डलमऊ-रायबरेली की धरती से जुड़कर जहाँ साहित्य शिरोमणि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने अपनी विशिष्ट साहित्य सर्जना से हिन्दी संसार को अचरज में डाल दिया, वहीं वरिष्ठ साहित्यकार रामनारायण रमण ने निराला को अपने जीवन में उतारकर उनकी परम्परा का बखूबी निर्वहन किया है। गॉंव-देहात में रहना, लेखन करना, उसे प्रकाशित करवाना और पाठकों तक पहुँचाना बहुत कठिन है; कठिन न हो तो भी आजकल ज्यादातर रचनाकार किसी दिवंगत रचनाकार पर कलम चलाकर अपनी 'इनर्जी वेस्ट' करना नहीं चाहते हैं। ऐसी स्थिति में रामनारायण रमण ने निराला के सरोकारों को जन-मन तक पहुंचाने के लिए निराला और डलमऊ को केंद्र में रखकर संस्मरणात्मक जीवन-वृत्त की सराहनीय रचना तो की ही, निराला के 'कुकुरमुत्ता दर्शन' की सारगर्भित मीमांसा भी की है।
सजग एवं समर्पित साहित्यकार रामनारायण रमण निराला के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने निराला के बहाने न केवल गद्य और पद्य में तमाम महत्वपूर्ण रचनाएँ, लेख और पुस्तकें लिखीं, बल्कि कई साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजन कर समाज के तमाम लोगों को निराला से जोड़ने का सार्थक प्रयास भी किया है। आज जब कभी भी डलमऊ-रायबरेली में निराला की बात होती है, तब रामनारायण रमण का नाम लोगों के जेहन में आ ही जाता है। यह अलग बात है कि वे औरों की तरह निराला को 'भुना' नहीं पाये, याकि उन जैसा खुद्दार व्यक्ति कभी भी किसी को भुनाने के लिए श्रम नहीं करता। गॉंव-जंवार में रहने वाले इस सहज शब्द-साधक की यह एक साधारण कहानी लग सकती है, किन्तु यह कहानी इतनी भी साधारण नहीं है?
गीत, नवगीत, ग़ज़ल, निबन्ध, आलोचना, यात्रा-वृत्तांत आदि विधाओं में साधिकार सर्जना करने वाले समर्थ साहित्यकार रामनारायण रमण का जन्म 10 मार्च 1949 ई. को पूरेलाऊ, डलमऊ, रायबरेली (उ प्र) में हुआ। 'मैं तुम्हारे गीत गाऊँगा' (गीत संग्रह,1989), 'निराला और डलमऊ' (संस्मरणात्मक जीवन-वृत्त, 1993), 'मुझे मत पुकारो' (कविता संग्रह, 2002), 'निराला का कुकुरमुत्ता दर्शन' (निबन्ध, 2009), 'परिमार्जन' (निबन्ध, 2009), 'हम बनारस में बनारस हममें' (यात्रा वृत्तांत, 2010), 'हम ठहरे गाॅव के फकीर' (नवगीत संग्रह, 2011), 'उत्तर में आदमी' (निबन्ध, 2012), 'नदी कहना जानती है' (नवगीत संग्रह, 2018) आदि आपकी अब तक प्रकाशित कृतियाँ हैं। आपने 'गंगा की रेत पर' (काव्य संकलन), डलमऊ दर्शन (वार्षिकी) सहित कई पत्रिकाओं का सामयिक सम्पादन किया है। आपको सरस्वती पुरस्कार, विवेकानन्द सम्मान, निराला सम्मान, हौसला सिंह स्मृति सम्मान, गंगा सागर स्मृति सम्मान, अब्दुर्रसीद आधुनिक रसखान सम्मान आदि से अलंकृत किया जा चुका है। विशेष : निराला और डलमऊ कृति पर वृत्त चित्र। सम्पर्क : 121, शंकर नगर, मुराई का बाग (डलमऊ), रायबरेली - 229207 (उ.प्र.), मो. 09839301516।
हम रिटायर क्या हुए
धरती हुए अम्बर हुए
लोग हमसे पूछते हैं
क्या बतायें
आदमी के भाव
ईष्र्या-द्वेष के, संताप के,
पाप के कितने तरीके
प्रकट होने के
मगर वे नही दिखते
कभी अपने आप के
दूसरों के वास्ते-
ये आदमी खंजर हुए
बहुत छलनायें दिखी हैं
हर उजाले में
जिसे हम प्रेम कहते हैं
उसी मे रमे रहते हैं,
नदी से बह नहीं पाते
फरेबों से भरे नद हैं,
अंधेरे हैं
जहाँ हम थमे रहते हैं
जो लगे थे देवता
वे बदल कर पत्थर हुए
भीड़ से बचना हमेशा
खोजना एकान्त
जीवन जहाँ खिलता है
हमें आराम मिलता है,
तसल्ली भी, दिलासा भी
नई आशा, नई भाषा
कि अपने रास्ते पर -
एक मुकाम मिलता है
कह नहीं पाते-
कि क्या हटकर हुए।
2. चुप रहना
रचनाओं से
खेल रहा है मन सैलानी
चुप रहना
खेल रहा है मन सैलानी
चुप रहना
इन्द्रधनुष कुछ नहीं
किसे मालूम नहीं
पानी की बूँदों पर किरणें तारी हैं,
धीरे-धीरे दुनिया
बदली जाती है
बदलाहट के बीच-बीच चिनगारी हैं
आँख उठाकर
देख रहा आकाश गुमानी
चुप रहना
एक टाँग पर खड़ा
कुकुरमुत्ता मुस्काता
कूड़ा करकट जहाँ वहीं उग आता है,
बच्चों की छतरी से-
लेकर कैप सदृश
खाने के पकवानों तक घुस जाता है
नहीं चलेगी
बेमतलब की बात पुरानी
चुप रहना
कितना पानी बहा
नदी वतुल में है
सागर, पर्वत, सूरज, चाँद-सितारे हैं,
जाड़ा-गर्मी-बरसातें-
मधुमास मिलन
पतझड़ के विग्रह की लगी कतारें हैं
वातायन से
फिर लौटा अद्भुत विज्ञानी
चुप रहना।
3. चौराहे पर
चौराहे पर
खड़े हुए हम
किंकर्तव्यविमूढ़ हुए
फिर लौटा अद्भुत विज्ञानी
चुप रहना।
3. चौराहे पर
चौराहे पर
खड़े हुए हम
किंकर्तव्यविमूढ़ हुए
चारों ओर एक सी सड़कें,
चारों ओर सवारी हैं,
सबको जाने की जल्दी है
पर गतिविधियाँ न्यारी हैं
अपनी गठरी
सिर पर लादे
ज्ञानी हुए कि मूढ़ हुए
संदेशे स्मृतियों में है
स्मृतियाँ छलनाओं में,
अंतरिक्ष में आँख लगी है
शैल बंधे हैं पावों में
संकेतक हैं
मगर न दिखते
अक्षर-अक्षर गूढ़ हुए
खोज रहे जो अपने रस्ते
उनमें नाम हमारा भी,
सूरज-चंदा की मत कहिये
यहीं कहीं ध्रुवतारा भी
एक रोशनी
जिसके भीतर-
जगी, वही आरूढ़ हुए।
4. जिंदगी के दिन
चलो हटो
बैठो उस ओर
जिंदगी के दिन
जिंदगी के दिन
सुख-दुख
की चिंता के घोर
जिंदगी के दिन
की चिंता के घोर
जिंदगी के दिन
फर्राटें मार
नई कार चली
धुआँ, धूल, आँधी-अंधियारा,
खटर-पटर
कुछ दिन के बाद
हुआ शुरू वहीं मीठापन खारा
बेचैनी
बाघिन का जोर
जिंदगी के दिन
बाघिन का जोर
जिंदगी के दिन
काँच की सड़क
तलुवे फूल से
जिबह हुए बेवजह सपन,
घर में
गौरैया के घोसले-
छितरे है, भागता पवन
आगे-पीछे
कोने चोर
जिंदगी के दिन।
5. ज्वार के भुट्टे
शीश को झुका
करते नमस्कार
ज्वार के पके भुट्टे खेत में
किरणों ने
अपने संजाल में
सुबह-सुबह प्यार से समेटा,
धूप हुई
गुनगुनी निगोड़ी
बाहों में बाँधकर लपेटा
दानों के दाँत
हँसे मोती से
ज्वार के पके भुट्टे खेत में
कवियों की
आँखे हैं खिड़कियाँ
दृश्य गये भीतर आराम से,
ध्यान की
सधी मुद्रा जागती
फलती है कविता उपराम से
देते हैं
काव्यमय संदेशे
ज्वार के पके भुट्टे खेत में।
काव्यमय संदेशे
ज्वार के पके भुट्टे खेत में।
6. एक गौरैया रहती है
मेरे बिल्कुल पास
एक गौरेया रहती है
एक गौरेया रहती है
पतझड़ हुआ
कि बेल हमारी
कच-कच-कच निकली,
पतझड़ के
मौसम में भी
पतझड़ से बच निकली
दो दिन में छा गई
कि नीचे गैया रहती है
टहनी फूटी जहाँ
वहीं पर
झोंझ लगाती है,
तिनके-तिनके
जोड़-जोड़कर
महल बनाती है
गाती तो लगता है
यहीं सुरैया रहती है
सुख-दुख भी
होंगे तो होंगे
कुछ परवाह नहीं,
अपने जीवन
की मस्ती है
कोई चाह नहीं
होंगे तो होंगे
कुछ परवाह नहीं,
अपने जीवन
की मस्ती है
कोई चाह नहीं
मुझ अधीर के घर में
धीर-धरैया रहती है।
शब्द जब सीधे खेत-आँगन से भाव पाते हैं तो उनमें मनभावन-सी महक आ जाती है. यह महक टटका बारिश-बूँदों से भीगी धरती से आती हुई सोंधी महक की तरह हुआ करती है. इनका होना साहित्य में लगातार तारी होते जा रहे वैशिष्ट्य के बीच नैसर्गिक आत्मीयता का सम्मान पाना है, जो अनावश्यक आचार के असहनीय बोझ से निर्लिप्त हुआ करती है. आदरणीय रामनारायणजी के नवगीतों से गुजरता हुआ पाठक ऐसी ही आत्मीयता से भर उठता है, आत्मीयता अपने आप के प्रति, अपने आस-पास के प्रति ! यही कवि की सफलता है.
जवाब देंहटाएंभाई अवनीशजी, इन गीतों को साझा करने केलिए हार्दिक धन्यवाद.
-सौरभ, नैनी, इलाहाबाद
भाई अवनीश जी, मैं तो रमण जी को जानता ही नहीं था। कवि रामनारायण रमण का परिचय देने और उनके इतने सुन्दर गीतों से परिचित कराने के लिए साधुवाद।
जवाब देंहटाएं"Bhid se bachna hamesha khojna ekant; nayi aasha,nayi bhasha;ki apne raste par ek mukam milta hai" wonderful.
जवाब देंहटाएंएक एक गीत सघन वैचारगी से भरा हुआ और बिल्कुल नज़दीकी से लगा । गीतकारकी भाषा-भाव में सघन सम्प्रेषण है । गीतों की पँक्ति-पँक्ति अत्यधिक भावपूर्ण है । कवि को बधाई
जवाब देंहटाएंhttps://www.facebook.com/abnishsinghchauhan/posts/4110206762353470?comment_id=4112174602156686¬if_id=1591179279592868¬if_t=feed_comment&ref=notif
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