विनोद श्रीवास्तव |
कई वर्ष पहले वरिष्ठ कवि एवं संपादक (स्व) दिनेश सिंह जी के साथ ख्यातिलब्ध साहित्यकार (स्व) डॉ शिव बहादुर सिंह भदौरिया जी के आवास पर लालगंज, रायबरेली जाना हुआ। अवसर भदौरिया जी के सुपुत्र विनय भदौरिया जी की बेटी का विवाह। श्रद्देय दिनेश सिंह जी ने अग्रज कवि विनोद श्रीवास्तव जी से परिचय कराया। बोले, विनोद जी दैनिक जागरण के साहित्यिक पृष्ठ से जुड़े हुए हैं और एक अच्छे युवा गीतकार हैं। कार्यक्रम संपन्न होने के बाद अगली सुबह विनोद जी को कानपुर प्रस्थान करना था और मुझे इटावा। दोनो लोग एक ही बस से लालगंज से कानपुर रवाना हुए। एक लम्बे अरसे तक विनोद जी से मेरा संवाद नहीं हुआ। कभी-कभार उनके गीत पढने को मिल गये, बस। पिछले वर्ष उनसे फोन पर बात हुई और आपसी संवाद कायम हो गया। तब से अब तक संपर्क बना हुआ है। विनोद जी अपनी पीढ़ी के उन गिने-चुने गीतकारों में से एक हैं जो रचनाओं की विषयवस्तु और उनके प्रस्तुतीकरण दोनों स्तर पर सर्वस्वीकार्य हैं। यह बड़ी बात है। शायद इसीलिये उन्हें पाठकों और श्रोताओं का समान रूप से प्यार और वरिष्ठ साहित्यकारों एवं आलोचकों से आशीष मिला। 2 जनवरी 1955 को जन्मे विनोद जी को उत्तर प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक के महामहिम राज्यपाल द्वारा हिन्दी सेवा के लिए सम्मानित किया जा चुका है। शिक्षा : अर्थशास्त्र और हिन्दी में स्नातकोत्तर। देश की छोटी-बड़ी कई पत्र-पत्रिकाओं में आपके गीतों का प्रकाशन। आकाशवाणी / दूरदर्शन से रचनाओं का प्रसारण। कई समवेत संकलनों में गीत प्रकाशित। प्रकाशित गीत संग्रह : भीड़ में बाँसुरी (1987), अक्षरों की कोख से (2001)। संप्रति: प्रतिष्ठित हिन्दी समाचार पत्र दैनिक जागरण के साहित्यिक परिशिष्ट 'पुनर्नवा' के प्रकाशन में सहयोगी एवं दैनिक जागरण समूह के संस्थान 'लक्ष्मी देवी ललित कला अकादमी, कानपुर से संबद्ध। संपर्क : E-695, कृष्ण विहार, आवास विकास, कल्यानपुर, कानपुर, उ प्र। ईमेल : vinod9648644966@gmail.com । आपके तीन नवगीत यहाँ प्रस्तुत हैं :-
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
फिर हमारे ताल में
कोई कमल उभरे खिले
पंक में होती नहीं
यदि सूर्यमुख संभावना
किस तरह से जन्म लेती
रूप की अवधारणा
फिर कमल की नाल में
झलकें सलोने सिलसिले
रूप की बारादरी में
गंध की वीणा बजे
स्नान कर मधुपर्व में
नीलाम्बरा उत्सव रचे
फिर सुनहरे थाल में
झिलमिल किरन कुंकुम मिले
उत्सवों में भी महोत्सव-
का नयन में घूमना
एक ही पल को सही
अनुराग का नभ चूमना
समर्पित भू-चाल में
महके स्वरों की छवि हिले।
2. अब न देखते बने
2. अब न देखते बने
अब न देखते बने
आपका बाना और ठिकाना जी
क्या-क्या दिखा रहे परदे पर
क्या-क्या सुना रहे
बेशकीमती लाजवंत की
इज्जत भुना रहे
अनावृत हो जाय न सबकुछ
थोड़ा उसे बचाना जी
तुमने लिखा और तुम ही क्यों-
पढ़ना भूल गये ?
कौशल कहाँ गँवाया ?
मूरत गढ़ना भूल गये
कोरे कागज का होता है
मंजर बड़ा सुहाना जी
सबकुछ बिखर गया -
अंतर्मन का दुःख दूना है
कोई स्वर गूंजे
अदीब का आँगन सूना है
आओ! आओ! बीन बजाओ
फिरसे छिड़े तराना जी।
3. तुम कहो तो
एक खामोशी हमारे बीच है
तुम कहो तो तोड़ दूँ पल में
सिरफिरी तनहाइयों का
वास्ता हमसे न हो
जो कहीं जाए नहीं
वह रास्ता हमसे न हो
एक तहखाना हमारे बीच है
तुम कहो तो बोर दूँ जल में
फूल हैं, हैं घाटियाँ भी
पर कहाँ खुशबू गई
क्यों नहीं आती शिखर से
स्नेहधारा अनछुई
एक सकुचाना हमारे बीच है
तुम कहो तो छोड़ दूँ तल में
रूप में वय प्राण में लय
छंद साँसों में भरे
और वंशी के सहारे
हम भुवन भर में फिरें
एक मोहक क्षण हमारे बीच है
तुम कहो तो रोप दूँ कलमें।
Three Hindi Lyrics of Vinod Srivastava
3. तुम कहो तो
एक खामोशी हमारे बीच है
तुम कहो तो तोड़ दूँ पल में
सिरफिरी तनहाइयों का
वास्ता हमसे न हो
जो कहीं जाए नहीं
वह रास्ता हमसे न हो
एक तहखाना हमारे बीच है
तुम कहो तो बोर दूँ जल में
फूल हैं, हैं घाटियाँ भी
पर कहाँ खुशबू गई
क्यों नहीं आती शिखर से
स्नेहधारा अनछुई
एक सकुचाना हमारे बीच है
तुम कहो तो छोड़ दूँ तल में
रूप में वय प्राण में लय
छंद साँसों में भरे
और वंशी के सहारे
हम भुवन भर में फिरें
एक मोहक क्षण हमारे बीच है
तुम कहो तो रोप दूँ कलमें।
क्या-क्या दिखा रहे परदे पर
जवाब देंहटाएंक्या-क्या सुना रहे
बेशकीमती लाजवंत की
इज्जत भुना रहे
अनावृत हो जाय न सबकुछ
थोड़ा उसे बचाना जी
Vinod ji ko padhkar achchha laga
जवाब देंहटाएंManoj jain bhopal
अति सुन्दर नवगीत ,बधाई .मंजुल भटनागर
जवाब देंहटाएंतीनों गीत बहुत अच्छे हैं, पर अंतिम विशेष रूप से पसंद आया. विनोद श्रीवास्तव जी को बधाई और अवनीश जी का शुक्रिया...
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