पटना : पटना पुस्तक मेले के आखिरी दिन यानी 18 नवम्बर 2014 को परिसर में बने मुख्य मंच पर हिन्दी कथा-साहित्य की जगमगाती लम्बी कतार में ग्यारह कथाओं के एक संग्रह ‘‘जनता दरबार’’ का नाम भी जुड़ गया। विद्वान-साहित्यकारों एवं सुधी दर्शक-श्रोताओं की उपस्थिति में इस कथा-संग्रह को लोकार्पित किया भारतीय प्रशासनिक सेवा के संवेदनशील एवं सांस्कृतिक चेतना से लवरेज दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक एवं वर्तमान में बिहार सरकार के विज्ञान एवं प्रवैद्यिकी विभाग के प्रधान सचिव त्रिपुरारि शरण ने।
अपने सम्बोधन में श्री शरण ने कहा कि आज बिहार की संस्कृति और साहित्य का परिदृश्य उत्साहवर्द्धक नहीं है। लेखक हैं। पाठक भी हैं। परन्तु बिहार के लेखकों की पहचान नहीं है। इसका मुख्य कारण है रचनाकार एवं रचना का परिष्कार नहीं होना। सबसे बड़ी दिक्कत है कि हम वाद-विवाद की परम्परा को स्थान नहीं देते। साहित्य के उत्तरोत्तर विकास के लिए लगातार संवाद जारी रखने की जरूरत है। उन्होंने उदीयमान कथा-शिल्पी शंभु पी॰ सिंह को लेखन जारी रखने एवं लू शून को पढ़ने की सलाह देते हुए शुभकामना दी।
प्रख्यात आलोचक कर्मेन्दु शिशिर ने कहा कि ‘जनता दरबार’के कथाकार नवोदित हैं पर वाद रहित। इनकी कहानियां कथा साहित्य के फ्रेम में भले न अंटती हों पर पाठकों के मर्म को जरूर स्पर्श करती है। शिल्प भले अनगढ़ हों पर कथाकार की कलम ईमानदार है, इसमें कोई शक-सुबहा की गुंजाइश नहीं। कथाकार-पत्रकार अवधेश प्रीत ने कहा कि शंभु पी सिंह के ‘जनता दरबार’ की पहली कहानी ‘एक्सीडेंट’ को प्रकाशित करने का मुझे सौभाग्य प्राप्त है। यह कहानी मानवीय मूल्य एवं साम्प्रदायिक सौहार्द पर आधारित है। ‘जनता दरबार’ की कहानियां समाज के यथार्थ को उजागर करती है। कहानी की निर्धारित आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करने पर भी ये कहानियां पाठक से सीधा संवाद करती है।
पटना दूरदर्शन के निदेशक पी॰एन॰ सिंह ने ‘जनता दरबार’ के परिपेक्ष्य में सहज और सरल लेखन की चर्चा करते हुए विश्वस्तर के कथाकारों का उदाहरण पेश किया। उन्होंने कहा कि सरल भाषा में सहज विषयों पर लिखी गयी रचनाएं ही कामयाब हुई है। गंभीर एवं दुरुहतापूर्ण बहुत कम। उन्होंने काफ्का एवं दोतोवस्की का उदाहरण देते हुए लेखक शंभु पी सिंह को उनसे सीखने की सलाह दी तथा भविष्य में लेखन को परिमार्जित करते हुए जारी रखने की सलाह दी। विलम्ब से पहुंचे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित प्रो अरुण कमल दरबारी व्यवस्था पर चोट करते हुए कहा कि सरकारी दरबार से छुट्टी पाकर ‘जनता दरबार’ के लिए आया हूँ। मैंने कहानी संग्रह पढ़ा नहीं है इसलिए कहानी पर बोलना ठीक नहीं। हां कहानीकार को बधाई देता हूँ।
समकालीन कविता के सशक्त हस्ताक्षर मदन कश्यप ने कथाकार शंभु पी सिंह को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि उनकी कहानियों से वह नहीं गुजरे है। इसलिए उसपर कुछ कहना नहीं चाहेंगे। वैसे वह कविता के आदमी है कहानी पर बोलने में किताब पढ़ने की जरूरत है। कवि मुकेश प्रत्यूष ने शंभु पी सिंह की कई कहानियों की चर्चा की तथा उनको पठनीय बताया। उन्होंने शुभकामना देते हुए अगला संग्रह शीघ्र देने का कथाकार से आग्रह किया। कथाकार प्रो॰ शिवनारायण ने शंभु पी सिंह के कथा संग्रह ‘जनता दरबार’ की चर्चा करते हुए कहानियों को सरल एवं सम्प्रेषणीय बताया। उन्होंने कहा कि शिल्प की चहारदीवारी लांघकर बाहर आने पर भी कहानियां सहजता से दिल में उतरकर जगह बनाती है।‘जनता दरबार’ के कथाकार शंभु पी सिंह ने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि आस-पास और सामने घटी घटनाओं ने उन्हें कथा लेखन को प्रेरित किया। मैंने कभी सोचा नहीं था कि कथा लेखक के रूप में भी सफर तय करूंगा। दृश्य माध्यम की सेवा में रहने से चीखों और घटनाओं को करीब से देखने-परखने का मौका मिला यह भी लेखन में उत्प्रेरक बना। श्री सिंह ने साफ कहा कि वह कथा सृजन का ककहरा भी नहीं जानते। जो देखा, महसूस किया उसे शब्दों में पिरो डाला। मैं न किसी वाद से जुड़ा हँू और न साहित्य के किसी खेमे से।
मंच को अपनी बुलंद एवं शायराना आवाज में संचालित किया शायर कासिम खुर्शीद ने। वक्ताओं को सादर आमंत्रित करने के पूर्व कथाकार एवं कहानियों से उन्हे जोड़ते हुए तथा उनके वक्तव्यों पर सार्थक अभियुक्ति देते हुए श्री कासिम ने श्रोताओं को भी मंच से बांधे रखा।
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