मेरे अग्रज रचनाकार बृजेश कुमार सिंह बृजेश नीरज के नाम से कविताई करते हैं। आपका जन्म 19 अगस्त 1 9 6 6 में हुआ था। वर्तमान में आप उ.प्र. सरकार में कर्मचारी हैं। अपने बारे आप लिखते हैं- "मैं एक साधारण आदमी हूँ , जो रोज अपनी उम्मीदों और ख्वाहिशों में जीता और मरता है। लिखने का शौक बचपन से था, लिखता भी रहा और कुछ-कुछ छपता भी रहा लेकिन जिंदगी की जद्दोजहद में पुरानी रचनायें कहीं खो गयीं और रचनाकार भी। कुछ सम्हला, लिखने का कीड़ा फिर रेंगा, जीना दुश्वार कर दिया तो फिर लिखना शुरू किया। कैसा लिखता हूं, ये तो आप ही तय कर सकते हैं। हर रचनाकार को अपनी रचना अच्छी ही लगती है, वास्तविकता क्या है, यह तो आप ही बता सकते हैं।" आपकी रचनाएँ ’निर्झर टाइम्स’ में नियमित छपती हैं। 'उजेषा टाइम्स’, ’वारिस-ए-अवध’ आदि में भी आपकी रचनाओं को ससम्मान स्थान दिया जाता रहा है।संपर्क:65/44, शंकर पुरी, छितवापुर रोड, लखनऊ (उ. प्र.)। ई-मेल: brijeshkrsingh19@gmail.com। ब्लॉग: http://voice-brijesh.blogspot.com। आपकी तीन कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं:-
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
वो कौन सा फर्क है
जो मिला देता है
हकीकत को इश्तिहार से
बस एक मरीचिका सा
पूरा जीवन पार हो जाता है
और तुम
कोई शिकायत करने लायक भी नहीं बचते
सिर्फ ओढ़कर लेट जाते हो
अपने ही असफलताओं को
मुंह ढंक लेने से
सूरज पच्छम से नहीं उगेगा
इस असलियत को पहचानना होगा
जो एक तुमसे उम्र में दुगना
बूढ़ा देश चला लेता है
और तुम परिवार नहीं चला पाते
तुम्हारी पत्नी की कमर दर्द से
सीधी नहीं हो पाती
और वो अभिनेत्री अभी भी
प्रेमिका सी छलकती है
तुम्हारा बच्चा बूढ़ा हो गया
पर ठीक से बोल नहीं पाता
और उनका बच्चा पैदा होते ही
टी वी पर इंटरव्यू देता है
लो अब तुमने मुंह लटका लिया
किसी भी बात पर उदास हो जाते हो
घास बन जाते हो
यह कोई डार्विन का सिद्धान्त नहीं
जो पेड़ तना खड़ा है
हालांकि पत्ते झड़ गए
ईश्वर की त्रासदी नहीं
जो नदी अब इस तरफ बहकर नहीं आती
बारिश नहीं हुई
बादलों की साजिश नहीं
आंसू कम पड़ गए हैं
समंदर में
तुम कभी समुद्र तक गए ही नहीं
अंगौछा लपेटे
इन पंगडंडियों में ही गोल घूम रहे हो
वो एक रास्ता
जिस पर खर पतवार उग आए हैं
वो जाता है
दिल्ली तक
वहीं एक गोल गुम्बद के नीचे
कैद है तुम्हारी किस्मत
एक पिंजड़े में
जा सकोगे वहां तक
जाना तो
चीखना एक बार
कुतुबमीनार पर चढ़कर
समुद्र की तरह मुंह करके
पुकारना उसे
चेहरे की झुर्रियां कम होंगी
बहुत से कबूतर उड़ पड़ेंगे
यहीं जोर से पुकारते हो
कभी
आसपास के पेड़ों से बहुत सी
चिड़ियां उड़ पड़ती हैं फुर्र से
कुछ बूंदें गिरती हैं आसमान से
एक सोंधी महक उठती है
धरती से
ऐसे ही उठेगी
खूब सारी महक
विदेशी इत्र से अधिक सोंधी
लेकिन जाना होगा उस तरफ
जिधर से आती है हवा
उठते हैं बादल
उस समंदर तक।
2. जीता जागता इंसान
उकता गया हूंवही चेहरे देख देख
सुबह शाम
वही सपाट चेहरे
भावहीन
किसी रोबोट की तरह
बस चलायमान
कभी दर्द नहीं छलकता
इनकी आंखों में
कभी कभी
मुंह थोड़ा फैल जाता है
उबासी लेते हुए
कभी कभी लगता है
जैसे मुस्करा रहे हैं
ये न बोलते हैं
न सोचते हैं
बस चलायमान हैं
किसी साफ्टवेयर से संचालित
कभी सोचता हूं
कब तक देखना होगा
इन मशीनी चेहरों को
क्या कभी
कोई सुबह
कोई शाम
कोई किरन
कोई हवा
भर पायेगी इनमें भी
जीवन के अंश
कि अचानक
ठहाके मार के हंस पड़ें
ये चीख पड़ें
जब चोट लगे इन्हें
कभी तो हो ऐसा
काश आदमी फिर से बन जाए
एक जीता जागता इंसान!
3. तुम्हारी आंखों में
जिस्म पर उभरी लकीरें
गवाह हैं
उन रास्तों की
जिनसे होकर गुजरा हूं
और बार बार
असफल
फिर फिर लौटा हूं
तुम्हारे पास
याचना लिए
प्रेम के छांव की।
अपने दंभ में
आगे निकल जाता हूं
तुम्हें पीछे छोड़
लेकिन
वक्त से टकराकर
लौटना पड़ता है
तुम्हारे पास
उंगली थामने।
यूं ही नहीं गुजरा वक्त
यूं ही नहीं उभरी लकीरें
चेहरे पर
शरीर पर
ये गवाह हैं
उन पलों की
जब तुमने थामा है
मेरा हाथ
जो कांपने लगे थे पांव।
तुम हमेशा ही
एक उम्मीद थी
मैं ही आंख मूंदे रहा
अपने सपनों से
जो हमेशा तैरते रहे
तुम्हारी आंखों में।
are waaaah waaaah behtrin kvitaye hai
जवाब देंहटाएंआदरणीय आपका हार्दिक आभार!
हटाएंबृजेश जी की व्यक्ति स्थिति, व्यक्ति संघर्ष, व्यक्ति उम्मीद से भरी हुई अच्छी कविताएँ हैं। बृजेश जी को बधाई और पूर्वाभास को साधुवाद।
जवाब देंहटाएंआदरणीय आपका हार्दिक आभार!
हटाएंआदरणीय बृजेश जी रचनाएं तो साहित्य के क्षितिज पर दिन-ब-दिन छाती जा रहीं हैं। आज यहां और भी कई स्थानों पर उनकी कविताएं देखकर कुछ यूं लगा कि प्रतिभा और सफलता के मिलन में बहुत देर नहीं लगती।
जवाब देंहटाएंढेरों ढेर बधाईयां और शुभकामनाएं।
सादर
आदरणीया आपका हार्दिक आभार!
हटाएंआदरणीय बृजेश जी!
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाये कई बार पढने का अवसर प्राप्त हुआ ....बहुत सुघड़ रचनाये रचते है आप ....
शुभकामनाये
आदरणीया आपका हार्दिक आभार!
हटाएंbrijesh ji, 'us samander tak', kavita behtrin lagi, 'tumhari aankhon mein'bhi ashi hai. bahut shubhkaamnayein
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार!
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