इस अवसर पर मुख्यअतिथि डॉ. मिश्र ने आयोजकों की प्रशंसा करते हुए कहा कि प्रकाशकों द्वारा पुस्तकों की प्रदर्शनी के आयोजन की बात तो आम है किन्तु लेखकों-द्वारा आहूत पुस्तक-प्रदर्शनी पहली बार देखने में आ रही है। सर्जनपीठ के राष्ट्रीय-संयोजक डॉ. पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने जानकरी दी कि प्रदर्शनी में चालिस से अधिक लेखकों ने अपनी पुस्तकें प्रदर्शित कीं। पहले दिन के परिसंवाद विषय 'शिक्षा का बाज़ारीकरण तथा देश का भविष्य' का विषय-प्रवर्त्तन करते हुए शिक्षाविद डॉ. विभुराम मिश्र ने शिक्षा क्षेत्र में व्याप गये बाज़ारवाद की चर्चा की। इसी दिन कार्यक्रम के अगले चरण में साहित्यकार सौरभ पाण्डेय ने काव्य-शिल्प पर विशद वक्तव्य प्रस्तुत किया
दूसरे दिन ’पुस्तक पुरस्कार और राजनीति’ पर विशिष्ट-अतिथि श्री सौरभ पाण्डेय ने कहा कि ’साधन, मत तथा व्यवस्था जब बदल जाती है तो इसका सीधा प्रभाव साहित्य पर पड़ता है । उन्होंने कहा कि ज्ञान और अभिव्यक्ति के क्षेत्र में उपाधियों का वर्चस्व साहित्य के साथ विश्वासघात करने की तरह है। विषय-प्रवर्त्तन किया वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. प्रदीप कुमार चित्रांश ने, जिनके अनुसार लेखकों द्वारा किया गया व्यवस्था विरोध कलम के मार्फ़त ही होना चाहिए। मुख्य अतिथि अन्तरराष्ट्रीय विचारक, बिड़ला फाउंडेशन के सदस्य श्री ओमप्रकाश दुबे थे। परिसंवाद के अगले चरण में गद्य तथा पद्य की कई विधाओं पर शिल्पगत विशद चर्चा हुई।
तीसरे दिन ’समाज को बनाता-बिगाड़ता मीडिया-तंत्र’ विषय के लिए अध्यक्षीय पद से बोलते हुए इलाहाबाद वि.वि. के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मुश्ताक अली ने प्रिण्ट मीडिया से अधिक इलेक्ट्रोनिक मीडिया को तमाम विद्रूपताओं के लिए उत्तरदायी बताया। डॉ. मुश्ताक ने ज़ोर देकर कहा कि प्रिण्ट मीडिया आज भी अपनी नैतिक जिम्मेदारियों के प्रति निष्ठावान है। मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार-सम्पादक डॉ. आशीष त्रिपाठी ने इस पूरे विषय पर विस्तृत वक्तव्य दिया। उन्होंने स्वीकार किया कि पत्रकारिता के छात्रों को संतुलित शिक्षा नहीं मिल रही है। इस अवसर पर शहर के कई प्रमुख समाचार-पत्रों से सम्पादक तथा वरिष्ठ संवाददाता मौजूद थे। प्रबुद्ध श्रोताओं ने भी विषय सम्बन्धी कई विन्दुओं पर चर्चा की तथा सम्पादकों से प्रश्न किये ।
चौथे दिन ’हमारे दैनिक जीवन में देवनागरी लिपि और हिन्दी-भाषा’ विषयक कर्मशाला आयोजित हुई। कर्मशाला एक खुली चर्चा को आह्वान करती हुई संचालित हुई। हिन्दी भाषा की आजतक की यात्रा का सौरभ पाण्डेय ने सुरुचिपूर्ण वर्णन किया। चर्चा में भाग लेते हुए प्रख्यात भाषाविद् डॉ. पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने भाषा को लेकर समाज को जागरुक रहने की बात की। उनके अनुसार जो समाज भाषायीतौर पर सचेत नहीं रहता, वह कालान्तर में अपने मानवीय अधिकारों तक से वंचित हो जाता है। शिक्षाविद् डॉ. विभुराम मिश्र ने भाषा को संप्रेषण का साधन मात्र न कह कर इसे मनन-मंथन के लिए भी आवश्यक बताया। शिक्षाविद् डॉ. नरेन्द्रनाथ सिंह ने भाषायी शुद्धता को एक मिथ बताया। इस कार्यशाला में साहित्यकार प्रेमनाथ सिंह तथा डॉ. ज्योतीश्वर मिश्र की भी मुखर भागीदारी रही।
पाँचवें दिन कुल बाइस साहित्यकारों को नारिकेल तथा शॉल देकर साहित्य-सर्जन-शिखर-सम्मान से सम्मानित किया गया। पाँचों दिन समारोह के संचालन का महती दायित्व आयोजन के संयोजक डॉ. पृथ्वीनाथ पाण्डेय पर था। दूसरे सत्र में काव्य-पाठ हुआ जिसमें कुल चालीस कवि-शाइरों ने भागीदारी की तथा इसका संचालन मुकुल मतवाला ने किया।
समाचार प्रस्तुति : सौरभ पाण्डेय
News from Allahabad, U.P.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी प्रतिक्रियाएँ हमारा संबल: