कलादीर्घा पत्रिका के सम्पादक एवं चित्रकार अवधेश मिश्र जी पोस्टर प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए. साथ में पूर्णिमा वर्मन जी, रोहित रूसिया, विजेंद्र विज, गीता पंडित, सौरभ पाण्डेय |
लखनऊ: नवगीत को केन्द्र में रखकर दो दिवसीय कार्यक्रम २३ तथा २४ नवम्बर २०१३ को गोमती नगर के कालिन्दी विला में सम्पन्न हुआ। नवगीत की पाठशाला के नाम से वेब पर नवगीत का अनोखे ढँग से प्रचार-प्रसार करने में प्रतिबद्ध अभिव्यक्ति विश्वम द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की कई विशेषताएँ हैं जो इसे अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों से अलग करता है।
माँ वागीश्वरी के समक्ष मंगलदीप जलाकर कलादीर्घा पत्रिका के सम्पादक एवं चित्रकार अवधेश मिश्र जी ने पोस्टर प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। इस अवसर पर कार्यक्रम की संयोजक पूर्णिमा वर्मन जी ने विगत दो वर्ष से आयोजित किये जा रहे नवगीत परिसंवाद की संक्षिप्त रूपरेखा तथा नवगीत के लिये अभिव्यक्ति विश्वम की नवगीत विषयक भावी योजनाओं के विषय में जानकारी दी।
गुलाब सिंह जी को स्मृति चिन्ह भेंट करती पूर्णिमा बर्मन जी। पीछे अवनीश सिंह चौहान |
प्रथम सत्र का शुभारंभ डा० भारतेन्दु मिश्र (दिल्ली) के वक्तव्य से हुआ। उन्होंने गीत और नवगीत में अंतर स्पष्ट करते हुए कहा- 'गीत वैयक्तिकता पर आधारित होता है, जबकि नवगीत समष्टिपरकता से जुड़ा होता है। हर गीत नवगीत नहीं होता जबकि हर नवगीत में गीत के छंदानुशासन का निर्वाह करना होता है।'
देश और विदेश के नव रचनाकारों को नवगीत समझने व लिखने के लिये नवगीत की पाठशाला एक सहज मंच है। पाठशाला से जुड़े रचनाकारों- कृष्णनंदन मौर्य, वीनस केशरी, शशि पुरवार, ब्रजेश नीरज, सन्ध्या सिंह एवं श्रीकान्त मिश्र ’कान्त’ ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं जिस पर वरिष्ठ सहित्यकारों ने अपनी समीक्षात्मक टिप्पणियाँ देते हुए बताया कि किस नवगीत में कहाँ सुधार की आवश्यकता है।
विनोद निगम जी, वीरेंद्र आस्तिक जी, गुलाब सिंह जी, धनञ्जय सिंह जी, मधुकर अष्ठाना जी, और पीछे निर्मल शुक्ल जी |
पूर्णिमा वर्मन, विजेन्द्र विज, अमित कल्ला और रोहित रूसिया के द्वारा बनाये गये नवगीत पोस्टरों को दर्शकों के लिए विशेष रूप से लगाया गया था जिसे भरपूर सराहा गया।
दूसरे सत्र में वरिष्ठ नवगीतकारों द्वारा नवगीत प्रस्तुत किये गयेहर गीत नवगीत नहीं होता जबकि हर नवगीत में गीत के छंदानुशासन का निर्वाह करना होता है। मधुकर अस्ठाना (लखनऊ), डा० विनोद निगम (होशंगाबाद), डा० धनंजय सिंह (दिल्ली), दिनेश प्रभात (भोपाल), शशिकान्त गीते (खण्डवा) ने अपने-अपने प्रतिनिधि नवगीतों का पाठ किया। प्रत्येक कवि को रचना पाठ हेतु पच्चीस मिनट का समय दिया गया। सभी नवगीतकारों द्वारा प्रस्तुत किये गये नवगीतों पर प्रश्न पूछे गये जिसमें सर्वश्री नचिकेता, मधुकर अष्ठाना, धनंजय सिंह, निर्मल शुक्ल, वीरेन्द्र आस्तिक, भारतेन्दु मिश्र एवं डा० जगदीश व्योम ने नवगीत के कथ्य, शिल्प व लय से सम्बंधित अनेक प्रश्नों व उत्तरों के द्वारा नवोदित गीतकारों का मार्गदर्शन किया। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ गीतकवि गुलाब सिंह ने कहा- "यह कार्यक्रम बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए कि यहाँ नये-पुराने कवियों, आलोचकों, सम्पादकों, संगीतज्ञों, चित्रकारों, विचारकों ने खुले मन से गीत पर बात की और गीतों को अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया है। पूर्णिमा जी और उनकी टीम को हार्दिक बधाई।"
तदुपरांत हौंसलों के पंख (कल्पना रमानी), समकालीन छंद प्रसंग (डॉ भारतेन्दु मिश्र) लकीरों के आर-पार (गीता पंडित), नवगीत 2013 (संपादक द्वय: डा. जगदीश व्योम एवं पूर्णिमा वर्मन) बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता (सम्पादक: अवनीश सिंह चौहान) पुस्तकों का लोकार्पण किया गया।
लकीरों के आर-पार का लोकार्पण करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार पूर्णिमा वर्मन, गीता पंडित, धनञ्जय सिंह, गुलाब सिंह, दिनेश प्रभात एवं यशोधरा राठौर |
तीसरे सत्र में नई पीढ़ी के रचनाकारों का कविता पाठ रखा गया। इसमें ओमप्रकाश तिवारी (मुम्बई), जयकृष्ण राय तुषार (इलाहाबाद), अवनीश सिंह चौहान (इटावा), रोहित रूसिया (छिंदवाड़ा, म.प्र.), रविशंकर मिश्र (प्रतापगढ़) ने अपने नवगीत प्रस्तुत किये।
नवगीत के अकादमिक सत्र में 'नवगीतों में भारतीय संस्कृति' (गुलाब सिंह), 'समकालीन नवगीतों में संवेदना का विकास' (नचिकेता), 'गीत की शाश्वतता और युवा रचनाकार' (निर्मल शुक्ल), 'गीत स्वीकृति- रचना प्रक्रिया के नये तेवर' (वीरेन्द्र आस्तिक), 'नवगीतों में नारी विमर्श' (डॉ. ओमप्रकाश सिंह) एवं 'वेब पर नवगीत की उपस्थिति' (डॉ. जगदीश व्योम) विषयों पर शोधलेख प्रस्तुत किये गये जिन पर चर्चा-परिचर्चा में सभी ने अपने अपने स्तर के अनुरूप सहभागिता की।
अपने वक्तव्य में नचिकेता जी ने कहा- 'आधुनिकतावादी-अस्तित्ववादी जीवन दृष्टि के प्रभाव एवं प्रवाह में लिखे गए गीत नवगीत हैं। गीत की व्यक्तिनिष्ठता नवगीत में यथार्थ दृष्टि में बदल गयी है, जिससे गीत की संवेदना का पाट अत्यधिक चौड़ा हो गया है।' निर्मल शुक्ल जी ने कहा- 'गीत-काव्य अपने उद्भव से अधुनातन तक की यात्रा करते हुए आज जिस परिष्कृत रूप में हम तक पहुंचा है वही आज संवेदनशील आधुनिक गीत के स्वरुप का नया संस्करण है।' वीरेंद्र आस्तिक जी ने बताया कि 'दरअसल गीत समय का दस्तावेज बनने की जद्दोजहद में प्रयोगधर्मी हो गया है। वास्तव में गीत का प्रयोगधर्मी होना ही नवीन होना है।' डॉ ओमप्रकाश सिंह जी कहते हैं- 'सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भौगोलिक बदलाव के साथ नवगीत भी बदलता है। इस बदलाव के रंग नवगीत में- (नारी विमर्श) में भी देखे जा सकते हैं।' डॉ जगदीश व्योम जी का मानना है- 'नवगीतों को विश्व स्तर पर पहुंचाने में इंटरनेट का बड़ा योगदान है। वर्त्तमान में वेब की उपलब्धता नवगीत के लिए बड़ी उपलब्धि है।'
सीमा जी, संध्या जी, पूर्णिमा जी, शशि जी, कल्पना जी, श्रीकांत जी, शशिकांत जी, रामशंकर जी |
बल्ली सिंह चीमा जी को स्मृति चिन्ह भेंट करती पूर्णिमा बर्मन जी एवं डॉ जगदीश व्योम |
पांचवें सत्र में महिला नवगीतकारों ने काव्यपाठ किया जिसमें यशोधरा राठौर (पटना), मधु प्रधान (कानपुर), कल्पना रामानी (मुंबई), सीमा अग्रवाल (कोरबा) और गीता पंडित (दिल्ली) ने अपने नवगीत प्रस्तुत किये। अतिथि कवियों में चन्द्रभाल सुकुमार, बल्ली सिंह चीमा, सुरेश उजाला एवं डॉ सुभाष राय की उपस्थिति सराहनीय रही। इन कवियों ने काव्यपाठ भी किया।
छठे सत्र में स्थानीय एवं अन्य रचनाकारों का कवितापाठ हुआ। नचिकेता, निर्मल शुक्ल, पूर्णिमा वर्मन, वीरेन्द्र आस्तिक, डा. ओमप्रकाश सिंह, सौरभ पाण्डेय, शैलेन्द्र शर्मा, अनिल वर्मा, रामशंकर वर्मा, मनोज शुक्ल, श्याम श्रीवास्तव, शरत सक्सेना आदि ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर दिया। इस सत्र की एक उपलब्धि यह भी रही कि उपस्थित रचनाकारों को यज्ञदत्त पण्डित जी से रेडियो की दुनियां के संस्मरण सुनने का अवसर मिला। इस सत्र की अध्यक्षता धनञ्जय सिंह ने की।
विजेन्द्र विज एवं श्रीकान्त मिश्र नें मल्टीमीडिया विशेषज्ञ की भूमिका का निर्वहन किया। इन दोनों के द्वारा नवगीतों पर निर्मित लघु फिल्मों को दिखाया गया जिसे भरपूर सराहना मिली। इस अवसर पर नितिन जैन एवं रामशंकर वर्मा द्वारा निर्देशित नवगीतों पर नाट्यमंचन प्रस्तुत किया गया। नवगीतों की संगीतमय प्रस्तुति सम्राट एवं राजकुमार और उनके साथियों ने की, जबकि संयोजन रश्मि एवं आशीष का रहा। कार्यक्रम का संचालन रोहित रूसिया ने किया। अवनीश सिंह चौहान तथा जगदीश 'व्योम' के संयोजकत्व में आयोजित इस कार्यक्रम के समापन अवसर पर आभार अभिव्यक्ति पूर्णिमा वर्मन जी ने की।
Programme on Hindi Lyrics organized by Abhivyakti Vishwam
कसी ,सधी और सारगर्भित रिपोर्ट हेतु पूर्वाभास को बधाई |
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंरिपोर्ताज़ में विशिष्ट रंगों के प्रयोग से दो दिवसीय आयोजन के प्रत्येक क्षण को जीवंत करना भा गया अवनीशजी. वस्तुतः, आप सभी का दो दिवसीय सान्निध्य मुझे कुछ और धनी कर गया.
जवाब देंहटाएंइस विशद रिपोर्ताज़ के लिए हार्दिक बधाई.
-सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद
अवनीश जी, बधाई!
जवाब देंहटाएंवृत्तचित्र सी, कुछ भी छूटा नहीं. पूरे आयोजन को समेटे हुये रिपोर्टिंग के लिए हार्दिक बधाई अवनीश जी.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई आदरणीय अवनीश जी
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