फैज़ाबाद :
सर्वमंगला का हुआ सस्वर पाठ
कुष्ठ आश्रम में भोजन वितरण
साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त बहुचर्चित कृति सर्वमंगला के फैजाबादी कवि स्व0 आचार्य विश्वनाथ पाठक की प्रथम पुण्य तिथि अमृत-पर्व के रूप में मनायी गयी।
अवधी भाषा और आचार्य विश्वनाथ पाठक विषय पर आपस द्वारा आयोजित संगोष्ठी के मुख्य अतिथि भारतीय प्रेस परिषद के पूर्व सदस्य जनमोर्चा के सम्पादक शीतला सिंह ने कहा घर कै कथा मैं न पढ़ता तो मैं अवधी की तमाम अप्रचलित हो चली शब्दावली से वंचित रह जाता। घर कै कथा वास्तव में हम सब के घर परिवार की कथा है, जो हमारे देश के किसी भी ग्रामीण घर का दर्द हो सकता है। अवधी को वाचिक परम्परा से जुड़े रहने की जरूरत है। बाहर जाकर हम अपने ही लोगों से खड़ी भाषा में बात करते है, हमें अपनी लोकभाषा अवधी में बात करनी चाहिए। पाठक जी की अवधी की आंचलिकता और उसकी ध्वन्यात्मकता अद्भुत है।
इसके पहले आचार्य विश्वनाथ पाठक के चित्र पर पुष्पाजंलि अर्पित की गयी। निदेशक डाॅ0 विन्ध्यमणि ने सर्वमंगला का सस्वर पाठ किया। संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए डाॅ0 हरि प्रसाद दुबे ने आचार्य विश्वनाथ पाठक को विम्बो की सर्जना करने वाला अदभुत् रचनाकार बताया। विजय रंजन ने आचार्य पाठक के दार्शनिक चिन्तन पर व्यापक प्रकाश डाला। गीतकार श्री दयानन्द मृदुल ने कहा कि घर कै कथा काव्य का विवाह सर्ग वास्तव में अवधी क्षेत्र के लोकव्यवहार, लोकाचार का महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
पाठक जी के पुराने मित्र डाॅ0 ओंकार त्रिपाठी ने कहा पाठक जी का जीवन समकालीन जीवन के चाकचिक्य से दूर पूर्णतः अवधी के लिए समर्पित रहा। सम्पूर्ण उत्तरी भारत में उनके जैसा अवधी का कोई कवि नहीं है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए साकेत महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ0 जर्नादन उपाध्याय ने कहा कि आचार्य पाठक लोक भाषा के सफल कवि हैं, उन्होने सर्वमंगला और घर कै कथा में ठेठ शब्दों का प्रयोग कर अवधी भाषा को और अधिक ऊर्जावान बनाया है। भाषा का जीवन उसके प्रयोग में निहित है। रचना का शैली से विषेश सम्बन्ध होता है, लोक भाषा का कवि वही सफल होता है जो शब्दों के ठेठपन तक उतर जायें। पाठक जी की शैली इस मामले में अप्रतिम है, अवधी को बोल-चाल में प्रयोग करने की परम आवश्यकता है।
संगोष्ठी को विजय रंजन, दयानन्द सिंह मृदुल, डाॅ0 ओंकार त्रिपाठी, सी0पी0तिवारी, डाॅ0 विन्ध्यमणि ने भी सम्बोधित किया। इस अवसर पर सया कालेज के हिन्दी प्रवक्ता डाॅ0 कृष्ण गोपाल आकाशवाणी केन्द्र के वरिष्ठ उद्घोषक अमरजीत सिंह, आलोक गुप्ता, कृष्ण प्रताप सिंह, डाॅ0 सुधांशु वर्मा, डाॅ0 नवीनमणि, पुरूषोत्तम कुमार, वसु उपाध्याय के साथ-साथ अनेक साहित्य प्रेमियों ने भाग लिया। शाम को कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कौशलपुरी स्थित कुष्ठ आश्रम में निदेशक डाॅ0 विन्ध्यमणि, पुरूषोत्तम कुमार, विनय मिश्रा आदि ने भोजन वितरण किया गया।
सर्वमंगला का हुआ सस्वर पाठ
कुष्ठ आश्रम में भोजन वितरण
साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त बहुचर्चित कृति सर्वमंगला के फैजाबादी कवि स्व0 आचार्य विश्वनाथ पाठक की प्रथम पुण्य तिथि अमृत-पर्व के रूप में मनायी गयी।
अवधी भाषा और आचार्य विश्वनाथ पाठक विषय पर आपस द्वारा आयोजित संगोष्ठी के मुख्य अतिथि भारतीय प्रेस परिषद के पूर्व सदस्य जनमोर्चा के सम्पादक शीतला सिंह ने कहा घर कै कथा मैं न पढ़ता तो मैं अवधी की तमाम अप्रचलित हो चली शब्दावली से वंचित रह जाता। घर कै कथा वास्तव में हम सब के घर परिवार की कथा है, जो हमारे देश के किसी भी ग्रामीण घर का दर्द हो सकता है। अवधी को वाचिक परम्परा से जुड़े रहने की जरूरत है। बाहर जाकर हम अपने ही लोगों से खड़ी भाषा में बात करते है, हमें अपनी लोकभाषा अवधी में बात करनी चाहिए। पाठक जी की अवधी की आंचलिकता और उसकी ध्वन्यात्मकता अद्भुत है।
इसके पहले आचार्य विश्वनाथ पाठक के चित्र पर पुष्पाजंलि अर्पित की गयी। निदेशक डाॅ0 विन्ध्यमणि ने सर्वमंगला का सस्वर पाठ किया। संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए डाॅ0 हरि प्रसाद दुबे ने आचार्य विश्वनाथ पाठक को विम्बो की सर्जना करने वाला अदभुत् रचनाकार बताया। विजय रंजन ने आचार्य पाठक के दार्शनिक चिन्तन पर व्यापक प्रकाश डाला। गीतकार श्री दयानन्द मृदुल ने कहा कि घर कै कथा काव्य का विवाह सर्ग वास्तव में अवधी क्षेत्र के लोकव्यवहार, लोकाचार का महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
पाठक जी के पुराने मित्र डाॅ0 ओंकार त्रिपाठी ने कहा पाठक जी का जीवन समकालीन जीवन के चाकचिक्य से दूर पूर्णतः अवधी के लिए समर्पित रहा। सम्पूर्ण उत्तरी भारत में उनके जैसा अवधी का कोई कवि नहीं है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए साकेत महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ0 जर्नादन उपाध्याय ने कहा कि आचार्य पाठक लोक भाषा के सफल कवि हैं, उन्होने सर्वमंगला और घर कै कथा में ठेठ शब्दों का प्रयोग कर अवधी भाषा को और अधिक ऊर्जावान बनाया है। भाषा का जीवन उसके प्रयोग में निहित है। रचना का शैली से विषेश सम्बन्ध होता है, लोक भाषा का कवि वही सफल होता है जो शब्दों के ठेठपन तक उतर जायें। पाठक जी की शैली इस मामले में अप्रतिम है, अवधी को बोल-चाल में प्रयोग करने की परम आवश्यकता है।
संगोष्ठी को विजय रंजन, दयानन्द सिंह मृदुल, डाॅ0 ओंकार त्रिपाठी, सी0पी0तिवारी, डाॅ0 विन्ध्यमणि ने भी सम्बोधित किया। इस अवसर पर सया कालेज के हिन्दी प्रवक्ता डाॅ0 कृष्ण गोपाल आकाशवाणी केन्द्र के वरिष्ठ उद्घोषक अमरजीत सिंह, आलोक गुप्ता, कृष्ण प्रताप सिंह, डाॅ0 सुधांशु वर्मा, डाॅ0 नवीनमणि, पुरूषोत्तम कुमार, वसु उपाध्याय के साथ-साथ अनेक साहित्य प्रेमियों ने भाग लिया। शाम को कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कौशलपुरी स्थित कुष्ठ आश्रम में निदेशक डाॅ0 विन्ध्यमणि, पुरूषोत्तम कुमार, विनय मिश्रा आदि ने भोजन वितरण किया गया।
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