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रविवार, 23 जून 2013

वसुन्‍धरा पाण्‍डेय निशी और उनकी पाँच प्रेम कविताएँ — अवनीश सिंह चौहान

वसुन्‍धरा पाण्‍डेय निशी 

संभावनाशील रचनाकार वसुंधरा पाण्डेय का जन्म 2 जून 1972 को जनपद देवरिया में हुआ। आपने हिन्दी साहित्य में एम. ए. गोरखपुर विश्वविद्यालय से किया। अपने बारे में वसुंधरा जी कहती हैं: "बचपन से डायरी लिखने का शौक रहा, पर सहेजी एक भी नही...फिलहाल फेसबुक और ब्लाग जैसे सोसल नेटवर्क और यहीं जुड़े मित्रों का हौसला अफजाई ने साथ दिया, बचपन से ना सहेजे हुए शब्दों को सहेजने लगी हूँ...फ़िलहाल उपलब्धि के नाम पर दो कवितायेँ 'स्त्री होकर सवाल करती है' में छपी है, एकाध पत्र-पत्रिका में, एक संकलन प्रकाशनार्थ तैयार है, शीघ्र हीं आप सबके बीच होगा।" वर्त्तमान में आप इलाहाबाद में रहती हैं। सम्‍पर्क: vasundhara.pandey@gmail.com। आपकी पाँच प्रेम कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं:-

1. जब फूल सा दिल
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार

‘जब फूल सा दिल
हो जाए पत्थर
तो कोई क्या करे ?’

--मैंने पूछा

‘प्यार में
पिघल जाते हैं पत्थर भी’

--उसने टोका

शायद
उसे मालूम ना था
फूल
मिट्टी हवा पानी में खिलते हैं

पत्थर
लावे में उबल कर निकलते हैं !

2. उसने कहा 

उसने कहा-
जीवन ...संघर्ष है 
मुझे लगा जीवन प्रेम है

और हम
निकल पड़े
अपनी-अपनी डगर...

उसे क्या मिला 
मुझे नहीं मालूम 

मुझे मिली आँखें
और तुम और यह पंख...! 

3. एक जन्म और सही

काश रब ऐसा किये होते
ये जनम हमारा
एक दुसरे के लिये हुआ होता

कोई बात नहीं
तुम तो मेरी
जन्म-जन्म की तलाश हो
एक जन्म और सही..!

4. हम तो थे ही पत्थर

हम तो थे ही पत्थर
सनम भी पत्थरदिल

जब भी मिले...गरजे
खूब गरजे...फिर बरसे
खूब बरसे...फिर तरसे
और यों...तरसना
जिंदगी का हासिल हुआ

5. तुम्हारे भीतर है कहीं

प्यार चीता है यहाँ
वनदेवी का रति सुख
कभी भी कहीं से भी
कोई हिरनी का छौना कपि-मृग शावक
कोई छवि.. कोई खिलौना
इस चीते की मूछ के बाल खींच कर
इसे सम्मानित कर देता है
और इसकी गुर्राहट में
वसंत झरने लगता है बेहिसाब

ना ना ना
यहाँ से नहीं दिखता
बहुत दूर बहुत दूर
तुम्हारे भीतर है कहीं !

Five Hindi Poems of Vasundhara Pandey Nishi

23 टिप्‍पणियां:

  1. panchon kavitayen gahre str par chhooti hain...badhai


    Hareram Sameep

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  2. पत्थर होना भी
    अच्छा होता है
    अच्छा लगता है
    जब पहली बार
    पता होता है !

    बहुत सुंदर कृ्तियाँ सभी !

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  3. बिछोड़ा ही है प्रेम की परम उपलब्धि ,शिखर। जब सारी दुनिया सांसारिक सुखों की कामना करती है भगत अपने भगवान् के विछोह में सिसकता है प्रेमी भी।

    3. एक जन्म और सही

    काश रब ऐसा किये होते
    ये जनम हमारा
    एक दुसरे के लिये हुआ होता

    (दूसरे ,मूंछ। .. )

    नैना अंतर आव तू ,नैन झपी तोहि लेउ ,

    ना मैं देखूं और को ,ना तोहि देखन देउ।


    सभी रचनाओं में पक्का रंग है प्रेम का ,ये रंग कच्चा नाहिं

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  4. श्रीमती पाण्डेय जी,
    हिंदी साहित्य कों मान दिलाने वाली इलाहाबाद कर्म-भूमि की सशक्त कवियत्री हैं |सुश्री महादेवी वर्मा ,श्री पन्त जी ,श्री कैलाश गौतम के इस शहर में हमेशा साहित्य के उच्चकोटि के साधक रहें हैं |
    उनकी कवितायेँ पढ़कर मन बहुत हर्षित हुआ,एक एक कविता कई कई बार पढ़ीक्यूंकि आनंदित करती हैं ये रचनाएं |ढेरो शुभकामनाएँ|

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  5. सभी रचनाएं अर्थपूर्ण और गहरे भाव संप्रेषित करती हैं, बहुत सुंदर.

    रामराम.

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  6. बेहद खूबसूरत रचनाएं... पढ़कर बहुत अच्छा लगा

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  7. सभी कविताएं एक से बढ़ कर एक | बहुत बहुत बधाई वसू

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  8. मन के गहरे में कहीं हलन चलन मचा देने वाली कोमल मर्मस्पर्शी कवितायेँ --

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  9. "जब फूल सा दिल" ने ज्यादा प्रभावित किया.

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