अम्बरीश कुमार गर्ग |
मुरादाबाद में जब कभी संस्कारवान साहित्यकारों एवं कुशल मंच संचालकों का जिक्र होता है तब डॉ अम्बरीश कुमार गर्ग का नाम सुधीजनों के जेहन में ससम्मान आ जाता हैं। आपका जन्म 18 दिसम्बर, 1953 को गाँव खामपुर, मेरठ (उ.प्र.) में हुआ। शिक्षा : एम.ए., एम.एड.। प्रकाशित कृति : आदमी का सच (काव्य संग्रह)। आप कविता, मुक्तक, व्यंग्य, समीक्षा, दोहे, पत्र-लेखन, डायरी, लघु कथा आदि विधाओं में रचनाकर्म करते रहे हैं। आपने आकार पत्रिका (अनियतकालीन) का बखूबी सम्पादन किया। अ.भा. साहित्य कला मंच द्वारा 'साहित्य श्री' सम्मान समेत दर्जनों संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ गर्ग गोकुलदास हिन्दू गर्ल्स कालेज, मुरादाबाद के बी.एड. विभाग में समन्वयक के पद पर कार्य कर चुके हैं और वर्तमान में स्वाध्याय एवं समाज सेवा से जुड़े हैं। संपर्क : आर्यावर्त, मिलन विहार, लाइनपार, मुरादाबाद (उ.प्र.), मोब : 09897038128
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
बीच शहर में, बीच बजरिया
भर पसरट्टे में
कुण्डल छीने, चैन लूट ली
एक झपट्टे में
कौन सिपाही,
कुण्डल छीने, चैन लूट ली
एक झपट्टे में
कौन सिपाही,
कौन लुटेरे
समझ न कुछ पाती
डर के मारे अब ननकी
बाजार नहीं जाती
समझ न कुछ पाती
डर के मारे अब ननकी
बाजार नहीं जाती
पर्स छोड़कर, पैसा रखती
बाँध दुपट्टे में
चौकी, थाने,
कुतवाली की
इज्जत चकनाचूर
हर पल,
हर पल,
यहाँ-वहाँ है जनता
लुटने को मजबूर
या तो अब सिर पड़ा ओखली
या सिलबट्टे में।
2. ईर्ष्या
राजा की ईर्ष्या का कारण
तो चपरासी है
राजा से पहले नौकर को
करते सभी सलाम
नौकर के ही कहने से
हो जाते सबके काम
कितना दुख पहुँचाती,
ये जो बात जरा-सी है
सभासदों की समझ बड़ी है
दृष्टि बड़ी है पैनी
मंत्री सारे समझ रहे हैं
राजा की बेचैनी
दरबार समूचा कानाफूसी,
का अभ्यासी है
फटी पैण्ट में भी हँसता है
होकर वह निर्द्वन्द
जटिल तनावों में कैदी सा
बैठा राजा बन्द
मुकुट बँधा मस्तक पर,
भीतर भरी उदासी है
3. नगर वधू
नगर वधू दिखती है
सबसे ज्यादा इज्जतदार
जो भी आए परदेसी
सब गए उसी के पास
हमको अपने होने का भी
नहीं रहा अहसास
अपने घर में नही खटोला,
उसके बन्दनवार
चिट्ठी या सन्देश किसी का
हमें नहीं मिल पाया
राजाओं ने, युवराजों ने
उसको ही बुलवाया
चिट्ठी या सन्देश किसी का
हमें नहीं मिल पाया
राजाओं ने, युवराजों ने
उसको ही बुलवाया
नतमस्तक हैं उसके आगे,
मंत्री, थानेदार
कालिख में भी उजली-उजली
है उसकी तस्वीर
उसकी बात आज भी जैसे
पाहन खिंची लकीर
कालिख में भी उजली-उजली
है उसकी तस्वीर
उसकी बात आज भी जैसे
पाहन खिंची लकीर
उसकी खातिर खुले हुए है,
बडे़-बड़ों के द्वार।
Ambrish Kumar Garg: Three Hindi Poems- Navgeet
कविताएँ बहुत अच्छी हैं।सामाजिक जीवन की समस्याओं को छूती हैं।
जवाब देंहटाएंआशा सहाय