हैदराबाद (8 जनवरी 2014) ‘भारतीय भाषाओं में तेलुगु भाषा का भाषिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष महत्व है तथा तेलुगु साहित्य का हिंदी में बड़ी मात्रा में अनुवाद भी हो चुका है जो तेलुगु संस्कृति को निकट से जानने-समझने के लिए बहुत सहायक है.’ ये विचार अंग्रेज़ी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य डॉ. एम. वेंकटेश्वर ने यहाँ श्री त्यागराय गान सभा के प्रेक्षागृह में बिंदु आर्ट्स के तत्वावधान में संपन्न साहित्यिक समारोह में प्रो. ऋषभ देव शर्मा की समीक्षा पुस्तक ‘तेलुगु साहित्य का हिंदी पाठ’ का लोकार्पण करते हुए प्रकट किए. मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए उन्होंने आगे कहा कि इस पुस्तक में तेलुगु साहित्य का विवेचन हिंदी में अनूदित पाठ के आधार पर किया गया है जो तेलुगु के प्रति लेखक की सहज संवेदना का प्रतीक है.
लोकार्पित पुस्तक की पहली प्रति को स्वीकार करते हुए केंद्रीय साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत प्रमुख तेलुगु साहित्यकार प्रो. एन. गोपि ने कहा कि अन्नमाचार्य से लेकर आज तक के तेलुगु साहित्यकारों के रचनाकर्म पर हिंदी में प्रस्तुत यह समीक्षा कृति वास्तव में हिंदी और तेलुगु के मध्य एक नए स्नेह संबंध की शुरूआत है. उन्होंने आगे कहा कि इस पुस्तक को स्वीकार करते हुए मुझे अत्यंत हर्ष है क्योंकि इससे हिंदी समाज का तेलुगु समाज के प्रति प्रेम प्रकट हो रहा है.
‘स्रवंति’ पत्रिका की सह-संपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने लोकार्पित पुस्तक की समीक्षा करते हुए बताया कि इस पुस्तक में 36 निबंध और 1 विस्तृत शोधपत्र शामिल हैं जिनसे यह पता चलता है कि तेलुगु साहित्य ने अनुवाद के माध्यम से हिंदी के भाषा समाज को सामाजिक, सासंकृतिक, भाषिक और साहित्यिक स्तर पर निश्चित तौर पर समृद्ध किया है तथा भारत की सामासिक संस्कृति के विकास में उल्लेखनीय योगदान किया है.
विश्व रिकार्डधारी डॉ. कलावेंकट दीक्षितुलु ने बतौर आत्मीय अतिथि ‘तेलुगु साहित्य का हिंदी पाठ’ के प्रकाशन को हिंदी-तेलुगु साहित्य की महत्वपूर्ण साझा घटना बताया और कहा कि इसके लिए तेलुगु साहित्य जगत कृतज्ञ रहेगा.
समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रमुख तेलुगु साहित्यकार डॉ. सी. भवानी देवी ने लेखक ऋषभ देव शर्मा के कृतित्व की चर्चा करते हुए कहा कि उनकी यह पुस्तक हिंदी और तेलुगु दोनों भाषाओं के पाठकों के लिए तो उपयोगी है ही अनुवाद, भारतीय साहित्य और तुलनात्मक अध्ययन के शोधार्थियों और अध्येताओं के लिए भी समान रूप से लाभकारी है.
इस अवसर पर श्री साहिती प्रकाशन की ओर से वी. कृष्णा राव तथा बिंदु आर्ट्स की ओर से डॉ. सी. एस. आर. मूर्ति सहित तेलुगु और हिंदी की विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों, साहित्यकारों और शोधार्थियों ने विमोचित पुस्तक के लेखक ऋषभ देव शर्मा का सारस्वत सम्मान भी किया.
- गुर्रमकोंडा नीरजा
सह संपादक ‘स्रवंति’
प्राध्यापक, उच्च शिक्षा और शोध संस्था
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा
खैरताबाद, हैदराबाद – 500004
ईमेल – neerajagkonda@gmail.com
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