मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री शचीन्द्र भटनागर जी हिंदी के ऐसे समर्थ साहित्यकार हैं जिनका अब तक समुचित मूल्यांकन नहीं हुआ। इसका प्रमुख कारण उनकी स्वयं की उदासीनता और आलोचकों की उनके साहित्य के प्रति अनिभिज्ञता भी हो सकता है। जो भी कारण रहा हो, किन्तु इतना तो अवश्य ही कहा जा सकता है कि अखण्ड ज्योति, जिसकी लगभग एक लाख प्रतियाँ गायत्रीपीठ-शांतिकुंज (हरिद्वार) से प्रति माह छपती हैं, में नियमित प्रकाशित होने वाले इस यशस्वी कवि का साहित्य जहाँ अपने आप में विशिष्ट है, वहीं हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि भी है। समाज, संस्कृति और अध्यात्म के प्रति गहरे लगाव से रचे गए उनके गीत, नवगीत, ग़ज़ल, महाकाव्य, मुक्तक, निबंध, आलेख आदि जीवन को समग्रता से देखने के लिए प्रेरित करते हैं। पूर्वाभास में प्रकाशित उनके ये पाँच नवगीत आस्था एवं विश्वास के नाम पर आडम्बरपूर्ण, मिथ्याचारी एवं कुकर्मी लोगों के चाल-चलन पर बड़ी सावधानी एवं सजगता से कटाक्ष तो करते ही हैं, भावकों को भारतीय अध्यात्म एवं दर्शन का वास्तविक ज्ञान भी कराते हैं। श्री शचीन्द्र भटनागर जी उर्फ़ महेन्द्र् मोहन भटनागर का जन्म 28 सितम्बर 1935 ई. को फैजाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ। प्रकाशित साहित्य : खंड-खंड चाँदनी (गीत-नवगीत संग्रह 1973), क्रान्ति के स्वर (गीत संग्रह 1999), करिष्ये वचनं तव (गीत संग्रह 2003, पुनर्मुद्रण 2011), हिरना लौट चलें (नवगीत संग्रह 2003), तिराहे पर (ग़ज़ल संग्रह 2006), ढाई आखर प्रेम के (गीत-नवगीत संग्रह 2007, पुनर्मुद्रण 2010), अखण्डित अस्मिता (मुक्तक संग्रह 2008, पुनर्मुद्रण 2010), प्रज्ञावतार लीलामृत (महाकाव्य 2011— 12 सर्गों में पूर्वार्द्ध खण्ड), कुछ भी सहज नहीं (नवगीत संग्रह, 2015; निराला पुरस्कार, उ. प्र. हिंदी संस्थान), त्रिवर्णी (गीत-नवगीत संग्रह, 2015), युवाओं के गीत (गीत संग्रह, 2017), इदं न मम (गीत संग्रह, 2017) आदि। गायत्री प्रज्ञा पीठ के संस्थापक पूज्य संत पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के जीवन-चरित्र पर 'प्रज्ञावतार लीलामृत' (12 सर्गों में महाकाव्य) के उत्तरार्द्ध खण्ड का सृजन आप कर रहे हैं, जिसका भव्य लोकार्पण 2020 में होना निर्धारित है। पुरस्कार/ सम्मान : वर्ष 1963 में कादम्बिनी पत्रिका द्वारा कादंबिनी गीत पुरस्कार, वर्ष 1988 में अखिल भारतीय व्रजसाहित्य संगम, आगरा द्वारा व्रज विभूति की उपाधि, वर्ष 1988 में हिंदी प्रकाश मंच संभल द्वारा काव्य मर्मज्ञ की उपाधि से अलंकृत, वर्ष 1998 में अमृत महोत्सव भिंड, मध्य प्रदेश में आचार्य श्रीराम शर्मा शक्तिपीठ पुरस्कार, वर्ष 2006 में हिंदी साहित्य संगम, मुरादाबाद द्वारा महाकवि दुर्गादत्त त्रिपाठी जन्मशताब्दी साहित्य सम्मान, वर्ष 2009 में आर्य समाज मुरादाबाद द्वारा आर्य भूषण सम्मान, वर्ष 2010 में साहित्यिक, सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था परमार्थ द्वारा साहित्य एवं कला विभूति की मानद उपाधि प्रदत्त, वर्ष 2010 में स्व. राजेश दीक्षित स्मृति साहित्य सम्मान, वर्ष 2011 में विप्रा-कला साहित्य मंच द्वारा साहित्यार्जुन सम्मान, वर्ष 2012 में अखिल भारतीय साहित्य कला मंच द्वारा मंदाकिनी साहित्य सेवा सम्मान, वर्ष 2012 में सरस्वती परिवार मुरादाबाद द्वारा काव्य सिंधु उपाधि, वर्ष 2013 में तूलिका साहित्यिक संस्था, एटा द्वारा साहित्यश्री उपाधि, वर्ष 2014 में अखिल विश्व गायत्री परिवार मुख्यालय शांतिकुंज हरिद्वार द्वारा युग साहित्य-सृजन सम्मान से विभूषित, वर्ष 2017 में उ.प्र. हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा 'कुछ भी सहज नहीं' (नवगीत संग्रह, 2015) पर निराला पुरस्कार आदि। अन्य साहित्यिक उपलब्धियाँ : (क) अनुवाद : अनेकानेक गीतों का तमिल, तेलुगु, मलयालम, बांगला, गुजराती, मराठी, ओडिया, पंजाबी तथा अंग्रेजी में अनुवाद हो चुका है। (ख) शोधपरक ग्रंथ : 1. भक्तिगीत परम्परा और शचीन्द्र भटनागर के भक्ति गीत - संपादक डॉ. नंदकिशोर राय, लखनऊ। 2. शचीन्द्र भटनागर:व्यक्तित्व एवं कृतित्व-डॉ. कंचनलता, बरेली। 3. शचीन्द्र भटनागर के काव्य की अंतर्यात्रा- डॉ. सुनीता सक्सेना, एटा। 4. उत्तरोत्तर- अमृत वर्ष पर प्रकाशित समीक्षात्मक ग्रंथ- संपादक डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल, बिजनौर। संपर्क सूत्र : शचीन्द्र भटनागर, द्वारा श्री अतुल भटनागर, B-32, गौड़ ग्रेशियस, कांठ रोड, मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश), पिन संख्या- 244001; शचीन्द्र भटनागर, 13, जनक भवन, शांतिकुंज, हरिद्वार (उत्तराखण्ड) - 249411, मोबाइल— 8057192199।
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
जी, हम हैं पंडे पुश्तैनी
दर्ज बही में अपनी
देखो परदादा का नाम तुम्हारे
संस्कार करवाने आते
पूर्वज यहीं तुम्हारे सारे
हमें ज्ञान है हर निदान का
पाप-ताप के क्षमादान का
तभी यहाँ आते रहते हैं
बौद्ध, समाजी, वैष्णव, जैनी
हमें पता हर सीधा रस्ता
हम हैं ईश्वर के अधिवक्ता
ऐसा सुगम उपाय पुण्य का
कोई तुमको बता न सकता
कई पीढिय़ों को है तारा
करना यह विश्वास हमारा
कुछ भी करो साल भर चाहे
मन में मत लाना बेचैनी
क्यों चिंता में डूबे रहते हो यजमान
जागते-सोते
थोड़ा जीवन शेष
बिताते क्यों उसको यूँ रोते- धोते
हम ऐसा विनियोग करेंगे
दूर दोष- भय- रोग करेंगे
वहाँ न काम करेगी
गीता, रामायन या कथा, रमैनी
पिछले-अगले कई जन्म का
ऐसा समाधान है हम पर
शांति उन्हें भी हम दे सकते
जिनका है उपचार न यम पर
हम ब्रह्मास्त्र चला सकते हैं
भवनिधि पार करा सकते हैं
काम न भारी बुलडोजऱ का
करती कभी हथैड़ी-छैनी
कृपा- प्राप्ति के लिए
त्याग भी कुछ करना पड़ता है साधो!
सबकुछ यहीं पड़ा रह जाना
फिर क्यों सिर पर गठरी लादो
जब चाहो गंगातट आना
श्रद्धा से कुछ भेंट चढ़ाना
पा जाओगे पुण्य-लाभ की
हम से सीधी- सुगम नसैनी।
2. तीर्थाटन
अबकी बार हुआ मन
हम भी तीर्थाटन करने जाएँगे
गंगाजी के तट पर
होटल कई-कई मंजि़ल वाले हैं
एयरकंडीशंड कक्ष में
टी.वी. हर चैनल वाले हैं
हर प्रकार की सी.डी. मिलतीं
जो कुछ चाहेंगे, देखेंगे, घूमेंगे,
दृश्यों का पूरा हम आनंद वहाँ पर लेंगे
इस अवसर का लाभ उठाकर
हल्का मन करने जाएँगे
कमरों में हो जाता हैं
उपलब्ध वहाँ पर हर सुख-साधन
एक कॉल पर आ जाता है
सामिष तथा निरामिष भोजन
मनचाहा खाने-पीने को
हम होंगे स्वच्छंद वहाँ पर
शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गंध का
होगा हर आनंद वहाँ पर
इस जीवन पर नए सिरे से
हम मंथन करने जाएँगे
यहाँ दृष्टि में दकियानूसी लोगों की
रहता है संशय
माँ गंगा की सुखद गोद में
बिता सकेंगे जीवन निर्भय
कुछ भी पहनेंगे- ओढ़ेंगे
वहाँ न कोई बंधन होगा
वहाँ पहुँचने पर
हम दोनों वही करेंगे जो मन होगा
मन का भार उतार
वहाँ हम मनरंजन करने जाएँगे
गंगास्नान करेंगे
भीतर वही चेतना भी भर देंगी
वह तो पतित पावनी माँ हैं
हर अपराध क्षमा कर देंगी
जब मंदिर जाकर
श्रद्धा से शीश नवाएँगे हम दोनों
तीर्थाटन का लाभ
सहज ही फिर पा जाएँगे हम दोनों
मनरंजन के संग
सफल हम यह जीवन करने जाएँगे।
3. कथावाचिका
रामकथा करने आई हैं
कथावाचिका मथुरावासी
वह उपवास-निरत रहती हैं
अन्न-त्याग का तप करती हैं
केले, सेब, अनार, आम हों
काजू, किशमिश हों, बदाम हों
दुग्ध संग में हो तो उत्तम
रहती हैं वह सदा उपासी
कथावाचिका मथुरावासी
गंगाजल से स्नान करेंगी
तदुपरांत वह ध्यान करेंगी
जल में दूध-दही मिश्रित हो
पुष्पसार से वह सुरभित हो
ऐसा है व्यक्तित्व कि लगती
हैं पूनम की चंद्रकला-सी
कथावाचिका मथुरावासी
एक पहर में तीस मिनट की ही
केवल वह कथा सुनातीं
अन्न-त्याग का तप करती हैं
केले, सेब, अनार, आम हों
काजू, किशमिश हों, बदाम हों
दुग्ध संग में हो तो उत्तम
रहती हैं वह सदा उपासी
कथावाचिका मथुरावासी
गंगाजल से स्नान करेंगी
तदुपरांत वह ध्यान करेंगी
जल में दूध-दही मिश्रित हो
पुष्पसार से वह सुरभित हो
ऐसा है व्यक्तित्व कि लगती
हैं पूनम की चंद्रकला-सी
कथावाचिका मथुरावासी
एक पहर में तीस मिनट की ही
केवल वह कथा सुनातीं
शेष समय में स्वर-लहरी से
हाव-भाव से रस बरसातीं
भीग-भीगकर जनता फिर भी
हाव-भाव से रस बरसातीं
भीग-भीगकर जनता फिर भी
रह जाती प्यासी की प्यासी
कथावाचिका मथुरावासी
समझाती हैं- कर्म तुम्हारे
समझाती हैं- कर्म तुम्हारे
ईश्वर आठों याम निरखता
कृपा-अनुग्रह से पहले
वह भक्तों की पात्रता परखता
फिर कहती हैं- हुई आजकल
दुनिया धन साधन की दासी
कृपा-अनुग्रह से पहले
वह भक्तों की पात्रता परखता
फिर कहती हैं- हुई आजकल
दुनिया धन साधन की दासी
कथावाचिका मथुरावासी
धन-आभूषण उन्हें भेंट-में
जब कोई देता श्रद्धा से
उसे ग्रहण कर मुस्काती हैं
वह आशीर्वाद-मुद्रा से
धन-आभूषण उन्हें भेंट-में
जब कोई देता श्रद्धा से
उसे ग्रहण कर मुस्काती हैं
वह आशीर्वाद-मुद्रा से
एक पहर सेवा को
उत्सुक रहते ऊँचे भवन-निवासी
कथावाचिका मथुरावासी।
4. पुण्य पर्व
आने वाली शिवतेरस है
शिव के श्रवणकुमार जा रहे
सजी सुगढ़ काँवड़ काँधे हैं
शॉर्ट कैपरी हैं केसरिया
पाँवों में घुँघरू बाँधे हैं
मुँह में रखे भाँग के गोले
बोल रहे हैं बम बम भोले
कभी नाचते हैं मस्ती में
चलते में लेते हिचकोले
उत्सुक रहते ऊँचे भवन-निवासी
कथावाचिका मथुरावासी।
4. पुण्य पर्व
आने वाली शिवतेरस है
शिव के श्रवणकुमार जा रहे
सजी सुगढ़ काँवड़ काँधे हैं
शॉर्ट कैपरी हैं केसरिया
पाँवों में घुँघरू बाँधे हैं
मुँह में रखे भाँग के गोले
बोल रहे हैं बम बम भोले
कभी नाचते हैं मस्ती में
चलते में लेते हिचकोले
बरस रहा नभ से
बादल बन शिव की
बादल बन शिव की
सरस भक्ति का रस है
भक्तिभाव से
गंगातट पर आकर वे
भक्तिभाव से
गंगातट पर आकर वे
जल भर ले जाते
किंतु पुरानी काँवड़, कपड़े
गंगाजी के बीच सिराते
पतितपावनी गंगा मैया
इनका भी उद्धार करेंगी
नहीं सोचते
जल में वे सब कितना
किंतु पुरानी काँवड़, कपड़े
गंगाजी के बीच सिराते
पतितपावनी गंगा मैया
इनका भी उद्धार करेंगी
नहीं सोचते
जल में वे सब कितना
अधिक विकार भरेंगी
नासमझी से
मिलता गंगामाता को
नासमझी से
मिलता गंगामाता को
कितना अपयश है
भक्त वहाँ कुछ ऐसे भी हैं
जो मन बहलाने को आते
जगह-जगह सत्कार देखकर
मस्ती करते, मौज मनाते
एक जेब में पव्वा रखते
एक जेब में पिसी भाँग है
काँवड़ या केसरिया कपड़े
केवल नाटक और स्वाँग है
तप का भाव नहीं है मन में
करनी उनकी
जस-की-तस है
यह श्रावण का पुण्य पर्व है
चाहो अगर परमपद पाना,
विल्वपत्र के संग-संग तुम
आधा कुंतल दूध चढाऩा
रोगी बच्चा
झोंपड़पट्टी में चाहे भूखा मर जाए
या श्रम करती माँ का
बेटा एक घूँट पय को ललचाए
सबकी अपनी-अपनी किस्मत
नहीं नियति पर चलता वस है।
भक्त वहाँ कुछ ऐसे भी हैं
जो मन बहलाने को आते
जगह-जगह सत्कार देखकर
मस्ती करते, मौज मनाते
एक जेब में पव्वा रखते
एक जेब में पिसी भाँग है
काँवड़ या केसरिया कपड़े
केवल नाटक और स्वाँग है
तप का भाव नहीं है मन में
करनी उनकी
जस-की-तस है
यह श्रावण का पुण्य पर्व है
चाहो अगर परमपद पाना,
विल्वपत्र के संग-संग तुम
आधा कुंतल दूध चढाऩा
रोगी बच्चा
झोंपड़पट्टी में चाहे भूखा मर जाए
या श्रम करती माँ का
बेटा एक घूँट पय को ललचाए
सबकी अपनी-अपनी किस्मत
नहीं नियति पर चलता वस है।
5. गुरु - दीक्षा
सद्गुरु गंगातट आए हैं
आओ जीवन धन्य बना लो
जिन्हें न गुरु मिल पाता
उनको कहते हैं सब लोग निगोड़े
ऊपर जाकर सहने पड़ते
उनको यमदूतों के कोड़े
गहकर गुरु की शरण
स्वयं को महादंड से आज बचालो
अहोभाग्य गुरु स्वयं आ गए
करने को कल्याण तुम्हारा
किसे पता है मिले ना मिले
यह अवसर फिर तुम्हें दुबारा
गया समय फिर हाथ न आता
दीक्षा लेकर पुण्य कमालो
देख-देख हर कर्मकांड में
प्रतिदिन होती लूट यहाँ पर
कृपासिंधु गुरु जी ने
दीक्षा में दी भारी छूट यहाँ पर
मिली छूट का समझदार बन
इसी समय शुभ लाभ उठा लो
एक नारियल,
पंचवस्त्र के संग पंचमेवाएँ लेकर
और पंच मिष्ठान्न, पंचफल,
पंचशती मुद्राएँ लेकर
सद्गुरु के श्रीचरणों पर
अर्पित कर कृपा-अनुग्रह पा लो
शरणागत पा तुम्हें
कान में मंत्र तुम्हारे वह फूकेंगे
तीन लोक में सात जन्म तक
वह तुमको संरक्षण देंगे
सद्गुरु तथा शिष्य का नाता
अपने हित के लिए निभा लो
डरो नहीं, जीते हो जैसे
जीवन वैसे ही जी लेना
शिष्यों की जीवनशैली से
उन्हें नहीं कुछ लेना-देना
विगत-अनागत दोनों के ही
सभी कर्मफल क्षमा करालो।
शानदार गीतकार के अद्भुत्त गीत हैं। इनके संग्रहों की पीडीएफ़ उपलब्ध कराइए। तो इनके तीनों-चारों संग्रह भी कविता कोश में जोड़ दिए जाएँ। ये पाँचो गीत तो पहले से ही कविता कोश में जुड़े हुए हैं।
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