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‘बाजार हँस रहा है’ का लोकार्पण करते साहित्यकार। मंच पर जय चक्रवर्ती, रामनारायण रमण, अवनीश सिंह चौहान, गुलाब सिंह, शिवकुमार शास्त्री एवं रमाकांत (बाएं से दाएं) |
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कृति : बाजार हँस रहा है (गीत संग्रह), कवि : रमाकांत, प्रकाशक : अनुभव प्रकाशन, गाज़ियाबाद, 2015 |
रायबरेली। लेखपाल संघ सभागार में रविवार को चर्चित कवि एवं यदि पत्रिका के संपादक रमाकांत की पुस्तक ‘बाजार हंस रहा है’ का विमोचन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि वरिष्ठ गीतकार गुलाब सिंह, अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार रामनारायण रमण, अतिविशिष्ट अतिथि आलोचक शिवकुमार शास्त्री एवं विशिष्ट अतिथि अवनीश सिंह चौहान द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्जवलन से हुआ। तदुपरांत वरिष्ठ साहित्यकार दुर्गा शंकर वर्मा दुर्गेश ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत करने के बाद रमाकांत जी के उक्त संग्रह से कुछ गीतों को विश्लेषणात्मक ढंग से श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत किया।
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वक्तव्य देते गुलाब सिंह जी |
कृति पर प्रकाश डालते हुए वरिष्ठ गीतकार गुलाब सिंह ने कहा कि रमाकांत का यह संग्रह नवगीत की विरासत को आगे बढ़ाने में सक्षम है। रमाकांत के गीत समाज को न केवल नया संदेश देते हैं, बल्कि समाज की विसंगतियों को भी बखूबी उजागर करते हैं। उन्होंने कहा कि बाज़ार हंस रहा है क्योंकि आदमी रो रहा है और जब तक आदमी रोता रहेगा तब तक समाज में अमन और चैन नहीं आ सकता। युवा गीतकार अवनीश सिंह चौहान ने उक्त संग्रह पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि रमाकांत जी रायबरेली में दिनेश सिंह की परंपरा के अकेले कवि हैं। वह केवल गीत ही नहीं रचते, वरन वह गीत को जीते भी हैं। वह अच्छा लिखते ही नहीं, वरन अच्छा बोलते भी हैं; वह अच्छा सोचते ही नहीं, वरन अच्छा करते भी हैं। यह बात उनकी लेखनी, उनकी वाणी, उनके व्यवहार से स्पष्ट हो जाती है। जहाँ तक उनके इस गीत संग्रह की बात है तो इसमें बाजारवाद की गिरफ़्त में समकालीन जीवन और उसकी जटिलताओं, जड़ताओं और अवसादों का सटीक चित्रण देखने को मिलता है।
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रमाकांत जी |
वरिष्ठ आलोचक एवं शिक्षाविद शिवकुमार शास्त्री ने कहा कि पुस्तक न केवल बाजार की विसंगतियों को प्रस्तुत करती है, बल्कि बाजार के तौर तरीकों से भी अवगत कराती है। बाज़ार किस तरह से हमें सम्मोहित करता है और हमें निचोड़ता है इसकी सटीक व्यंजना इस गीत संग्रह में है। सुपरिचित ग़ज़लगो शमशुद्दीन अज़हर ने इस संग्रह की रचनाओं को समाज का आईना मानते हुए कहा कि रमाकांत जी जैसा देखते हैं वैसा ही लिखते हैं। साहित्यसेवी विनोद सिंह गौर ने इस कृति को अपने समय का जरूरी दस्तावेज मानते हुए रमाकांत को शुभकामनायें दीं।
गीतकार रमाकांत ने अपनी रचना-प्रक्रिया को विस्तार से बतलाते हुए कहा कि उन्होंने अपने आस-पास जो भी देखा, सुना और समझा है, उसे अपने गीतों में व्यक्त करने का प्रयास किया है। उन्होंने बतलाया कि उनकी ये लयात्मक अभिव्यक्तियां जीवन की सुंदरता के साथ उसकी कलुषता को भी सहज भाषा में प्रस्तुत करती हैं।
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मंच सञ्चालन करते जय चक्रवर्ती |
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में रामनारायण रमण ने रमाकांत के गीतों की भाषा को सहज एवं बोधगम्य बतलाया। उन्होंने कहा कि गीत में भाषा की मुख्य भूमिका होती है, शायद इसीलिये रमाकांत के गीतों की भाषा जन-सामान्य के इर्द-गिर्द घूमती है। साथ ही उनकी यह कृति उनके पारदर्शी व्यक्तित्व को भी उजागर करती है।
इस अवसर पर अजीत आनंद, प्रमोद प्रखर, राधेरमण त्रिपाठी, निशिहर, राममिलन, राजेंद्र यादव, राकेश कुमार, राम कृपाल आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन सुपरिचित कवि जय चक्रवर्ती और आभार अभिव्यक्ति लेखपाल संघ के पूर्व अध्यक्ष हीरालाल यादव ने की।
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अमर उजाला, My City, रायबरेली संस्करण, सोमवार, 09 फरवरी 2015 |
Bazar Hans Raha Hai (Hindi Lyrics) by Ramakant, Raebareli
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