चन्द्र प्रकाश पांडे
वरिष्ठ कवि चन्द्र प्रकाश पांडे का जन्म 6 अगस्त 1943 को लालगंज, रायबरेली, उ प्र में हुआ। शिक्षा: एम ए, विशारद (वै) साहित्य रत्न। प्रकाशित कृतियाँ: बैसवाड़ी के नए गीत, मुट्ठी भर कलरव (नवगीत संग्रह), आँखों के क्षेत्रफल में (ग़ज़ल संग्रह), राम के वशंज (बाल कथाएं)। सम्मान: आकाशवाणी हरिद्वार एवं कोलकाता, राष्ट्र निर्माण सेवा समिति, अहमदाबाद आदि द्वारा सम्मानित। संपर्क: लालगंज, रायबरेली, उ. प्र., मोब - 09621166955।
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
सुख की
एक नदी बहती है
दुख के निर्जन से
पंख घुमावों में उतरे हैं
उगते बचपन से
सारे घर आंगन में टहलें
धूप-छांह से दिन
और घोसले टूटे जोड़ें
तिनके-तिनके बिन
छवि के
दावेदार खड़े हैं
टेढ़े दर्पण से
आधी आकाशी है
आधी गहराई में देह
भीड़ और सन्नाटों के स्वर
अंखुआता संदेह
पथराये दृश्यों तक
दौड़े
दृष्टि समपर्ण से।
(2) जी न लगे
पथराये दृश्यों तक
दौड़े
दृष्टि समपर्ण से।
(2) जी न लगे
जी न लगे
इस सूनेपन में
और न तेरे संग
आज उगे हैं बाहर-भीतर
सरपत के जंगल
बासी हुई हवायें
आकर
टहलें अगल-बगल
रुचीं न बातें
मौसम की भी
बौने हुये प्रसंग
गहरी चोट लगे पानी सा
घण्टो तक कंपना
कुछ-कुछ भूल चुके थे
टूटन
बीती दुर्घटना
ऐसे कभी-कभी
लौटी है
खण्डित हुई तरंग।
,अच्छे गीत. जीवन की रागात्मकता के आसपास. बधाई.
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