बरेली : वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार वीरेन डंगवाल जी का 68 साल की आयु में
सोमवार की सुबह बरेली में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। कैंसर होने के
बाद भी वह कई साल से लेखन में सक्रिय थे।
कहा जाता है कि डंगवाल जी ने बाईस वर्ष की उम्र में पहली रचना लिखी थी और
लगभग तीस वर्ष की आयु में ही वे हिन्दी जगत में चर्चित हो गए थे। उनकी
रचनाओं से जहाँ पढ़े-लिखे कलमकार की छवि उभरती है, वहीं इनकी सहजता एवं स्पष्टता सहृदय पाठकों को कविता का मर्म समझने में मदद करती है।
5 अगस्त 1947 को कीर्तिनगर, टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड में जन्मे डंगवाल जी
ने मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, कानपुर, बरेली, नैनीताल और अन्त में इलाहाबाद
विश्वविद्यालय से शिक्षा (हिन्दी में एम ए, डी फिल) प्राप्त की। 1971 से
बरेली कॉलेज में हिन्दी के प्रोफ़ेसर; पत्रकारिता से गहरा रिश्ता। ह्रदय से
कवि एवं लेखक। एक अच्छे- सच्चे इंसान। पत्नी रीता जी भी शिक्षक। आपके दो
बेटे प्रशांत और प्रफुल्ल कारपोरेट अधिकारी हैं।
आपने पाब्लो नेरूदा, बर्टोल्ट ब्रेख्त, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब,
तदेऊश रोजेविच और नाज़िम हिकमत के अपनी विशिष्ट शैली में कुछ दुर्लभ अनुवाद
भी किए हैं। आपकी स्वयं की कविताएँ बाँग्ला, मराठी, पंजाबी, अंग्रेज़ी,
मलयालम और उड़िया में अनूदित हो चुकी हैं। प्रकाशित कृतियाँ: कविता संग्रह-
'इसी दुनिया में', दुष्चक्र में सृष्टा तथा स्याही ताल। पुरस्कार व
सम्मान: रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (१९९२), श्रीकान्त वर्मा स्मृति
पुरस्कार (1994), 'शमशेर सम्मान' (2002), साहित्य अकादमी सम्मान (2004)।
उनकी रचनाएँ :
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