पूर्णिमा वर्मन |
लखनऊ : विभूति खण्ड स्थित 'कालिन्दी विला’ के परिसर में दो दिवसीय 'नवगीत महोत्सव - 2014' का शुभारम्भ 15 नवम्बर की सुबह 8 : 00 बजे हुआ। 'अनुभूति', 'अभिव्यक्ति' एवं 'नवगीत की पाठशाला' के माध्यम से वेब पर नवगीत का व्यापक प्रचार-प्रसार करने हेतु प्रतिबद्ध 'अभिव्यक्ति विश्वम' द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम न केवल अपनी रचनात्मकता एवं मौलिकता के लिए जाना जाता है, बल्कि नवगीत के शिल्प और कथ्य के विविध पहलुओं से अद्भुत परिचय कराता है। ख्यातिलब्ध सम्पादिका पूर्णिमा वर्मन जी एवं प्रवीण सक्सैना जी के सौजन्य से एवं अवनीश सिंह चौहान तथा जगदीश 'व्योम' के संयोजकत्व में आयोजित यह कार्यक्रम पिछले चार वर्षों से लखनऊ में सम्पन्न हो रहा है।
आर्ट गैलरी का एक दृश्य |
कार्यक्रम का शुभारम्भ देश-विदेश से पधारे नए-पुराने साहित्यकारों की उपस्थिति में वरिष्ठ नवगीतकार श्रद्धेय सर्वश्री कुमार रवीन्द्र, राम सेंगर, धनन्जय सिंह, बुद्धिनाथ मिश्र, निर्मल शुक्ल, राम नारायण रमण, शीलेन्द्र सिंह चौहान, बृजेश श्रीवास्तव, डॉ. अनिल मिश्र एवं जगदीश व्योम के द्वारा माँ सरस्वती के समक्ष दीप-प्रज्ज्वलन से हुआ।
प्रथम सत्र में चर्चित चित्रकार-प्राध्यापक डॉ राजीव नयन जी ने शब्द-रंग पोस्टर प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। नए-पुराने नवगीतकारों के गीतों पर आधारित यह पोस्टर प्रदर्शनी आगंतुकों के लिए आकर्षण का केंद्र रही। ये पोस्टर पूर्णिमा वर्मन, रोहित रूसिया, विजेंद्र विज एवं अमित कल्ला द्वारा तैयार किये गए थे।
तदुपरांत देश भर से आमंत्रित आठ नवोदित रचनाकारों के दो-दो नवगीतों का पाठ हुआ। इस सत्र में पवन प्रताप सिंह, सुवर्णा दीक्षित, विजेन्द्र विज, अमित कल्ला, प्रदीप शुक्ल, सीमा हरिशर्मा, हरिवल्लभ शर्मा एवं संजीव सलिल का रचना पाठ हुआ, जिस पर वरिष्ठ नवगीतकारों के एक पैनल, जिसके सदस्य श्रद्धेय सर्वश्री कुमार रवीन्द्र, राम सेंगर, धनन्जय सिंह, बृजेश श्रीवास्तव एवं पंकज परिमल थे, ने अपने सुझाव दिए। इस अवसर पर श्रद्धेय कुमार रवीन्द्र जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में नवगीत में नवता को लेकर व्याप्त भ्रम को दूर करते हुए कहा कि शाब्दिकता तथा संप्रेषणीयता के बीच तारतम्यता के न टूटने देने के प्रति आग्रही होना नवगीतकारों का दायित्व है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्रद्धेय राम सेंगर जी ने नवगीत महोत्सव को उत्सव बताते हुए कहा है कि इस प्रकार की कार्यशालाएं युवा रचनाकारों के रचनात्मक व्यकितत्व के विकास तथा उनमें नवगीत की समझ बढाने में सहायक होंगी। इस सत्र का सफल संचालन जगदीश व्योम जी ने किया।
बुद्धिनाथ मिश्र |
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में लब्धप्रतिष्ठित गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र का 'गीत और नवगीत में अंतर' शीर्षक पर व्याख्यान हुआ। आपका कहना था कि नवगीत का प्रादुर्भाव हुआ ही इसलिये था कि एक ओर हिन्दी कविता लगातार दूरूह होती जा रही थी, और दूसरी ओर हिन्दी साहित्य में शब्द-प्रवाह को तिरोहित किया जाना बहुत कठिन था। अतः नवगीत नव-लय-ताल-छंद और कथ्य के साथ सामने आया।
कार्यक्रम के तीसरे सत्र में देश भर से आये वरिष्ठ नवगीतकारों द्वारा नवगीतों का पाठ हुआ। इस सत्र के प्रमुख आकर्षण रहे - श्रद्धेय कुमार रवीन्द्र, राम सेंगर, अवध बिहारी श्रीवास्तव, राम नारायण रमण, श्याम श्रीवास्तव, ब्रजेश श्रीवास्तव, शीलेन्द्र सिंह चौहान, डॉ मृदुल, राकेश चक्र, जगदीश पंकज एवं अनिल मिश्रा। कार्यक्रम के अध्यक्ष कुमार रवीन्द्र जी एवं मुख्य अतिथि राम सेंगर जी रहे। मंच संचालन अवनीश सिंह चौहान ने किया।
कार्यक्रम के प्रथम दिवस का समापन सांस्कृतिक संध्या से हुआ, जिसमें रोहित रूसिया, अमित कल्ला, रामशंकर वर्मा, सुवर्णा दीक्षित, सौम्या आशीष एवं आशीष (अभिनय एवं स्वर), विजेंद्र विज (फिल्म निर्माण), सृष्टि श्रीवास्तव (कत्थक नृत्य), सम्राट आनन्द, रजत श्रीवास्तव, मयंक सिंह एवं सिद्धांत सिंह (संगीत), अमित कल्ला (लोक गीत एवं संगीत) ने अपनी आकर्षक एवं मधुर प्रस्तुतियाँ दीं। इस सत्र में कुछ नवगीतों को माध्यम बनाकर नवोदित रचनाकारों द्वारा एक नाटिका प्रस्तुत की गयी और इसके तुरंत बाद फिल्म, गणेश वंदना, भजन, कत्थक नृत्य, लोक गीत, राजस्थानी संगीत आदि की प्रस्तुतियों ने सबका मन मोह लिया। उपस्थित रचनाकारों/काव्यरसिकों/अतिथियों ने इस सांस्कृतिक संध्या की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इस सत्र का सफल संचालन रोहित रूसिया ने किया।
दूसरा दिन
'नवगीत महोत्सव 2014’ का दूसरा दिन भी काफी महत्वपूर्ण रहा। अकादमिक शोधपत्रों के वाचन के सत्र में नवगीत विधा पर प्रकाश डालते हुए विद्वानों ने नवगीत आंदोलन, दशा और दिशा, संरचना एवं सम्प्रेषण, चुनौतियाँ आदि विषयों पर व्यापक चर्चा की। वरिष्ठ गीतकवि राम सेंगर जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में नवगीत दशक और डॉ शम्भुनाथ सिंह जी से जुड़े अनुभव साझा किये। उन्होंने बताया कि नवगीत दशक को प्रकाशित करने की योजना 1962 में बनी थी, किन्तु वह बहुत बाद में पुस्तकाकार हो सकी। श्रद्धेय डॉ शम्भुनाथ सिंह जी के निर्देशन में उन्होंने स्वयं नवगीत दशक -एक, दो, तीन की पांडुलिपियों को अपनी हस्तलिपि में तैयार किया था। 'नवगीत की दशा और दिशा’ विषय पर अपना वक्तव्य देते हुए डॉ. धनन्जय सिंह जी ने कहा कि नवगीत संज्ञा नहीं वस्तुतः विशेषण है। आजकी मुख्य आवश्यकता शास्त्र की जड़ता से मुक्ति है, न कि शास्त्र की गति से मुक्ति। 'नवगीत : सरंचना एवं सम्प्रेषण' पर मधुकर अष्ठाना जी की उद्घोषणा थी कि नवगीत आज भी प्रासंगिक एवं गीतकवियों की प्रिय विधा है। 'रचना के रचाव तत्व’ पर बोलते हुए पंकज परिमल जी ने कहा कि शब्द, तुक, लय, प्रतीक मात्र से रचना नहीं होती, बल्कि रचनाकार को रचाव की प्रक्रिया से भी गुजरना होता है। रचाव के बिना भाव शाब्दिक भले हो जायें, रचना नहीं हो सकते। जगदीश व्योम ने 'नयी कविता तथा नवगीत के मध्य अंतर' को रेखांकित करते हुए कहा कि रचनाओं में छंद और लय का अभाव हिन्दी रचनाओं के लिए घातक सिद्ध हुआ। कविताओं के प्रति पाठकों की अन्यमन्स्कता का मुख्य कारण यही रहा कि कविताओं से गेयता निकल गयी। द्वितीय दिवस का यह सत्र अकादमिक शोधपत्रों के वाचन के तौर पर आयोजित हुआ था, जिसके अंतर्गत वक्ताओं से अन्य नवगीतकार प्रश्न पूछकर समुचित उत्तर प्राप्त कर सकते थे। इस सत्र का मंच संचालन अवनीश सिंह चौहान ने किया था।
प्रथम सत्र के तुरंत बाद सभी नवगीतकारों/ साहित्यकारों को अभिव्यक्ति विश्वम द्वारा परिकल्पित 'सांस्कृतिक भवन' के निर्माण स्थल पर बस और कारों से ले जाया गया जहाँ उन्हें पूर्णिमा जी ने भावी योजनाओं की जानकारी दी। साथ ही पूर्णिमा जी के आदरणीय पिताजी आदित्य कुमार वर्मन जी ने भवन निर्माण और वास्तुशिल्प की गहरी जानकारी दी।
'चोंच में आकाश’ का लोकार्पण करते साहित्यकार |
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तीसरे सत्र से पूर्व अभिव्यक्ति-अनुभूति संस्था की ओर से अवनीश सिंह चौहान (इटावा) को उनके नवगीत संग्रह 'टुकड़ा काग़ज़ का’, कल्पना रामानी (मुम्बई) को उनके काव्य संग्रह 'हौसलों के पंख’ तथा रोहित रूसिया (छिंदवाड़ा) को 'नदी की धार सी संवेदनाएँ’ के लिए सम्मानित तथा पुरस्कृत किया गया। पुरस्कार स्वरुप इन सभी को ११०००/- (ग्यारह हज़ार) रुपये, प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया। इस कार्यक्रम में कल्पना रामानी अस्वस्थ होने के कारण उपस्थित नहीं हो सकीं, इसलिए उनका पुरस्कार लेने के लिए संध्या सिंह को मंच पर आमंत्रित कर लिया गया। इस सत्र का सफल संचालन जगदीश व्योम जी ने किया।
तीसरे सत्र में आयोजन की परिपाटी के अनुसार सबसे पहले आमंत्रित रचनाकारों ने अपनी-अपनी रचनाओं का पाठ किया। इस वर्ष के आमंत्रित कवियों में चेक गणराज्य से पधारे डॉ. ज्देन्येक वग्नेर, निर्मल शुक्ल, वीरेन्द्र आस्तिक, ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग, शैलेन्द्र शर्मा, पंकज परिमल तथा जयराम जय थे।
इनके अतिरिक्त इस सत्र में श्रद्धेय कुमार रवींद्र जी, धनञ्जय सिंह जी, कमलेश भट्ट कमल जी, ब्रजेश श्रीवास्तव, राकेश चक्र, अनिल वर्मा, पूर्णिमा वर्मन, मधु प्रधान, जगदीश व्योम, सौरभ पांडे, अवनीश सिंह चौहान, रामशंकर वर्मा, रोहित रूसिया, प्रदीप शुक्ला, संध्या सिंह, शरद सक्सेना, आभा खरे, वीनस केसरी आदि ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का सफल सञ्चालन श्रद्धेय धनञ्जय सिंह जी ने किया।
आदरणीय यज्ञदत्त पण्डित, प्रभा वर्मन, निर्मल शुक्ल, वीरेन्द्र आस्तिक, चन्द्रभाल सुकुमार, ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग', पारसनाथ गोवर्धन, सुरेश उजाला, राजेश परदेशी, शैलेन्द्र शर्मा, अनिल वर्मा, मधु प्रधान, महेंद्र भीष्म, सौरभ पाण्डेय, ओम प्रकाश तिवारी, श्रीकान्त मिश्र कान्त, राकेश चक्र, संध्या सिंह, रश्मि, शरद सक्सेना, जयराम जय, आभा खरे, वीनस केसरी, राहुल देव सहित शहर के कई साहित्यकार, विद्वान, गणमान्य व्यक्ति आदि मौजूद रहे। फोटोग्राफी एवं फिल्मांकन में आशीष, रोहित रूसिया, विजेंद्र विज, राम शंकर वर्मा, श्रीकांत मिश्र कांत, वीनस केसरी और न्यूज़ मेकिंग और कम्पोज़िंग में सौरभ पाण्डे विशेष सहयोगी रहे। इस अवसर पर पूर्णिमा वर्मन जी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि गीत भारतीय काव्य का मूल स्वर है, इसके प्रचार प्रसार में हिन्दी भाषा और संस्कृति के प्रचार-प्रसार की असीम संभावनाएँ छुपी हुई हैं। इसे बचाए रखना और इसका विकास करना हमारा उत्तरदायित्व होना चाहिये। अन्य विद्वानों द्वारा नवगीत विधा के बहुमुखी विकास की संभावनाओं की अभिव्यक्ति के साथ ही 'नवगीत महोत्सव 2014’ का विधिवत समापन हुआ।
Sabhi ko bahut bahut badhai ... Safal ayojan kadi mehnat ka fal hota hai ....
जवाब देंहटाएंPunah badhai ...