हेम्स्टेड, लंदन, 26 मार्च। शहीद भगत सिंह की स्मृति में वातायन: पोएट्री-औन-साउथ-बैंक संस्था ने कीट्स हाउस में एक विशेष समारोह का आयोजन किया; जिसमें रेजिनाल्ड मैस्सी की नई पुस्तक, शहीद भगत सिंह और अन्य विस्मृत भारतीय शहीद, का लोकार्पण भगत सिंह की भतीजी, श्रीमती वीरेन्द्र संधु, प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री, नामी साहित्यकार और लेबर पार्टी के प्रोफ़ेसर लॉर्ड मेघनाद देसाई और भारतीय उच्चयोग में द्वितीय-सचिव (संस्कृति) एवं नेहरु केंद्र की उपनिदेशक श्रीमती विभा मेहदीरत्ता द्वारा किया गया. समारोह की अध्यक्षता का भार भी प्रोफ़ेसर लार्ड देसाई ने ही सम्भाला.
वातायन की संस्थापक दिव्या माथुर ने समारोह और वातायन की गतिविधियों के एक संक्षिप्त परिचय देते हुए बताया कि यह कार्यक्रम स्वर्गीय श्री जो-नाथन को समर्पित है, जो एक निष्ठावान पत्रकार और 'कौन्फ़्लुएन्स' समाचार पत्र के सम्पादक थे. तत्पश्चात, ललित मोहन जोशी, निदेशक, दक्षिण एशियाई सिनेमा फाउंडेशन, ने संक्षेप में किन्तु प्रभावी तरीके से रेजीनॉल्ड मैस्सी और उनकी नई पुस्तक का परिचय दिया. श्रीमती वीरेन्द्र संधु, जो अपने चाचा भगत सिंह और उनके परिवार पर लिखी गई एक प्रामाणिक एवं अद्वितीय जीवनी की जानी मानी लेखिका हैं, ने भगत सिंह के कई उपाख्यान सुनाकर दर्शकों को अभिभूत कर दिया. प्रोफ़ेसर लार्ड देसाई ने रेजीनॉल्ड मैस्सी को बधाई देते हुए कहा कि यह पुस्तक सामयिक और महत्वपूर्ण दस्तावाज़ है.
समारोह के दूसरे सत्र का संचालन फिल्म-निर्माता, अभिनेता और लेखिका चाँद शज़ैल ने किया, जिसके दौरान अंग्रेजी, हिन्दी, पंजाबी और उर्दू में कविताएँ पढ़ी गईं; कवि थे: इंडिया रसेल, चमन लाल चमन, डायना मावरलिओन, डॉ हिलाल फ़रीद, साथी लुधियानवी, दिल्ली से आई इला कुमार, अय्यूब औलिया और नॉटिंघम से पधारी जय वर्मा. युवा और उभरती हुई गायिका, उत्तरा सुकन्या जोशी ने राम प्रसाद बिस्मिल की सुप्रसिद्ध रचना, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, की सस्वर प्रस्तुति की, जो सर्वत्र सराही गयी. इस सत्र का सफल समापन आठ-वर्षीय बालक नील डोहर्टी की कविता, 'मदरलैंड' से हुआ.
अपने धन्यवाद-ज्ञापन में, फिल्म इतिहासकार, कुसुम पंत जोशी ने वातायन द्वारा प्रकाशित पुस्तकों के आंशिक वित्त-पोषण के लिए वृहत लॉटरी कोष को, स्थल उपलब्ध करने हेतु कीट्स हाउस को एवं वक्ताओं, कवियों, मुख्य अतिथियों और वातायन के स्वयंसेवकों को उनकी प्रतिभागिता के लिए धन्यवाद दिया। आयोजन पूरी तरह से सफल रहा जिसमें यू.के की परोपकारी और जनहितकारी संस्थाओं से जुड़े बहुत से सदस्यों के अतिरिक्त, अनुभवी मीडिया-कर्मी, प्रतिष्ठित साहित्यकार और कलाकार भी उपस्थित थे.
देश की आज़ादी के लिए शहीद भगतसिंह ने जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया, वह आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श है। पहले लाहौर में साण्डर्स-वध और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय असेम्बली में पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ, उन्होंने बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। इन्होंने केन्द्रीय संसद में बम फेंकने के बाद फ़रार होने से भी साफ़ इंकार कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें २३ मार्च १९३१ को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया।
रपट प्रस्तुति :
शिखा वार्ष्णेय
सचिव, वातायन कविता संस्था
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी प्रतिक्रियाएँ हमारा संबल: