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शुक्रवार, 3 मई 2013

कुमार मुकुल की आलोचना पुस्तक 'अँधेरे में कविता के रंग' का लोकार्पण



नयी दिल्ली: २8 अप्रैल २०१३: एकेडमी आफ फाइन आर्ट एण्ड लिटरेचर’ के अप्रैल माह के ’डायलाग’ कार्यक्रम में कवि, पत्रकार और आलोचक कुमार मुकुल की आलोचना पुस्तक 'अँधेरे में कविता के रंग' (नई किताब प्रकाशन, दिल्ली, पृष्ठ 1 6 7, मूल्य 2 9 5 /-) का लोकार्पण लीलाधर मंडलोई , मदन कश्यप और मिथिलेश श्रीवास्तव ने किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि लीलाधर मंडलोई ने कहा कि अंधेरों को भेदने की कोशिश करती है ये किताब। युवा पीढ़ी के रचनाकारों में गद्य के प्रति एक तरह की अरुचि दिखाई देती है क्योंकि उनके पास गद्य की कोई तैयारी नहीं है लेकिन कुमार मुकुल एक अपवाद हैं । उन्होंने यह साहस दिखाया है और बहुत ही सचेत ढंग से क समकालीन कविता पर बात की है । यह किताब मूलतः आलोचना की किताब नहीं है बल्कि अतीत से आज तक चल रही पूरी प्रतिक्रिया को समझने की चेष्टा है। उनके कवि के साथ-साथ एक आलोचक, एक विचारक की यात्रा चल रही है। सबसे पहले कुमार मुकुल संवेदना को छूते हैं फिर दूसरी चीज़ों पर जाते हैं। लीलाधर मंडलोई कहा कि पाठक सिर्फ लिखा हुआ को ही न पढ़े बल्कि जो अलिखा है उसे भी पढ़े। 

वरिष्ठ कवि मदन कश्यप ने कुमार मुकुल को बधाई देते हुए कहा कि इतने महत्व पूर्ण आलेखों को पुस्तक के रूप में देखकर सुखद आश्चर्य हुआ इस पुस्तक को देखकर उन्हें ' मलयज की डायरी ' की स्मृति आई।मदन कश्यप ने कहा कि कुमार मुकुल ने आलोचना की नई पद्धति विकसित की है और बेहद तर्क-संगत ढंग से कविता को समझने की कोशिश की है। 

कवि मिथिलेश श्रीवास्तव कुमार मुकुल की आलोचना पद्धति को एक सजग पाठक की पाठकीय प्रतिक्रिया से तुलना करते हुए कहा कि मुकुल ने आलोचना की नई राह दिखायी हैकविता ने जब छंद छोड़ दिया तो कविता की आलोचना शास्त्रीय आलोचना की राह पर क्यों चलती रहे। 

सुधीर सुमन ने बताया की ये एक अजब संयोग है कि मुक्तिबोध की कविता ' अँधेरे में ' के ५० वर्ष पूरे हुए हैं और कुमार मुकुल की पुस्तक ' अँधेरे में कविता के रंग ' का लोकार्पण हो रहा है। मुक्तिबोध ने कहा था की 'कविता कभी ख़त्म नहीं होगी कविता कालजई होती है' उनका कहा समक्ष है। सुधीर जी ने ये भी कहा कि एक ईमानदार आलोचक अपनी आलोचना की छानबीन खुद ही करता है और कुमार मुकुल में आलोचना का प्रतिरोध नहीं बल्कि करुणा के उत्सव का ज़ोर है। मुकुल जी की आलोचना हिंदी कविता की व्यापकता से परिचित कराती है। कुमार मुकुल की ये पुस्तक पाठकों को हिंदी कविता से जूझने के लिए उकसाती है। कुमार मुकुल की अभिव्यक्ति स्त्रियों के प्रति गहरी संवेदनशीलता दर्शाती है।

अध्यापिका और कवि सुधा उपाध्याय ने कहा कि एक सफल कविता में हमेशा एक संदेह एक जिज्ञासा बनी रहनी चाहिए। कविता जन की आवाज़ बन जाये ये कविता का पहला दायित्व है यदि कविता में समय,समाज और समीक्षक की आवाजाही नहीं है तो वो कविता नहीं है। आपने कहा की किसी रचना की आलोचना करना सबसे अधिक संघर्ष का काम है। पुस्तक में वर्णित आलेख ' रघुवीर सहाय की कविता और समकालीन यथार्थ ' के बारे में आपने कुमार मुकुल जी से अपनी असहमति जताई और आलेख में लिखे कथ्य पर अपने सवाल और उनके जवाब भी सभी के समक्ष रखे। 

कवि अखलाक अहान अनामिका, लीलाधर मंडलोई और मिथिलेश श्रीवास्तव पर लिखे लेखों से अंश पढ़ कर सुनाया। शारीक असीर ने पुस्तक के उस लेख से कुछ अंश सुनाये जो आलोक धन्वा के कविता संसार पर लिखा गया है। 

कुमार मुकुल ने इस किताब में कविता के व्यापक फ़लक को देखने की कोशिश की है। अनामिका,विजय कुमार, आलोक धन्वा, वीरेन डंगवाल , केदार नाथ सिंह, रघुवीर सहाय, मिथिलेश श्रीवास्तव, गगन गिल, लीलाधर मंडलोई, विष्णु नागर , राजेश जोशी, ज्ञानेंद्रपति , निर्मल पुतुल, संजय कुंदन, तजेन्द्र सिंह लूथरा इत्यादि के कविता संसार पर बात करते हुए मुकुल एक आलोचक की दृष्टि लेकर चलते हैं । प्रकाशक हैं किशन कालजई का प्रकाशन 'नयी किताब'। 

दूसरे सत्र में 'शीला सिद्धान्तकर स्मृति ' सम्मान पाने वाली कवियत्री ओमलता, अफगानिस्तान से आई जोहरा ज़हीन, कुमार मुकुल और मदन कश्यप ने अपनी कविताओं का पाठ किया । सञ्चालन मिथिलेश श्रीवास्तव ने किया।                       रपट: इंदु सिंह

'Andhere Mein Kavita Ke Rang' Ka Lokarpan

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