भोपाल के अरेरा पहाड़ी पर स्थापित बिड़ला मंदिर वर्षों से आस्था का केन्द्र रहा है। अरेरा कॉलोनी में रहने वाली चर्चित लेखिका डॉ साधना बलवटे का जन्म 13 नवम्बर 1969 को जोबट, जिला झाबुआ, म. प्र. में हुआ। आपने देवी अहिल्या विश्वविघालय, इंदौर से स्नातकोत्तर (हिंदी) एवं पी.एच.डी. की। लेखन, नृत्य, संगीत, हस्थशिल्प में रुचि रखने वाली साधना जी 12 वर्ष की उम्र से ही रचनात्मक कार्य करने लगी थीं। आपने मालवी व निमाड़ी बोली में भी लेखन किया है। पत्रिका, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, नई दुनिया आदि पत्र पत्रिकाओ में आपकी रचनाओं का प्रकाशन एवं आकाशवाणी इंदौर से प्रसारण हो चुका है। सम्मान: निर्दलीय प्रकाशन का 'संचालन संभाषण श्रेष्ठता अंलकरण'। वर्तमान में आप अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की महासचिव हैं। सम्पर्क : ई-2 / 346, अरेरा कॉलोनी, भोपाल, दूरभाष: 0755-2421384, 9993707571। ईमेल:dr.sadhanabalvate@yahoo.com। आपकी तीन रचनाएँ यहाँ प्रस्तुत हैं:-
शौहरत में हम तो गुम थे, ज्यों ही ख़याल आया,
हम भीड़ से हटे तो तन्हाइयों में पाया ।
हम भीड़ से हटे तो तन्हाइयों में पाया ।
कितनी ही बार फिसला ये वक्त उंगलियों से,
ऐसा नहीं कि इसने फिर हाथ न मिलाया।
हमने वफा के ढेरों दे डाले इम्तहां पर,
पीछे चला है हरदम इन आसुंओं का साया।
निकले यकीन झूठे, उलझे मुसीबतों से,
जब भी रवायतों को इस शीश पर बिठाया।
जोड़ा है हमने कितना उस टूटे आइने को,
उसने हरेक चेहरा बिखरा हुआ दिखाया।
बुलबुल को कैद करके पिंजरा सजाया हमने,
इतने बड़े चमन ने खामोशियों को गाया ।
(2) बदल कर देखो
उम्र हर दौर में बचपन है मचल कर देखो,
वक्त तालीम है अपने को बदल कर देखो।
बेवफा ख्वाब का जीवन में कभी गम न करों,
फिर से उम्मीद की बाहों में मचल कर देखो।
दर्द भी फूल की खुशबू-सा महक जायेगा,
तुम कभी गीत के आगोश में ढल कर देखों।
रश्क कर जायेगी कितनी ही निगाहें तुम पर,
सिर्फ ईमान की गलियों में टहल कर देखों ।
जिंदगी जेठ की तपती है दुपहरी, माना,
इसमें सावन की घटा भी है संभल कर देखो।
मौत पतझर की तरह है जो हमें क्या देगी
जिन्दगी फूल की खुशबू है मसल कर देखो।
(3) तुझसे लगा के लौ
जीवन में कभी ऐसे न मजबूर हुए हम,
चाहत की नजर से न कभी दूर हुए हम।
थे शक्ल से कुछ भी मगर मन से थे समन्दर,
सीरत पे कभी भी नहीं मगरूर हुए हम।
मन की हरेक पंखुरी देकर हुए अमीर,
बेगाने तकल्लुफ से मगर चूर हुए हम ।
तकते रहे हैं दूर से एकलव्य की तरह,
फिर भी तेरी आँखों को न मंजूर हुए हम।
रहते थे अपने घर में भी अनजान की तरह,
तुझसे लगा के लौ बहुत मशहूर हुए हम ।
Three Hindi Gazals of Sadhana Balvate
सहज सरल शब्दों में बेहतरीन भावों को उकेरा है आपने ....
जवाब देंहटाएंजिंदगी जेठ की तपती है दुपहरी, माना,
जवाब देंहटाएंइसमें सावन की घटा भी है संभल कर देखो।
..... what is life....presented in beautiful words.
दर्द भी फूल की खुशबू-सा महक जायेगा,
तुम कभी गीत के आगोश में ढल कर देखों।
wow! exact description of beautiful emotions
baqt taalim hai apne ko badalkar dekho ..achchi gajal hai
जवाब देंहटाएंvicharo ki sunder abhivyakti hetuhardik badhayee.
जवाब देंहटाएंKISHAN TIWARI