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रविवार, 15 सितंबर 2013

क्या है हिन्दी भाषा का भविष्य? - कीर्ति श्रीवास्तव


कीर्ति श्रीवास्तव

चर्चित युवा साहित्यकार एवं वरिष्ठ उप-सम्पादक समीर श्रीवास्तव जी के बारे में हम सभी जानते हैं लेकिन उनको ऊर्जा प्रदान करने वालीं उनकी सहधर्मिणी युवा कवयित्री कीर्ति श्रीवास्तव जी से हमारा परिचय उतना नहीं है। इसका कारण यह रहा कि वे लेखन से तो काफी समय से जुडी हुईं हैं, लेकिन उनकी रचनाओं का आस्वादन करने का अवसर हमें कुछ समय पहले ही फेसबुक पर मिल सका। तभी से उनकी रचनाओं के बारे में मेरी धारणा बनी कि वे सामाजिक जीवन की विविध समस्याओं को व्यंजित करती हैं। उनकी रचनाएँ मध्यम वर्ग के सहज मनोविज्ञान को रेखांकित करती प्रतीत होती हैं और जिनसे आज के आदमी की अभिरुचि, भावनाओं, उसकी उलझनों, समस्याओं एवं संघर्षों को जाना-समझा जा सकता है। कीर्ति जी का जन्म 06 जुलाई 1974 को भोपाल, म.प्र. में हुआ। आपके पिताजी परम श्रद्धेय मयंक श्रीवास्तव जी हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य विद्वान् हैं। आपकी शिक्षा: एम.कॉम.,भोपाल विश्वविध्यालय, भोपाल से हुई। प्रकाशन: देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में गीत, ग़ज़ल एवं कविताओ का प्रकाशन। सम्प्रति: संचालक 'विभोर ग्राफिक्स'। संपर्क: 'राम भवन', 444-9ए, साकेत नगर, भोपाल- 462024 (म.प्र.), मो.- 07415999621, 09826837335। ईमेल: gunjanshrivastava18@gmail.com 

चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार
आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी देश में हिन्दी भाषा के प्रति आम दृष्टिकोण बहुत उत्साहवर्धक नहीं कहा जा सकता। हम अपनी बात जब शब्दों के माध्यम से किसी के सामने प्रस्तुत करते हैं तो सामने वाले को हमारी बात बेहतर समझ में आती है। हिन्दी एक ऐसी ही भाषा है। जिसके माध्यम से हम अपनी बात बड़े ही सरल तरीके से लोगों के सामने पेश कर सकते हैं। ऐसी है हमारी हिन्दी भाषा बेहद सरल, सहज और मधुर। 

उत्तर भारत में तथाकथित हिन्दी प्रदेशों में इसका जो स्थान होना चाहिए वह नहीं है। तो दक्षिण के हिस्सों में रह रहे गैर हिन्दी भाषी क्षेत्रों के विषय में क्या हकह सकते हैं। वैसे सम्पूर्ण भारत में हिन्दी ही लोकप्रिय भाषा है। हिन्दी वो राष्ट्रभाषा है जो देशों, प्रदेश, शहर, गाँव, कस्बों सबको परस्पर जोड़कर रखती है। 

एक समय था जब हिन्दी जन जन की भाषा थी पर आज अंग्रेजी जन जन की भाषा बनती जा रही है और जो अंग्रेजी नहीं बोल पाते या समझ नहीं पाते उन्हें तिरस्कार का समाना करना पड़ता है।

हमारे माता-पिता ने हमें हिन्दी भाषा से परिचित कराया है और आज ये हमारा दायित्व बनता है कि हम इस परम्परा को आगे बढ़ाएं। हिन्दी भाषा का शब्दकोश बड़ा ही व्यापक है। हम अपनी किसी भी बात से सामने वाले को जितना हिन्दी के सरल शब्दों के साथ संतुष्ट करा सकते हैं उतनी सरलता अंग्रेजी भाषा में नहीं मिलती। अंग्रेज हमेशा अंग्रेजी भाषा का ही इस्तेमाल अपनी बोलचाल में करते थे और करते हैं पर हिन्दुस्तानी हिन्दी छोड़ अंग्रेजी का उपयोग करते हैं। वाह रे हिन्दुस्तानी! 

जिसे हिन्दी से लगाव नहीं उसे देश से, देश की संस्कृति से, रीति रिवाजों से, परम्पराओं से लगाव नहीं हो सकता। अंग्रेजी का उपयोग आम बोल में बड़े ही जोर शोर से लोग करते हैं या यूं कहें कि शान बताते हैं भले ही वो सामने वाले को समझ में आए या न आए बस ये बताना जरूरी है कि हमें अंग्रेजी आती है। ऐसा नहीं है कि हिन्दी बोलने वाले लोग हैं ही नहीं। हिन्दी बोलने वाले लोग हैं पर वे अपने बच्चों को हिन्दी के स्थान पर अंग्रेजी पढ़ाना ज्यादा गर्व की बात मानते हैं उन्हें अंग्रेजी माध्यम के स्कुल में पढ़ाते हैं इसका एक कारण और भी हो सकता है। आजकल के वातावरण की हवा में अंग्रेजी भाषा घुली हुई है, अंग्रेजी आज की सबसे जरूरी या जरूरत की भाषा बन गई है। यदि अंग्रेजी का प्रयोग कम और हिन्दी का प्रयोग अधिक से अधिक किया जाने लगे तो हिन्दी का खोया हुआ सम्मान उसे वापस मिल सकता है।

आज एक क्षेत्र में हिन्दी का प्रयोग सबसे अक होता है, और वो है साहित्य। पर शायद हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए नहीं बस पुरस्कार और सम्मान पाने के लिए। मैं यह नहीं कहती कि सभी इस कारण से ही हिन्दी का प्रयोग करते हैं पर ये बात पूरी तरह से गलत भी नहीं। जब किसी भी वैज्ञानिक से शोध पत्र लिखने की बात कही जाती है या कानूनी, वाणिज्य या अर्थिक मुद्दों के संदर्भ में लेख लिखने की बात आती है तो उसे लिखने वाले हिन्दुस्तानी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करते हैं। बाद में किसी विद्वान से उसका हिन्दी में अनुवाद करा देते हैं और तब अर्थ का अनर्थ होते देर नही लगती। हम ऐसे लोगों को हिन्दी प्रेमी की श्रेणी में नहीं रख सकते। हिन्दी के भविष्य के बारे में कुछ भी कह पाना बड़ा ही मुश्किल है। आज का युग कम्प्यूटर-लेपटाप का युग है। बिना कम्प्यूटर के आज किसी भी क्षेत्र में कोई भी कार्य नहीं किया जा सकता और उसमें अंग्रेजी का उपयोग ही होता है। ऐसा नहीं है कि कम्प्यूटर पर हिन्दी में कार्य नहीं किया जा सकता पर हिन्दी का उपयोग यानि शान में कमी। 

अन्त में बस यहीं कहना चाहती हूँ-

सुन्दर शब्दों की पहचान है हिन्दी
भारत का अभिमान है हिन्दी
कानों में मधुर रस घोलती
हिन्दुस्तानियों की जान है हिन्दी

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