आइये, मिलते हैं एक और नवगीतकार से। इन्हें आपने फेसबुक पर कई बार देखा होगा, लेकिन इनके नवगीतों को आप पहली बार पढेंगे। नाम है ज्योति खरे। वरिष्ठ रचनाकार ज्योति खरे का जन्म 5 जुलाई 1956 को जबलपुर, म.प्र.में हुआ। 'उम्मीद तो हरी है' का सूत्र मानने वाले खरे जी का जीवन जितना सीधा-सादा है,उतना ही उनका मन पाक-साफ़ है। आपके विचार शुद्ध और अनुभव गहरे हैं। आपके पास आम आदमी होने का सुख भी है और समझ भी; आप मानते हैं- "जीवन के कंटीले जंगलों से तिनका-तिनका सुख बटोरने में ना जाने कितनी बार उंगलियों से खून रिसा है, संघर्ष से तलाशे गये इन सुखों को जी भर के देख भी नहीं पाये थे कि अपनेपन को जीवित रखने के लिये इन सुखों को अपनों में बांटना पड़ा, आदमी के भीतर पल रहे पारदर्शी आदमी का यही सच है, और आम आदमी होने का सुख भी।" आपकी शिक्षा: एम. ए (हिंदी साहित्य)। वर्त्तमान में आप तकनीशियन (डीजल शेड, नई कटनी (म.प्र) के पद पर कार्यरत हैं। 1975 से आपकी रचनाओ का प्रकाशन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में होता रहा है। साथ ही आकाशवाणी और दूरदर्शन पर भी आप काव्य पाठ कर चुके है। सम्मान: मध्य प्रदेश गौरव सम्मान (1995), प्रखर व्यंगकार सम्मान (1996) एवं रेल राजभाषा का राष्ट्रिय स्तर का सम्मान (1999)। संपर्क: आर. बी १ २९१ / स, एस. के .पी कालोनी, नई कटनी (म.प्र), मोबाइल: 09893951870,ई-मेल: kharejyotikhare@gmail.com। ब्लॉगलिंक:jyoti-khare.blogspot.com। आपकी धारदार तीन रचनाएँ यहाँ प्रस्तुत हैं:-
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
बांट रहा याचक हाथों को
राहत के ताबीज
प्यासी रहकर स्वयं चांदनी
बांटे ओस-नमी
बिछे गलीचे हरियाली के
महफ़िल खूब जमी
बाँध पाँव में घुँघरू नाचे
बिटिया बनी कनीज
काटे नहीं कटे दिन जलते
साहस रोज घटे
खूब धड़ल्ले से चलते हैं
अब तो नोट फटे
तीखी मिरची, गरम मसाला
जीवन लगे लजीज
हर टहनी पर, पत्ते पर है
मकडी का जाला
सुबह सिंदूरी कहाँ दिखे
चश्मा पहना काला
नये समय की, नयी सीख अब
देती नयी तमीज
2. प्यार कर लें
मन-मधुर वातावरण में
प्यार बाँटें
प्यार कर लें
दु:ख अपने पांव पर
जो खड़ा था,
अब दौड़ता है
हर तराशे सुख के पीछे
कोई पत्थर तोड़ता है
आओ करें हम
नव सृजन-
एक मूरत और गढ़ लें
'प्यारे',
प्यार मैं ही मैं करूं
और तुम कुछ ना करो
कैसे बंधाऊं आस मन को
तुम 'न' करो, न 'हाँ' करो!
रतजगे-सी जिन्दगी में
हम कहाँ से
नींद भर लें।
लंबा सफ़र है
और तुम कुछ ना करो
कैसे बंधाऊं आस मन को
तुम 'न' करो, न 'हाँ' करो!
रतजगे-सी जिन्दगी में
हम कहाँ से
नींद भर लें।
लंबा सफ़र है
हम सभी का
हम मुसाफिर हैं सभी
दौड़ते हैं, हांफते हैं
या बैठते हैं हम कभी
यह सिलसिला है राह का,
प्यार से
कुछ बात कर लें
3. राह देखते रहे
राह देखते रहे उम्र भर
क्षण-क्षण घडियां
घड़ी-घड़ी दिन
दिन-दिन माह बरस बीते
आंखों के सागर रीते।
चढ़ आईं गंगा की लहरें
मुरझाया रमुआ का चेहरा
होंठों से अब
गयी हंसी सब
प्राण सुआ है सहमा-ठहरा
सुबह, दुपहरी, शामें
हम मुसाफिर हैं सभी
दौड़ते हैं, हांफते हैं
या बैठते हैं हम कभी
यह सिलसिला है राह का,
प्यार से
कुछ बात कर लें
3. राह देखते रहे
राह देखते रहे उम्र भर
क्षण-क्षण घडियां
घड़ी-घड़ी दिन
दिन-दिन माह बरस बीते
आंखों के सागर रीते।
चढ़ आईं गंगा की लहरें
मुरझाया रमुआ का चेहरा
होंठों से अब
गयी हंसी सब
प्राण सुआ है सहमा-ठहरा
सुबह, दुपहरी, शामें
गिनगिन
फटा हुआ यूं अम्बर सीते।
सुख के आने की पदचापें
सुनते-सुनते सुबह हो गयी
मुई अबोध बालिका जैसी
रोते-रोते आंख सो गयी
अपने दुश्मन
फटा हुआ यूं अम्बर सीते।
सुख के आने की पदचापें
सुनते-सुनते सुबह हो गयी
मुई अबोध बालिका जैसी
रोते-रोते आंख सो गयी
अपने दुश्मन
हुए आप ही
अपनों ने ही किये फजीते।
धोखेबाज खुश्बुओं के वृत
केंद्र बदबुओं से शासित है
नाटक-त्राटक, चढ़ा मुखौटा
रीति-नीति हर आयातित है
भागें कहां,
अपनों ने ही किये फजीते।
धोखेबाज खुश्बुओं के वृत
केंद्र बदबुओं से शासित है
नाटक-त्राटक, चढ़ा मुखौटा
रीति-नीति हर आयातित है
भागें कहां,
खडे सिर दुर्दिन
पड़ा फूंस है, लगे पलीते।
पड़ा फूंस है, लगे पलीते।
Three Hindi Poems (Navgeet) of Jyoti Khare
` तीखी मिरची, गरम मसाला जीवन लगे लजीज ` जीवन जीने की यह विधा ज्योति भाई जैसा साधक ही बता सकता है,......... ` हर तराशे सुख के पीछे कोई पत्थर तोड़ता है ` मर्म को बेधती पंक्तियां सीधे मन से संवाद करतीं प्रतीत होती हैं ...............` चढ़ आईं गंगा की लहरें मुरझाया रमुआ का चेहरा होंठों से अब गयी हंसी सब प्राण सुआ है सहमा-ठहरा ` भागीरथी गंगा जिसकी शक्ति शिव की जटाओं का तो मान रखने में सफल रही पर बेचारा रमुआ एक अदना सा जीव किस तरह अपनी फसल बचा पायेगा उसके तो प्राण ही सूख गए ......... मन की थाह लेना , चेहरे के भाव कलम से कुरेदने का काम ज्योति भाई ने बखूबी किया है एक बार फिर उनकी कविताओं के लिए साधुवाद !
जवाब देंहटाएंवाह ... सभी नव गीत जीवन से जुड़े ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन नवगीत है,ज्योति खरे जी को सादर नमन.
जवाब देंहटाएंज्योति खरे जैसे प्रतिबद्ध रचनाकार को पूर्वाभास में स्थान देने के लिए साधुवाद ।
जवाब देंहटाएंज्योति भाई को बेहतरीन नवगीतों के लिए बधाई ।
बहुत ही बेहतरीन नवगीत....आपको को निरंतर पढ़ती हूँ..आपके शब्दों का चयन,गठन सभी श्रेष्ट है..आपको और अवनीश जी आप दोनों बधाई के पत्र है..
जवाब देंहटाएंआदरणीय अवनीश भाई बहुत बहुत आभार आपका
जवाब देंहटाएं"पूर्वाभास"में गीत प्रकाशित करने का----
भाई जी गीतों के मामले में आपकी अनुभूति और आपका
शिल्प कमाल का है, यही कारण है,कि समकालीन कविता के दौर में
आपने अपने गीतों की सार्थक जमीन बनायीं है।
पूर्वाभास में मेरे गीतों को जो आपने नई जान दी है
उसका पुनः आभार
बहुत बढ़िया -
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें भाई-
Aap sabhee agrajon ka hriday se abhar.
जवाब देंहटाएंsnehadheen
abnish
बहुत ही अच्छे नवगीत , बधाई ज्योति जी,
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति। आभार।
जवाब देंहटाएंनये लेख : "चाय" - आज से हमारे देश का राष्ट्रीय पेय।
भारतीय रेलवे ने पूरे किये 160 वर्ष।
waah waaaaaaaah bhot sundar waaaaah
जवाब देंहटाएंNIHSHABD ................
जवाब देंहटाएंज्योति जी, "रतजगे सी ज़िंदगी", "फटा हुआ अंबर","तराशा हुआ सुख"- वह क्या बात है| सुंदर प्रतीक और बिंबों का इस्तेमाल, सरल भाषा, सटीक विषय वस्तु और जबर्दस्त बहाव| आपके नवगीत मन को भा गए|
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder rachanayen hain Sir...........
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