दिखने में सौम्य-सरल, आँखों में विनम्र-भाव और ऊँची कद-काठी पर धूसरित संघर्षी-छवि का आकर्षण-किसी भी व्यक्ति के मन में सहज ही यह लालसा उठ सकती है कि ऐसे व्यक्तित्व का परिचय प्राप्त किया जाए। किसी किसान को देखकर सामान्य तौर पर कहां आता है खयाल कि वह व्यक्ति उद्भट विद्वान भी हो सकता है। ऐसे ही हैं डॉ हुकुम पाल सिंह विकल। उनसे जब पहली बार मिला तो हू-ब-हू यही घटित हुआ मेरे साथ। अरसे बाद विकल जी का गीत संग्रह- देती है आवाज नदी, आया है। उलट-पुलट कर देखा-पढ़ा तो कुछ लिखने का मन हुआ। कम ही संग्रह मिलते हैं, जिन पर अपने आप लिखने का मन बन जाए।
आजीवन शिक्षा विभाग में रह कर विकल जी, शिक्षा जगत की नीवें मजबूत करते रहे और सामने आईं विपत्तियों से संघर्ष करते रहे। सांप्रदायिक सद्भाव बना रहे, चाहे उनका स्वयं का घर ही क्यों न जल उठे। ऐसे दृढ़ संकल्पित, भावुक और कल्पनाशील विकल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व में फर्क करना मुश्किल ही नहीं असंभव है। गत्यात्मकता उनके स्वभाव में है, इसलिए गीत में परिवर्तन (नव गति नव ताल छन्द नव) के पक्षधर हैं, किन्तु गीत-नवगीत को गीत ही कहने में विश्वास रखते हैं। आखिर गीत की विरासत से कैसे अलग-थलग हुआ जाय।
विकल जी गीत-तपस्वी हैं। गीत उनके भीतर से आता है क्योंकि पहले वे जीते हैं उसे। कोई भी दृश्य अथवा घटना जब आत्मसात करते हैं तो उनके मन-ह्नदय को वह रसाद्र कर देती है। इस तरह भीतर का भाव-रस गीत के रूप में बाहर आता है। रससिद्ध रचनाकार ही अगाध-गहन-सिन्धु हो सकता है। कठिन संघर्ष के क्षणों में भी द्वेत भाव, विरोधाभास, और अपना-पराया आदि के भाव को सम पर रखते हुए वे सामान्य बने रहते हैं। शायद इसीलिए वे लोकधर्म को सर्वोच्च धर्म मानते हैं और निराला के छन्द विस्तार के शास्त्र में आस्था रखते हैं-
मुक्त छन्द होकर भी ये सब
नहीं छन्द से मुक्त हुए
इस धरती के लोकधर्म से
क्षण भर नहीं विरक्त हुए। (पृष्ठ: 92-93)
विकल जी में भारतीय सांस्कृतिक चिंतन की गहरी पैठ है। इनके कई गीत इसका हमें अहसास दिलाते हैं। वे अहसास दिलाते हैं कि हम अपने जीवन-मूल्य बहुत पीछे (अतीत) छोड़ आए हैं। वहीं से हमें नए ढंग की जीवन की शुरूआत करनी होगी। ऐसा वे संकेत देते हैं -
नानी-दादी के किस्से
जाने कब हवा हुए
सब संवेदन आपस के
तिथि बीती दवा हुए
पगदण्डी का राजपथों से
मिलना नहीं फला। (पृष्ठ: 40)
गीत किसी विषय की विशेषताओं का वर्णन नहीं होता, न वस्तु की ही। जहां ऐसी स्थितियां आती हैं, गीत साधारण हो जाता है। दरअसल गीत वह कहन प्रक्रिया है जिसके भीतर से वस्तु का प्राकट्य होता है बिलकुल दधि से नवनीत की तरह। विकल जी की जिन्दगी में गीत-मर्म घुल-मिल गया है अत: स्वभाव से ही वे गीत-पारखी हो गए हैं, इसका लाभ लिया है उन्होंने अपने गीत रचाव में। यही कारण है कि अधिकांश गीतों में अन्विति की प्रधानता है। गीत रचना में अन्विति का विशेष महत्व है, बल्कि बिना अन्विति के तो गीत में रसपरिपाक ही नहीं होता। गीत संप्रेषणीय है अर्थात वह अन्विति प्रधान है। श्रोता/ पाठक के मन को अर्थ-पाश से बाँधना और बाँधते जाना ही तो गीत की प्रतिक्रिया है।
भूखे चार और भोज्य सामग्री अत्यल्प। एक रोटी को चार जनों में बाँट कर खाने से भूख तो मिटती नहीं लेकिन कवि ने उन चारों की भूख को आत्म संतोष की तृप्ति से मिटा दिया। संतोष के आनंद से परम कोई आनंद नहीं हो सकता। यहाँ कवि का भारतीय चिंतन बोलता है और जो प्रासंगिक भी है, अर्थात ह्यजब आए संतोष धन सब धन धूरि समान।ह्ण शिखरों को छूने की प्रतिस्पधार्ओं ने व्यक्ति को ही हताश किया है। भूमण्डलीय व्यवस्थाओं ने जनसाधारण को निराशा के कगार पर खड़ा करके जीवन-मृत्यु के असमंजस में झोंक दिया। विकल जी परिवेश की इस विभीषिका को देख रहे हैं और बड़े ही सहज-संक्षिप्त विन्यास में गीत कह कर व्यक्ति को बचा लेते हैं।
चार जनों ने उस रोटी को
सहज बाँट कर खाया
देख उसे आँगन का बिरवा
मन ही मन मुस्काया
द्वार-देहरी इसी खुशी में
लगे संग नचने। (पृष्ठ: 21)
कवि राष्ट्रीय गौरव और भारत के प्रागैतिहासिकता से भलीभाँति परिचित है। तभी तो वह मौजूदा उपलब्धियों से प्रसन्न होने की बजाय क्षुब्ध हो रहा है, बल्कि उपलब्धियोें से भय उत्पन्न हो रहा है। उपलब्धियां आमजन के हित में नहीं हैं। विकास ही शोषक के रूप में प्रकट हो रहा है। यह नया तथ्य है जो रचनाकार के गीत-नये नये आकाश से अभिव्यक्त हुआ है -
यह मन बिलकुल ऊब चुका है-
नये-नये आकाश से
भय-सा लगने लगा शहर के
बढ़ते हुए विकास से
***
टूट रहे हैं धीरे-धीरे
सब अपने इतिहास से (पृष्ठ: 22-23)
कवि को कथित विकास में शोषक-शोषित के जो द्वन्द्वात्मक मूल्य दिख रहे हैं वे वास्तव में भारतीय सांस्कृतिक चिंतन के विरोधी हैं। विकल जी इस तरह अपने गीतों में अनेक समकालीन प्रश्न उठाते हैं और उन पर विचार करने की प्रेरणा देते हैं।
वीरेंद्र आस्तिक
एल 60, गंगानगर
कानपुर, उ प्र
Detee Hai Awaz Nadi by Dr Hukumpal Singh Vikal
बढ़िया समीक्षा
जवाब देंहटाएंHe kavita mere dada ji ne likhi unki photo kayo nh h sab ki h un Mahan Hasti ko sat sat Naman
जवाब देंहटाएंPlease send me his photo
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