उदयपुर: 23 जून, 2013। राजस्थान साहित्य अकादमी का मीरा समारोह-2013 सम्पन्न हुआ। समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में प्रख्यात राष्ट्रीय कवि श्री बालकवि बैरागी ने कहा कि भारत देश ‘श्रुति’ का देश है, ‘श्रुति के देश’ को पाठक के देश में बदलने का प्रयास फलीभूत नहीं होगा। साहित्यकारों को ऐसा साहित्य रचना चाहिए जिससे समाज, साहित्य और देश को दिशा मिले। श्री बैरागी ने कहा - कविता के पास जब तक सम्प्रेषणीयता नहीं होगी, जब तक वह कण्ठ में नहीं बसेगी, तब तक वह कविता जीवित नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कवि होना अत्यन्त कठिन कर्म है। श्री बैरागी ने अकादमी द्वारा बेटियों को पुरस्कृत किए जाने को साहित्य के लिए शुभ बताया और अकादमी द्वारा क्रान्तिचेता विजयसिंह पथिक के नाम पर साहित्यिक एवं रचनात्मक पत्रकारिता पुरस्कार प्रारम्भ किए जाने को महत्वपूर्ण कार्य बताया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रख्यात आलोचक और साहित्यकार प्रभाकर श्रोत्रिय, गाजियाबाद ने उत्तराखण्ड में आए प्राकृतिक प्रकोप को जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’ के प्रारम्भ के सन्दर्भ को उदधृत करते हुए कहा कि जिसके लिए प्रकृति वर्जना करती है, उस विलास का ध्वंश अश्वम्भावी होता है। हमारी संस्कृति में प्रकृति की पूजा की जाती है। मनुष्य और प्रकृति में प्रेम का संबंध रहा है, लेकिन आज विज्ञान प्रकृति से स्पर्धा कर रहा है। आज हमारे देश में बाजारवाद हावी है। बाजारवाद सुबह अखबार के साथ शुरू होता है और रात को टी.वी. के साथ खत्म होता है। हमारा अंतः प्रकृति का हिस्सा है लेकिन आज हम प्रकृति को समाप्त कर असंतुलित कर रहे हैं इस देश की संस्कृति इसलिए महान् है क्योंकि इसका सारा संबंध हमारी प्रकृति और महाकाव्य से है। बाजारवाद ने संस्कृति और प्रकृति को ग्रहण लगा दिया है। अकादमी के मीरा समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में उद्बोधन देते हुए प्रख्यात साहित्यकार डाॅ. केशुभाई देसाई, गुजरात ने कहा कि भारतीय भाषाएं मजबूत होने के बावजूद वे विश्व स्तर पर अपना स्थान नहीं बना पायी हैं। जबकि विश्व को सबसे पहले कविता भारत देश ने दी है। उन्होंने कहा कि कवि, साहित्यकार कभी मरता नहीं है, वह जन्म लेता है। मीरा, तुलसी, रैदास, सूर ने जन्म लिया है, वे आज भी जिन्दा हैं। तुलीसी, कबीर, मीरा नहीं होते तो आज हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तान नहीं होता। समय और समाज के साथ कवि का अपना संबंध होता है। लेखक को स्वयं सिद्ध नेता होकर लिखना पड़ता है और समाज की पीड़ा को भोगना पड़ता है। अकादमी द्वारा साहित्यकारों का सम्मान किया जाना हमारे लिए गौरव और प्रसन्नता की बात है। राजस्थान साहित्य अकादमी अध्यक्ष श्री व्यास ने अध्यक्षीय स्वागत उद्बोधन में कहा कि आज साहित्य, समाज और समय पर अपनी बात कहने की आवश्यकता है। जीवन में साहित्य होगा तो ही शब्द में साहित्य होगा। आज साहित्य के क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र विकसित हो गया है, जो दुख की बात है। उन्होंने शब्द की सत्ता स्थापित होने पर जोर दिया। उन्होने कहा कि इस कठिन दौर में भी राजस्थान साहित्य अकादमी संवेदनशीलता, पारदर्शिता, जवाबदेही और ईमानदारी के साथ साहित्य को समर्पित है। अकादमी अध्यक्ष महोदय द्वारा इस अवसर पर समस्त पुरस्कृत और सम्मानित साहित्यकारों को शुभकामनाएं व बधाई दी तथा इस अवसर पर मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे साहित्यकारों का आभार प्रकट किया। अकादमी की ‘विशिष्ट साहित्यकार सम्मान’ योजना में- रणवीर सिंह (जयपुर), मदन केवलिया (बीकानेर), सुदेश बत्रा (जयपुर), क्षमा चतुर्वेदी (कोटा), श्री मुरलीधर वैष्णव (जोधपुर), श्री भागीरथ (उदयपुर), श्री सुरेन्द्र चतुर्वेदी (अजमेर) और सत्यनारायण व्यास (चित्तौड़गढ़) को ‘विशिष्ट साहित्यकार सम्मान’ राशि 51,000/-रु., सम्मान, प्रशस्ति-पत्र, प्रतीक चिह्न आदि भेंट कर सम्मानित किया गया। अकादमी की पुरस्कार योजना में सर्वोच्च ‘मीरा पुरस्कार’ राशि 75,000/-रु. श्री भवानी सिंह (जयपुर) को, कविता विधा का सुधीन्द्र पुरस्कार श्री हरीश करमचंदानी (जयपुर) को, कथा उपन्यास विधा का रांगेय राघव पुरस्कार श्रीमती सावित्री रांका (जयपुर)को, आलोचना विधा का देवराज उपाध्याय पुरस्कार रेणु शाह (जोधपुर)को, विविध विधाओं का कन्हैयालाल सहल पुरस्कार डाॅ. अतुल चतुर्वेदी (कोटा), आलमशाह खान अनुवाद पुरस्कार श्रीमती इन्दु शर्मा (जयपुर), मरुधर मृदुल युवा लेखन पुरस्कार श्री अंजीव अंजुम (दौसा), विजयसिंह पथिक साहित्यिक एवं रचनात्मक पत्रकारिता पुरस्कार श्री ईशमधु तलवार (जयपुर)को प्रदान किया गया। ये सभी पुरस्कार 31,000/-रु. के हैं। प्रथम प्रकाशित कृति का सुमनेश जोशी पुरस्कार राशि 15,000/-रु. श्रीमती शारदा शर्मा (सांगरिया)को और बाल साहित्य का शम्भूदयाल सक्सेना पुरस्कार राशि 15,000/-रु. श्री त्रिलोक सिंह ठकुरेला (आबू रोड) को प्रदान किया गया। अकादमी की नवोदित पुरस्कार योजना महाविद्यालय स्तरीय के अन्तर्गत ‘चन्द्रदेव शर्मा पुरस्कार’ (कविता) सुश्री खुशबू शर्मा (उदयपुर) को, (कहानी विधा) का सुश्री पायल कंवर (जयपुर) को, (निबन्ध विधा) का श्री प्रियांक ओझा (सिरोही) और सुश्री निकिता शर्मा (जयपुर)को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया। इसी प्रकार महाविद्यालय स्तरीय 'डॉ सुधा गुप्ता पुरस्कार’ कहानी विधा का सुश्री ज्योति चांदसिन्हा (कोटा) को प्रदान किया गया और विद्यालय स्तरीय ‘परदेशी पुरस्कार’ कहानी विधा का सुश्री निष्ठा सक्सेना (जयपुर) को, निबन्ध विधा का सुश्री मोनिका सोलंकी (जयपुर) और लघुकथा विधा का श्री गिरीश कुमार, सुमेरगंज, (पाली) को प्रदान किया गया। ये सभी पुरस्कार 5000-5000/-रु. के हैं। कार्यक्रम का संचालन मुकेश चतुर्वेदी ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन अकादमी उपाध्यक्ष श्री आबिद अदीब द्वारा दिया गया। सम्मान समारोह में राज्य व शहर के जाने-माने प्रख्यात साहित्यकार व गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला को अकादमी पुरस्कार
इस अवसर पर सुपरिचित साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला को बाल साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर द्वारा शम्भूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार प्रदान किया गया। यह पुरस्कार उनकी चर्चित बाल साहित्य कृति 'नया सवेरा' के लिए दिया गया है। राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, उदयपुर के सभागार में आयोजित साहित्य पर्व -2013 एवं मीरा समारोह में श्री ठकुरेला को इस पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया .अकादमी के उपाध्यक्ष श्री आबिद अदीव ने श्री ठकुरेला का माल्यार्पण कर स्वागत किया। अकादमी अध्यक्ष श्री वेद व्यास ने शॉल, सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री बालकवि बैरागी ने सम्मान -पत्र ,वरिष्ठ साहित्यकार डॉ ,प्रभाकर श्रोत्रिय ने स्मृति -चिन्ह, अकादमी सचिव डॉ प्रमोद भट्ट ने पुरस्कार राशि ( 15000 /= रुपये ) एवं गुजराती के चर्चित साहित्यकार डॉ .केशुभाई देसाई ने पुष्पगुच्छ भेंट किया। इस अवसर पर राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा साहित्य की विविध विधाओं में किये गए उल्लेखनीय कार्य के लिए कुल 26 साहित्यकारों को पुरस्कृत एवं सम्मानित किया गया।
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