशानी हो जरुरी नहीं।
बंद पलकों में था पहलू में मेरे,
तू भी मेरी दीवानी हो जरूरी नहीं।
मै तेरा बन जाऊँ तमन्ना थी दिल की,
जिन्दगी तेरी-मेरी कहानी हो जरूरी नहीं।
तेरी खुशबू समाई रग-रग में मेरे,
सदा संग रातरानी हो जरूरी नही।
बहुत ही सुंदर चार ग़ज़लें पढ़ने को मिला । यह एक शुभ संकेत है कि कीर्ति जी अपने रचनाओं में शब्दों का अप-ब्यवहार नहीं करते, हर एक ग़ज़ल सादगी, आत्मविश्वास और आशावाद के साथ स्वयंपूर्ण हैं । आगे और भी पढ़ने को मिले, बधाई कवयित्री को...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया .... आपके ये सराहनीय शब्द मुझे आगे बडने में सहयोग देंगे...
हटाएंमेहनत तेरी जाया न जायेगी,/बरगद कोई हिला नहीं सकता।
जवाब देंहटाएंतन के दागों को धो लिया हमने,/मन के दागों को छुपा रखा।
इश्क के बाज़ार में बिक गए,/वफ़ा की दुकान में टिक गए।
तू ऐशो- आराम से गुजारे ज़िन्दगी,/तुझे न कभी परेशानी हो जरुरी नहीं।
विषय-वस्तु पर ध्यान ज्यादा है और शिल्प पर कम। सुंदर कविताएँ बधाई ‘कीर्ति’
बहुत बहुत शुक्रिया ....:)
हटाएंbahut hi umda post ..... ek se badhkar ek ...
जवाब देंहटाएंसच बोलने की सज़ा मिलीं हमे,
अपनी ही जिंदगी से लड़ गए।
.......
माँ-बाप का वो क्या कर्ज़ चुकायेगा,
जिस बेटे ने उनको ख़ुद से जुदा रखा।
..........
तू ऐशो- आराम से गुजारे ज़िन्दगी,
तुझे न कभी परेशानी हो जरुरी नहीं।
बहुत बहुत शुक्रिया ....
हटाएंकीर्ति जी के बारे में और उनकी रचनाओं को पढ़ कर अच्छा लगा। वह ऐसे ही निरन्तर काव्य सृजन में रत रहें ऐसी मेरी कामना है।
जवाब देंहटाएंहौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया... आभार... धन्यवाद
हटाएंकीर्ति जी आपकी चारो ग़ज़ल बेहद उम्दा और खुबसूरत हैं आप ऐसे ही अपनी रचनाओ का रसास्वादन करते रहिये |
जवाब देंहटाएंनील जी बहुत बहुत शुक्रिया... आभार... धन्यवाद
जवाब देंहटाएंचार गजलें,चार अंदाज,चार अनुभूति,------और चार चांद
जवाब देंहटाएंजीवन की अनकही बातों को सहजता से कहना ही तो शिल्प है
रचना को मांजना, रचना नहीं--,रचना मौलिक कहन की ही- मन के भीतर समां जाती है
कीर्ति जी की रचनायें सहज सरल और मन के भीतर समां जाने वाली है--- बहुत बहुत बधाई
शुभकामनायें
पूर्वाभास का आभार कीर्ति जी को पढ़वाने का
हौसला अफजाई ,सराहनीय शब्दो के लिए बहुत बहुत शुक्रिया... आभार... धन्यवाद
हटाएंसटीक विषय वस्तु, अनोखा अंदाज़, गंभीर बातों को आसान लब्जों में कह देती हैं आप...बधाई कीर्ति जी|
जवाब देंहटाएंसराहनीय शब्दो के लिए बहुत बहुत शुक्रिया... आभार... धन्यवाद Ajaya Tiwari ji
हटाएंसंपादक- अवनीश सिंह जी चौहान और पूर्वाभास का कीर्ति को हौसला देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया... आभार... धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंbahut khoob likha aapne
जवाब देंहटाएंbahut bahut shukriya Neelima ji
जवाब देंहटाएंbahut sunder gazalen hai, hindi gazal ko nayab tohfa
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